Inside Story: सातवें व अंतिम चरण के मतदान के पहले जानिए वाराणसी की आठों सीटों का हाल

सातवें और अंतिम चरण में वाराणसी की आठ सीटों पर सभी की नजर है। ऐसा इसलिए क्योंकि इसमें पांच सीटें पीएम नरेन्द्र मोदी की संसदीय सीट में आती हैं। इस बार यहां तीन सीटों पर प्रदेश सरकार के तीन मंत्री मैदान में हैं। जीत पीएम के विकास माडल की होगी या बहेगी बदलाव की बयार। देखिए ये रिपोर्ट...

वाराणसी: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 अपने निर्णनायक मोड पर पहुंच चुका है। शनिवार को सातवें चरण के लिए चुनाव प्रचार खत्म हो गया। 7 मार्च का अंतिम चरण का मतदान होना है। इसके बाद 10 मार्च को पार्टियों की किस्मत का फैसला हो जाएगा। इस बाद यूपी में हुए चुनाव का मुख्य बिंदू वाराणसी रहा है। खासतौर पर सातवें चरण का चुनाव प्रचार थमने से पहले सभी दल के नेताओं ने वाराणसी में पूरा जोर लगाया। पीएम मोदी और अखिलेश यादव ने मेगा रोड शो किया। तो वहीं प्रियंका और राहुल गांधी नेताओं के भाषणों में भी कई बार वाराणसी का जिक्र देखने को मिला है। कहीं 

सातवें और अंतिम चरण में वाराणसी की आठ सीटों पर सभी की नजर है। ऐसा इसलिए क्योंकि इसमें पांच सीटें पीएम नरेन्द्र मोदी की संसदीय सीट में आती हैं। इस बार यहां तीन सीटों पर प्रदेश सरकार के तीन मंत्री मैदान में हैं। जीत पीएम के विकास माडल की होगी या बहेगी बदलाव की बयार। देखिए ये रिपोर्ट...

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शहर दक्षिणी विधानसभा सीट
यह सीट सर्वाधिक चर्चा में है क्योंकि नव्य-भव्य श्रीकाशी विश्वनाथ धाम इसी विस क्षेत्र में है, जिसके माध्यम से भाजपा पूरे देश में 'आस्था से अर्थव्यवस्था तक' का संदेश दे रही है। इस सीट पर भाजपा के पूर्व विधायक श्यामदेव राय चौधरी सात बार विधायक रहे। 2017 में यहां से डा. नीलकंठ तिवारी भाजपा से विधायक बने और इन्हें धर्मार्थ कार्य मंत्री बनाया गया। किशन दीक्षित यहां सपा के टिकट पर पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं। एक महंत परिवार से होने और सत्ता के खिलाफ जुझारू प्रवृत्ति वाले किशन भाजपा को कड़ी टक्कर देते दिख रहे हैं। कांग्रेस की मुदिता कपूर भी जोर लगा रही हैं। मुकाबला आमने-सामने का दिख रहा है।

शहर उत्तरी विधानसभा सीट
समाजवादी पार्टी का गढ़ रहा शहर उत्तरी विधानसभा क्षेत्र परिसीमन के बाद यानी 2012 से भाजपा के कब्जे में है। यहां से भाजपा प्रत्याशी रवींद्र जायसवाल 2012 की सपा लहर में और 2017 की मोदी लहर में जीते और मंत्री बने। यहां से सपा ने अशफाक अहमद डब्लू को मैदान में उतारा है। डब्लू के पास जहां सपा का कोर वोट बैंक है तो अगड़ी जातियों की भी यहां पर बहुलता है। क्षेत्र में बड़े विकास कार्य जमीन पर दिखते हैं। बावजूद इसके रवींद्र को हैट्रिक लगाने के लिए मशक्कत करनी पड़ रही है। यहां सीधी लड़ाई नजर आ रही है।

