प्रयागराज में कंधे पर शव ले जाने वाले पिता को थानाध्यक्ष ने बताया नौटंकी, ऑडियो वायरल होने पर SSP का एक्शन

दरअसल मानवाधिकार से अभिषेक ने जब थानाध्यक्ष टीकाराम से इस मामले के संबंध में जानकारी लेना चाहा तो उन्होंने कहा कि क्या चीज मैं नहीं जानता।  ऐसा कुछ नहीं, कोई पैदल-वैदल नहीं गया है। केवल फोटो खिंचवाकर ये सब पूरा नौटंकी किया है। 

प्रयागराज: करछना में अस्पताल प्रशासन की संवेदनहीनता का मामला सामने आया था। मजबूर पिता अपने 12 साल के बेटे के शव के 15 किलोमीटर तल लेकर चलने के मामले में प्रयागराज एसएसपी शैलेश कुमार पांडेय ने कार्रवाई की है। मामले से जुड़ा ऑडियो वायरल होने के बाद थानाध्यक्ष टीकाराम को लाइन हाजिर कर दिया गया है। 

फोटो खिंचवाकर की गई नौटंकी
दरअसल मानवाधिकार से अभिषेक ने जब थानाध्यक्ष टीकाराम से इस मामले के संबंध में जानकारी लेना चाहा तो उन्होंने कहा कि क्या चीज मैं नहीं जानता।  ऐसा कुछ नहीं, कोई पैदल-वैदल नहीं गया है। केवल फोटो खिंचवाकर ये सब पूरा नौटंकी किया है। 

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ये था पूरा मामला
बीते मंगलवार को एसआरएन अस्पताल में एक लाचार पिता अपने बेटे का इलाज कराने के लिए पहुंचा था, मगर इलाज के दौरान ही बच्चे की मौत हो गई। बेटे की मौत के बाद पैसे के अभाव में लाचार पिता अपने बेटे के शव को कंधे पर लेकर घर के लिए निकल गया। हैरानी की बात है कि यह लाचार पिता एसआरएन अस्पताल से करछना थाना क्षेत्र के डीहा गांव तक बेटे के शव को कंधे पर ही लेकर गया और इस दौरान उसने 25 किलोमीटर का सफर तय किया। बेटे के शव को ले जाते समय जब पिता थक जाता था, तो मां कंधों पर लेकर चलती थी। 

12 साल का शुभम को लग गया था करंट
करछना तहसील के सेमरहा डीह गांव में बजरंगी यादव रहते हैं। बजरंगी का 12 साल का बेटा शुभम गांव में ही मंदिर की तरफ गया था। वहां उसे करंट लग गया। इससे वह बुरी तरह झुलस गया था। 2 अगस्त की रात उसे इलाज के लिए भर्ती कराया गया। इलाज के दौरान शुभम की मौत हो गई। इसके बाद शव पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया गया। पोस्टमॉर्टम होने के बाद बजरंगी अपने बेटे का शव गांव लेकर जाना चाहता था। उसके पास पैसे नहीं बचे थे। उसने अस्पताल के कर्मचारियों और डॉक्टरों से कहा, "बेटे का शव घर ले जाने के लिए कोई गाड़ी या एंबुलेंस दिला दीजिए।" बजरंगी ने कुछ एंबुलेंस वालों से खुद बात की, तो सभी किराया मांगने लगे। इसके बाद बजरंगी को कोई रास्ता नहीं दिख रहा था। बेटे का शव घर ले जाना भी मजबूरी थी। आखिर में उसने शव को कंधे पर रख लिया और पैदल ही गांव की तरफ चल दिया।

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