Special Story: रायबरेली-अमेठी नहीं, यह इलाका रहा है कांग्रेस का असली गढ़, इटावा में खोई जमीन तलाश रही पार्टी

सभी राजनीतिक दलों में कांग्रेस सबसे पुरानी पार्टी है। कांग्रेस के जन्म की पटकथा आजादी से पहले चंबल के बीहड़ों से घिरे इटावा में लिखी गयी थी। लेकिन आज कांग्रेस 37 सालों से यहां एक अदद जीत के लिये तरस रही है। साल 1985 के बाद इटावा जिले की किसी भी विधानसभा सीट पर कांग्रेस को जीत हासिल नहीं हुई है।

दिव्या गौरव

लखनऊ: शायद आपको जानकर हैरानी होगी कि उत्तर प्रदेश में फिलहाल अपनी जमीन तलाशने में जुटी कांग्रेस के जन्म की पटकथा आजादी से पहले चंबल के बीहड़ों से घिरे इटावा में लिखी गयी थी। हालांकि इसे विडंबना ही कहेंगे कि देश की सबसे पुरानी पार्टी पिछले करीब 37 सालों से यहां एक अदद जीत के लिये तरस रही है। आज़ादी से पहले यहां के कलेक्टर रहे ए.ओ. हूयम ने कांग्रेस की स्थापना का खाका इटावा में रह कर खींचा था। साल 1985 के बाद इटावा जिले की किसी भी विधानसभा सीट पर कांग्रेस को जीत हासिल नहीं हुई है।

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1957 से शुरू हुए चुनावी दंगल में कांग्रेस ने भरथना सीट से अपनी विजय यात्रा शुरू की थी । तब यहां से घासीराम ने जीत हासिल की थी लेकिन इटावा व जसवंतनगर से कांग्रेस प्रत्याशी हार गए थे। 1962 में कांग्रेस के होतीलाल अग्रवाल इटावा सीट से जीते थे। 1967 में कांग्रेस को तीनों विधानसभा में कोई सीट नहीं मिली जबकि 1969 में कांग्रेस ने तीनों सीटों पर कब्जा किया था। तब इटावा से होतीलाल अग्रवाल, भरथना से बलराम सिंह यादव और जसवंतनगर से विशंभर सिंह यादव ने फतह हासिल की थी। 1974 में भी कांग्रेस इटावा सीट जीतने में कामयाब रही थी लेकिन 1977 में कांग्रेस को फिर झटका लगा था। इस दौर में कांग्रेस ने तीनों सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे, लेकिन इमरजेंसी के विरोध में चली लहर में सभी प्रत्याशी हार गए थे।

1980 में की थी कांग्रेस ने वापसी
1980 में कांग्रेस ने फिर जोरदार वापसी कर तीनों सीटों पर कब्जा जमाया था। इटावा से सुखदा मिश्रा, भरथना से गोरेलाल शाक्य और जसवंतनगर से बलराम सिंह यादव जीते थे। 1985 से लेकर 2012 तक हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का ग्राफ भले ही उतार-चढ़ाव वाला रहा हो, पर पार्टी अपने प्रत्याशी जरूर उतारती रही है, लेकिन जीत का स्वाद कांग्रेस को नहीं लग सका है। इसके बाद भी कांग्रेस का टिकट मांगने वालों की संख्या में कोई कमी नहीं आई है। टिकट मांगने वालों की संख्या अभी एक दर्जन से आसपास रहती है। सदर सीट पर सुखदा मिश्र कांग्रेस की अभी तक की अंतिम विधायक हैं। वह साल 1985 के चुनाव में जीतीं थी। 2012 के चुनाव में कांग्रेस ने इटावा सदर सीट से कोमल सिंह कुशवाहा को चुनाव मैदान में उतारा जिनको 12543 वोट हासिल हुए, हालांकि 2017 में सपा-कांग्रेस गठबंधन के कारण इस सीट से उम्मीदवार नही उतारा गया था।

'कांग्रेस की वापसी है काफी मुश्किल'
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि अब इस इलाके में कांग्रेसे के लिए वापसी करना भी काफी मुश्किल है। राजनीतिक विश्लेषक रूपेश मिश्रा कहते हैं, 'भले ही कांग्रेस की स्थापना की स्क्रिप्ट इटावा से लिखी गई हो लेकिन अब यह पूरी तरह से मुलायम परिवार का गढ़ बन चुका है। ऐसे में कांग्रेस के लिए यहां अपनी खोई जमीन को वापस पाना बहुत मुश्किल है।' मिश्रा के मुताबिक, जातिगत लिहाज से भी इस इलाके का वोटबैंक सपा के साथ ही जाता है। उन्होंने कहा कि जब सपा अस्तित्व में नहीं थी, तब यहां कांग्रेस का ठीक प्रभाव था, लेकिन अब यहां के लोग सपा की ओर प्राथमिक झुकाव रखते हैं।

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