काकोरी दिवस: जानिए क्या हुआ था 9 अगस्त 1925 को? सिर पर कफन बांध के आए थे भारत माता के वीर सपूत

Published : Aug 08, 2022, 07:44 PM IST
काकोरी दिवस: जानिए क्या हुआ था 9 अगस्त 1925 को? सिर पर कफन बांध के आए थे भारत माता के वीर सपूत

सार

काकोरी ट्र्रेन एक्शन का नेतृत्व क्रांतिकारी पंडित राम प्रसाद बिस्मिल ने किया था। इसमें दस क्रांतिकारियों ने हिस्सा लिया था। बिस्मिल के अतिरिक्त अन्य क्रांतिवीर थे- चंद्र शेखर आजाद, अशफाकउल्ला खां वारसी, राजेंद्र नाथ लाहिड़ी, शचींद्र नाथ बख्शी, मनमथ नाथ गुप्त, मुकुंदी लाल भारतवीर, केशव चक्रवर्ती, मुरारी शर्मा एवं बनवारी लाल।

लखनऊ: 15 अगस्त के बारे में सभी लोग जानते होंगे। पूरे देश में स्वतंत्रता दिवस धूमधाम से मनाया जाता है। लेकिन उससे ठीक पहले  नौ अगस्त, 1925 को हुए काकोरी कांड के बारे में कम लोग जानते होंगे। यह भी भारत के इतिहास के पन्नों में दर्ज एक एतिहासिक दिन था। इस दिन लखनऊ के निकट काकोरी स्टेशन के पास दिन दहाड़े आठ डाउन ट्रेन रोककर सरकारी खजाना लूट लिया गया था। वह खास दिन जब पराधीनता के बादलों को बिजली की तरह चीर कर देश के सपूत सिर पर कफन बांधे सामने आए। इस दिन लखनऊ के निकट काकोरी स्टेशन के पास दिन दहाड़े कुछ युवा क्रांतिकारियों के दल ने इस साहसिक घटना को अंजाम दिया था। खजाना लूटने वाले वे क्रांतिवीर और कोई नहीं देश की विख्यात क्रांतिकारी संस्था हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी के सदस्य थे।

पंडित राम प्रसाद बिस्मिल ने किया था इस कांड का नेतृत्व
जानकारी के मुताबिक, काकोरी ट्र्रेन एक्शन का नेतृत्व क्रांतिकारी पंडित राम प्रसाद बिस्मिल ने किया था। इसमें दस क्रांतिकारियों ने हिस्सा लिया था। बिस्मिल के अतिरिक्त अन्य क्रांतिवीर थे- चंद्र शेखर आजाद, अशफाकउल्ला खां वारसी, राजेंद्र नाथ लाहिड़ी, शचींद्र नाथ बख्शी, मनमथ नाथ गुप्त, मुकुंदी लाल भारतवीर, केशव चक्रवर्ती, मुरारी शर्मा एवं बनवारी लाल।

देश भर से गिरफ्तार कर लखनऊ लाए गए थे 21 क्रांतिकारी
इस एक्शन से शासन कुछ समय तक हतप्रभ रहा। आरंभ में अभियुक्तों पर पांच हजार रुपये के ईनाम की घोषणा की गई। उस जमाने में यह एक बहुत बड़ी रकम थी, लेकिन इस एक्शन से उत्साहित जनता की सहानुभूति तो क्रांतिकारियों के साथ और प्रबल हो गई। देश भर से गिरफ्तार कर लखनऊ लाए गए 21 क्रांतिकारियों पर काकोरी क्रांतिकारी षडयंत्र केस के अंतर्गत सख्त सजा दिए जाने पर सारे देश में व्यापक प्रतिक्रिया हुई। लगभग सभी बड़े राष्ट्रीय नेताओं ने ब्रिटिश शासन के इस कृत्य की तीव्र भर्त्सना की। 17 दिसंबर 1927 को क्रांतिकारी राजेंद्र नाथ लाहिड़ी गोंडा जेल में 19 दिसंबर 1927 को शेष तीन क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां और ठाकुर रोशन सिंह क्रमश: गोरखपुर जिला जेल, फैजाबाद जिला जेल एवं मलाका जेल (तब इलाहाबाद) में हंसते-हंसते फांसी का वरण कर क्रांति इतिहास में अमर हो गए।

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