कृषि क़ानूनों को वापस लेने का ऐलान कर प्रधानमंत्री ने अपनी सरकार की उदारवादी छवि पेश करने की कोशिश की है। एक ऐसी सरकार, जो सर्वसम्मति से अपने फैसले लागू करने में यकीन रखती है, जबरन और तानाशाही तरीके में उसका कोई विश्वास नहीं।पीएम के इस फैसले के बाद से विपक्ष लगातार प्रतिक्रियाएं भले ही दे रहा है लेकिन उसको कहीं न कहीं यह भी लग रहा है कि सरकार को घेरने का सबसे बड़ा मुद्दा खत्म हो गया।
लखनऊ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) के तीन कृषि कानूनों (Agriculture Law) को रद्द करने के फैसले के बाद से पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव (Up Vidhansabha Chunav 2022) के समीकरण बदल गए हैं। यूपी और पंजाब (Punjab) में आगामी विधानसभा चुनाव पर खास असर पड़ने की संभावनाएं लग रही हैं। पीएम के इस फैसले के बाद से विपक्ष लगातार प्रतिक्रियाएं भले ही दे रहा है लेकिन उसको कहीं न कहीं यह भी लग रहा है कि सरकार को घेरने का सबसे बड़ा मुद्दा खत्म हो गया। वहीं दूसरी तरफ मोदी को पसंद करने वाला एक तबका ऐसा भी है जो मोदी के इस फैसले से खुश नहीं है। उसका कहना है की सरकार कृषि बिल में बदलाव भी कर सकती थी, लेकिन चुनाव के ठीक पहले अपने फैसले से पीछे हठ जाना लोगों को पसंद नहीं आया।
सरकार की तानाशाह छवि को सुधारने की कोशिश
किसान आंदोलन के कारण सरकार की छवि अड़ियल और तानाशाह की बन गई थी। सरकार इस बात अड़ी भी दिख रही थी कि क़ानून वापस नहीं होंगे। जहां संशोधन ज़रूरी हुआ, वे किए जा सकते हैं। कृषि क़ानूनों को वापस लेने का ऐलान कर प्रधानमंत्री ने अपनी सरकार की उदारवादी छवि पेश करने की कोशिश की है। एक ऐसी सरकार, जो सर्वसम्मति से अपने फैसले लागू करने में यकीन रखती है, जबरन और तानाशाही तरीके में उसका कोई विश्वास नहीं।
क्या यह फैसला चुनावी राजनीति के तहत लिया गया है?
अगले तीन से चार महीनों के अंदर पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। इनमें यूपी, पंजाब और उत्तराखंड में इन क़ानूनों का ख़ास असर देखा जा रहा था। पिछले दो-तीन महीनों से चुनाव की तैयारियों को लेकर बीजेपी में जो मंथन बैठकें चल रही हैं, उसमें इन क़ानूनों से नुकसान की आशंका जताई जा रही थी। ऐसे में जोखिम लेने से बचने का निर्णय हुआ।
कृषि कानून वापस लेने से बीजेपी को होगा फायदा
किसान आंदोलन की वजह से पंजाब और वेस्ट यूपी में बीजेपी को नुकसान की आशंका बहुत ज़्यादा आंकी गई थी। अब जब कृषि क़ानून वापस हो जाएंगे, तो उनका उतना असर भी नहीं रहेगा। विपक्ष लाख कहे कि उसने सरकार को कृषि क़ानूनों को वापस लेने पर मजबूर कर दिया, लेकिन बीजेपी के खिलाफ वह नाराजगी नहीं रह जाएगी। कृषि क़ानूनों के रहते बीजेपी को जो नुकसान हो सकता था, वह वापसी के बाद नहीं होगा, यह तय है।
अखिलेश-जयंत के समीकरण पर असर
2022 में होने वाले चुनाव में किसान आंदोलन वेस्ट का बड़ा मुद्दा बनता जा रहा था। वेस्ट यूपी की 136 विधानसभा सीटों पर हैं। इनमें से बीजेपी के पास 2017 से 109 सीटें हैं, लेकिन किसान आंदोलन छिड़ने और लंबा खिंचने के बाद हर सीट पर नाराजगी का पता बीजेपी को लग रहा था। सरकार के इस फैसले के बाद से समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के नेता अखिलेश-जयंत की सियासी रणनीति भी पूरी तरह बदल गयी है।