Special Story: अखबार बेचने से लेकर अखबार की सुर्खियों में आने तक, आसान नहीं था केशव प्रसाद मौर्य का सफर

केशव प्रसाद मौर्य की जिन्होंने समाज और धर्म के विकास के लिये कोई समझौता नहीं किया और न किसी पद की कामना की, बल्कि हर पद को पीछे छोड़ विश्व की सबसे बड़ी पार्टी के कार्यकर्ताओं के दिल पर राज करने का प्रण किया। अखबार बेचनें से लेकर अखबार की सुर्खियों में आने का सफर असान नहीं था। 

कौशांबी: एक बच्चा अपने परिवार की मदद के लिये अखबार बेचने का काम शुरू करता है। बच्चा न सिर्फ अपने परिवार बल्कि अपने समाज की मदद को भी आगे आता है और नित समाज के कल्याण में नये काम करता है। हम बात कर रहें है उस राजनेता की जिसने देश, समाज और धर्म को किसी भी पद और प्रतिष्ठा से उपर रखा। यह बच्चा जो सिराथू की गलियों में कभी अखबार बेचा करता था आज प्रदेश में उप मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल रहा हैं।

हम बात कर रहें हैं केशव प्रसाद मौर्य की जिन्होंने समाज और धर्म के विकास के लिये कोई समझौता नहीं किया और न किसी पद की कामना की, बल्कि हर पद को पीछे छोड़ विश्व की सबसे बड़ी पार्टी के कार्यकर्ताओं के दिल पर राज करने का प्रण किया। अखबार बेचनें से लेकर अखबार की सुर्खियों में आने का सफर असान नहीं था। परिवार की माली हालत ठीक न होने के चलते अखबार बेचने का कार्य किया। आज उसी वितरक समाज के साथ चाय पर चर्चा की। अपने पुराने साथी अशोक कुमार मौर्य से मिलकर भवविभोर हो उठे, जो कभी उनके साथ घर-घर अखबार देने का कार्य किया करते थे उसी दौरान जब समय मिलता था तब दातून भी बेच लिया करते थे।

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सुबह अखबार बेचने के बाद संघ की शाखाओं में जाते 
उन्होंने पुरानी यादें ताजा करते हुये बताया कि मैं स्वतंत्र भारत और दैनिक आज अखबार वितरण किया करता था। सुबह चार बजे सैनी बस अड्डे से अखबार उठाकर सैनी से सिराथू दारानगर, कड़ा अखबार बांटतें हुये कलेश्वार घाट पर स्नान करता व दंण्डी स्वामी आश्रम में चाय पीकर शरीर की थकान दूर करता। अखबार बेचने के साथ-साथ बचपन से ही संघ की शाखाओं में जाना आरंभ हो गया था। उसी समय मुझ जैसे छोटे स्वयं सेवक पर  अशोक सिघंल की निगाह पड़ी जिन्होंने मुझे विश्व हिन्दू परिषद् में काम करने के लिये आदेशित किया। लगभग 20 वर्षो तक विश्व हिन्दू परिषद् में पूर्णकालिक के तौर पर काम किया। उसी दौरन श्री रामजन्म भूमि आन्दोलन में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। घर वापस होने के उपरान्त भारतीय जनता पार्टी में साधारण कार्यकर्ता के तौर पर कार्य करना आरंभ किया। पार्टी नें अब तक मुझ जैसे छोटे कार्यकर्ता को बहुत सम्मान दिया है। चाय की चर्चा पर अखबार बेचने वाले साथी राकेश चन्द निषाद, ओमप्रकाश मिश्रा, सुमित गुप्ता, राहुल, सुनील दूबे, गोपीचंद, सुनील कुमार, धीरज, संतोष श्रीवास्तव, अनील गुप्ता और लवकुश अग्रहरि आदि शामिल रहे।

