यूपी की जनता को पसंद आ रहे इन मुद्दों पर भाषण, विकास से ज्यादा हो रहीं धर्म की बातें

Published : Jan 09, 2022, 05:59 PM IST
यूपी की जनता को पसंद आ रहे इन मुद्दों पर भाषण, विकास से ज्यादा हो रहीं धर्म की बातें

सार

अभी तक हुए प्राचार में सभी पार्टी कुछ विशेष मुद्दों से जनता को साधने की कोशिश कर रही थीं। जिनमे जाति-धर्म , महगाई, कोरोना, मुफ्त का वादा शामिल थे।  

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2022 (Uttar pradesh Vidhansabha Chunav) नजदीक आ गए हैं। सभी दल लगातार मेहनत कर रही हैं। शनिवार को लागू हुई आचार संहिता (Code of conduct) के मद्देनजर सभी दल की रैलियों पर रोक लग गई है। कोरोना के बढ़ते खतरे के बीच अब सभी पार्टी वर्चुअल ही चुनाव की तैयारी करेंगी। अभी तक हुए प्राचार में सभी पार्टी कुछ विशेष मुद्दों से जनता को साधने की कोशिश कर रही थीं। जिनमे जाति-धर्म , महगाई, कोरोना, मुफ्त का वादा शामिल थे।

ध्रुवीकरण 
चुनाव में वोटर्स का ध्रुवीकरण करके वोट बटोरना राजनीतिक दलों का पुराना हथकंडा रहा है। उत्तर प्रदेश भी इससे अछूता नहीं है। पिछले दिनों लखनऊ में हो रहे एक कार्यक्रम में खुद सीएम योगी ने कहा कि यह चुनाव 80 बनाम 20 फीसदी का होगा। राजनीति के जानकार मानते हैं कि चुनावों में एआईएमआईएम और ओवैसी की मौजूदगी भी ध्रुवीकरण को हवा दे रही है। हालिया राज्यों में हुए चुनाव में उनका सियासी कद भी बढ़ा है और वोटबैंक भी। इधर अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav), प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi)और मायावती (Mayawati) भी योगी सरकार (Yogi Government) के किलेबंदी में सेंध लगाने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं। 

जातिवाद (Casteism) 
उत्तर प्रदेश का चुनावी इतिहास इस बात का गवाह है कि राज्य की राजनीति में जातियों का विशेष महत्व है। हर जाति का अपना एक अलग वोट बैंक है, कुछ जातियों और वर्ग विशेष पर राजनीतिक दलों का प्रभाव भी माना जाता है। यहां ओबीसी मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा 52 फीसदी है। इसी वजह से 1990 के बाद इसका राजनीति में दबदबा बढ़ गया। अब 2022 में पिछड़ा वर्ग में शामिल 79 जातियों पर अपनी पकड़ को मजबूत करने के लिए सियासी रस्साकस्सी तेज होगी। राज्य में सवर्ण मतदाता की आबादी 23 फ़ीसदी है, जिसमें सबसे ज्यादा 11 प्रतिशत ब्राम्हण, 8 फ़ीसदी राजपूत और 2 फ़ीसदी कायस्थ हैं। ऐसे में इन्हें किंगमेकर भी माना जाता है।

कानून व्यवस्था (Law and order)
उत्तर प्रदेश एक घनी आबादी वाला राज्य माना जाता है, यहां की कानून व्यस्था पिछले कई दशकों में सवालों के घेरे में रही है। 2017 में योगी सरकार ने सत्ता में आने के बाद इसे सुधारने के दावे किए, कई बड़े कदम उठाए गए लेकिन इस बीच बड़ी घटनाओं ने राष्ट्रीय स्तर की सुर्खियों में जगह बनाई। सरकार दावे करती रहीं कि कानून व्यवस्था पर नियंत्रण है लेकिन विपक्ष को लगातार मौके मिलते रहे जिससे सरकार पर सवाल उठाए जा सकें। इन चुनावों में विपक्ष कानून व्यवस्था को लेकर लगातार आक्रामक है। जाहिर है चुनाव में यूपी की कानून व्यवस्था (Law & order) की अपनी एक जगह है।

महंगाई (Dearness)
पेट्रोल-डीजल (petrol-diesel) के बढ़ते दामों से लेकर सब्जियों तक की कीमतों में आया उछाल जनता के लिए परेशानी का सबब है। इस मुद्दे को लेकर भी विपक्ष लामबंद है और सरकार गोलमोल जवाब दे रही है। महंगाई का मुद्दा भी चुनावों में जमकर उछाला जाएगा।

कोरोना (Corona)
कोरोना संक्रमण (corona) की दूसरी लहर में उत्तर प्रदेश में भी हाहाकार की स्थिति बनी थी, अस्पतालों में बेड से लेकर ऑक्सीजन तक के लिए लोग भटकते नजर आए लेकिन सरकार का कहना है कि राज्य में ऑक्सीजन की कमी से किसी की मौत नहीं हुई, जबकि गंगा में तैरती लाशों ने अंतराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरी थी। इस दाग को धोने के लिए सरकार नए प्रयास कर रही है लेकिन विपक्ष इन तस्वीरों का चुनाव में अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने से गुरेज नहीं करेगा।

मुफ्त का वादा (Promises for Free facilities )
सत्तारूढ़ बीजेपी जहां चुनावों से पहले जनता को मुफ्त राशन और मोबाइल-टैबलेट (Mobile-tablet) दे रही है तो वहीं अन्य दल में सत्ता में आने के लिए तमाम तरह के वादे कर रहे हैं, जिसमें बिजली बिल बकाये की माफी से लेकर मुफ्त तीर्थ यात्रा तक शामिल हैं।

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