Special Story: BHU के छात्र का अनोखा प्रयास, धार्मिक ग्रंथ को वैज्ञानिक प्रयोग के माध्यम से जाएगा समझाया

भगवान राम के जीवन पर शुरू हुए विश्व के पहले वर्चुअल विद्यालय स्कूल ऑफ राम ने हाल ही में रामचरितमानस में भौतिक विज्ञान नामक एक प्रमाणपत्रीय कार्यक्रम की शुरुआत की है। स्कूल ऑफ राम के संस्थापक संयोजक काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में अध्ययनरत पूर्व छात्र ने इस कोर्स का ऑनलाइन शुभारंभ किया था। 

अनुज तिवारी

वाराणसी: राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अंतर्गत भारतीय संस्कृति को पाठ्यक्रम में शामिल करने एवं भारत केंद्रित शिक्षा विद्यार्थियों को प्रदान करने की बात की गई है। इस उद्देश्य से भगवान राम के जीवन पर शुरू हुए विश्व के पहले वर्चुअल विद्यालय स्कूल ऑफ राम ने हाल ही में रामचरितमानस में भौतिक विज्ञान नामक एक प्रमाणपत्रीय कार्यक्रम की शुरुआत की है।

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कोर्स का हुआ शुभारंभ
महान गणितज्ञ, भौतिक विज्ञानी एवं दार्शनिक सर आइज़क न्यूटन ने भले ही वर्ष 1687 में अपने शोध पत्र "प्राकृतिक दर्शन के गणितीय सिद्धांत" से गुरुत्वाकर्षण और गति के नियमों की गुत्थी सुलझा दी थी। साथ ही यह साबित किया था कि सभी सिद्धांत प्रकृति से जुड़े हैं। इसके बावजूद आज भी गणित, भौतिक आदि विज्ञान के बुनियादी सिद्धांतों की जटिलता बनी हुई हैं। स्कूल ऑफ राम इन्हीं विज्ञान के सिद्धांतों के सिरे अब रामचरितमानस की चौपाइयों के माध्यम से खोलने जा रहा है। स्कूल ऑफ राम के संस्थापक संयोजक काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में अध्ययनरत विद्या भारती के पूर्व छात्र प्रिंस तिवारी ने बताया कि कल इस कोर्स का ऑनलाइन शुभारंभ किया गया था। जिसमें देश के अलग-अलग कोनों से हर आयुवर्ग के लगभग 70 अभ्यार्थियों ने हिस्सा लिया।

चौपाइयों की सहायता से सिद्धांतों को जाएगा समझाया 
प्रिंस ने बताया कि इस कोर्स में अभ्यार्थियों को रामचरितमानस में भौतिक विज्ञान के सिद्धांतों गति के इस नियम में प्रकाशिकी, धर्षण, वाष्पीकरण, मृगमरीचिका, वैमानिकी, इंजीनियर, उर्जा, चुम्बकत्व आदि को रामचरितमानस की चौपाइयों से समझाया जाएगा। इस कोर्स की सबसे खास बात यह भी होगी कि इन चौपाइयों को भौतिक विज्ञान के प्रयोगों के माध्यम से समझाया जाएगा। यह अपने आप में पहला ऐसा अनोखा प्रयास होगा जब किसी धार्मिक ग्रंथ को वैज्ञानिक प्रयोग अथार्त प्रैक्टिकल के माध्यम से भी समझाया जाए।

उदाहरण के तौर पर स्कूल ऑफ राम के प्रिंस का कहना है कि जैसे- तृषा जाई वरु मृगजल नाना। वरु जामहिं सर सीस निधाना।। उक्त चौपाई में उल्लेखित मृगमरीचिका को प्रकाशिकी के अपवर्तन सिद्धांत से समझाया जाएगा। इसी प्रकार से इस चौपाई को समझाने के लिए न्यूटन के गति के तीसरे नियम क्रिया प्रतिक्रिया एवं संवेग के सिद्धांत पर आधारित हाइड्रोक्लोरिक एवं एथेन रॉकेट के प्रयोग का सहारा किया जाएगा। बार-बार रधुवीर संभारी। तरकेउ पवन तनय बल भारी। जेहिं गिरी चरन देह हनुमंता। चलेउ सा गा पाताल तुरंता।। से समझाया जाएगा।

स्कूल ऑफ राम द्वारा प्रयास
प्रिंस ने कहा टीवी पर रामायण सीरियल देखने और रामचरितमानस का पाठ करने वालों ने सुना-पढ़ा होगा कि भगवान श्रीराम के दौर में राम नाम लिखे पत्थर भी पानी पर तैरते थे, जिसे रामसेतु के नाम से जाना जाता है। लंकेश रावण भी पुष्पक विमान में उड़ता था। लेकिन देश की युवा पीढ़ी भारतीय संस्कृति के इस पुरातन विज्ञान को दिनों-दिन भूलती जा रही। इस ज्ञान-विज्ञान को अविस्मरणीय बनाने के लिए स्कूल ऑफ राम द्वारा जोर-शोर से प्रयास किए जा रहे हैं। आगे भी निरंतर शोध कार्य जारी है। आगामी दिनों में स्कूल ऑफ राम द्वारा कई और कॉर्स भी शुरू किए जाएंगे।

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