आपको बता दें  यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य यूपी चुनाव 2022 में कौशाम्बी जिले की सिराथू सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। सिराथू उनकी कर्मभूमि ही नहीं बल्कि वह जगह भी है जहां उन्होंने फुटपाथ पर चाय बेची है। केशव प्रसाद मौर्य के बचपन कहानी काफी हद तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलती जुलती है। केशव प्रसाद मौर्य ने भी बचपन में अपनी पढ़ाई और परिवार का पेट पालने के लिए सालों तक फुटपाथ पर चाय बेंची वह सुबह साइकिल से अखबार बांटते थे तो दिन भर गुमटी पर चाय बेचते थे। जहां घर के आस-पास के बचच्चे स्कूल में इंटरवल होने पर खेलने के लिए जाते थे वहीं केशव उस दौरान पिता की गुमटी पर पहुंचकर उनका हाथ बंटाते थे। 

पीएम मोदी के जैसे ही 14 वर्ष में छोड़ दिया था घर 
केशव प्रसाद मौर्य उस दौरान महज 14 साल के ही थे जब उन्होंने अपना घर छोड़ दिया था। इसी के साथ वह वीएचपी के दिवंगत नेता अशोक सिंघल की शागिर्दी कर ली। केशव का चाय के ठेले से सबसे बड़ी पंचायत तक पहुंचने का सफर भी आसान नहीं रहा। हालांकि आज उनकी यही टाट के पैबंद से सपने को हकीकत बनाने की कहानी दूसरे लोगों के लिए नजीर बन गई। केशव भले ही आज सत्ता की सफलता के शिखर पर हो लेकिन वह फिर भी फुटपाथ पर लोगों के बीच खड़े होकर पकौड़ी और जलेबी खाते नजर आते हैं। यही नहीं वह आज भी चाय वाले की केतली में हाथ लगाकर अपनेपन का अहसास भी करवाते हैं। 

गरीब परिवार में हुआ था जन्म
अपने तीन भाइयों में केशव दूसरे नंबर पर थे। उनके पिता तहसील कैम्पस तो कभी फुटपाथ पर चाय का ठेला लगाते थे। केशव और उनके अन्य भाई भी पिता का हाथ उनके काम बंटाते थे। घर में पैसों की तंगी के चलते ही केशव ने सुबह अखबार भी बेचना शुरु किया। बड़े भाई सुखलाल बताते हैं कि केशव सुबह अखबार बेंचते फिर पिता स्वर्गीय श्यामलाल के साथ चाय बेचने में सहयोग करते  और फिर पेंट की दुकान पर मजदूरी का भी काम करते। 

संघ की शाखा के लिए परिवार से लगी फटकार
केशव का संघ यानी आरएसएस से जुड़ाव बचपन से ही था। इसी के चलते वह चाय के ठेले पर ज्यादा समय नहीं दे पाते थे। इस बार इस वजह से उन्हें फटकार भी लगी। इसके बाद केशव ने चौदह साल की उम्र में ही घर छोड़ दिया और इलाहाबाद आकर वीएचपी नेता अशोक सिंघल की सेवा  में जुट गए। सिंघल के घर पर रहते ही वह संगठन के काम में हाथ बंटाने लगे औऱ जल्द ही सभी के चहेते बन गए। अब केशव का आधा वक्त पढ़ाई में तो आधा वक्त वीएचपी दफ्तर में लोगो की सेवा में बीतता था। तकरीबन 12 सालों तक उन्होंने न तो घर से न ही परिवार से कोई भई रिश्ता रखा। 

2 बार हार के बाद दर्ज की ऐतिहासिक जीत 
राजनीति में आने के बाद केशव ने पहला चुनाव 2004 में बाहुबली अतीक अहमद के प्रभाव वाली सीट इलाहाबाद पश्चिम से लड़ा। हालांकि साल 2004 में और 2007 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद केशव ने 2012 के चुनाव में कौशाम्बी की सिराथू सीट से किस्मत आजमाई और ऐतिहासिक जीत दर्ज की। यही नहीं उन्होंने इस सीट पर पहली बार कमल भी खिलाया। केशव से जुड़े हुए लोग बताते हैं कि उनमें जो जज्बा बचपन में था वह आज भी वैसे ही बरकरार है।

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