शिवपुर विधानसभा सीट
जिले की चिरईगांव सीट परिसीमन के बाद शिवपुर हुई तो 2012 में सपा ने यहां से जीत हासिल की। पहले यह भाजपा का गढ़ था। 2017 में भाजपा ने अपना दल व सुभासपा से गठबंधन कर इसे जीत लिया। विधायक बने अनिल राजभर योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री बने। अबकी सपा-सुभासपा गठबंधन ने यहां से ओमप्रकाश राजभर के बेटे अरविंद को मैदान में उतारा है। इस सीट में जातीय समीकरण महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। क्षेत्र में क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य जैसी अगड़ी तो राजभर, पटेल, मौर्या, यादव, अनुसूचित जाति का मिला-जुला निवास है। यहां मुकाबला आमने-सामने का दिख रहा है

कैंटोनमेंट विधानसभा सीट
पूरी तरह शहरी क्षेत्र वाली कैंटोनमेंट विधानसभा क्षेत्र पर पिछले तीन दशक से एक ही परिवार का कब्जा है। इस बार भी भाजपा विधायक सौरभ श्रीवास्तव मैदान में हैं। यहां से उनके पिता हरिश्चन्द्र श्रीवास्तव भाजपा सरकार में वित्त मंत्री रहे और मां ज्योत्सना श्रीवास्तव विधायक रहीं। यहां कायस्थ, वैश्य, ब्राह्मïण, क्षत्रिय, यादव, बिंद, सोनकर व मुस्लिम मतदाताओं की बहुलता है। कांग्रेस ने यहां से पूर्व सांसद डा. राजेश मिश्र को मैदान में उतारा है। वह जनता के बीच अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहे हैं तो सपा से पूजा यादव प्रत्याशी हैं। इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला दिख रहा है।

पिंडरा विधानसभा सीट
कभी कोलअसला के नाम से जानी जाने वाली इस सीट पर कामरेड ऊदल नौ बार विधायक रहे। उनकी जीत का सिलसिला भाजपा में रहते हुए अजय राय ने तोड़ा। अजय राय अबकी कांग्रेस के प्रत्याशी हैं। क्षेत्र में मजबूत पकड़ की वजह से लड़ाई में हैं। यहां से भाजपा से विधायक डा. अवधेश सिंह प्रत्याशी हैं। उन्हें मोदी-योगी के व्यक्तित्व व भाजपा के संगठन का भरोसा है। यहां से बसपा के बाबूलाल पटेल एक बार फिर मजबूत दावेदार हैं। 2017 चुनाव में बाबूलाल दूसरे स्थान पर रहे। क्षेत्र में पटेल, अनुसूचित जाति, ब्राह्मण, क्षत्रिय, भूमिहार, यादव की बहुलता है। यहां त्रिकोणीय लड़ाई है।

सेवापुरी विधानसभा सीट
परिसीमन के पूर्व इस विधानसभा क्षेत्र का बड़ा हिस्सा भदोही जनपद की औराई विधानसभा में था। 2012 में सपा के सुरेन्द्र पटेल विधायक और मंत्री बने। 2017 में वह अपना दल-भाजपा गठबंधन के नील रत्न पटेल नीलू से भारी अंतर से हारे। नीति आयोग ने यहां देश का पहला आदर्श ब्लाक सेवापुरी बनाया है। पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र होने की वजह से विकास कार्य दिखते हैं। हालांकि नीलू पिछले दो वर्ष से बीमार हैं। क्षेत्र में पटेल, ब्राह्मण, भूमिहार, बिंद, यादव, अनुसूचित जाति व मुस्लिम की बहुलता है। सभी जीत का दावा कर रहे हैं।

अजगरा विधानसभा सीट
कभी गाजीपुर की सैदपुर सीट का हिस्सा रहा यह क्षेत्र परिसीमन के बाद अजगरा नाम से गठित हुआ। 2012 में यहां से बसपा के टी. राम विधायक बने। 2017 में वह भाजपा-सुभासपा गठबंधन के कैलाश सोनकर से चुनाव हार गए थे, लेकिन इस बार टी. राम भाजपा के प्रत्याशी हैं। सुरक्षित सीट पर अनुसूचित जाति के मतदाताओं में उनकी मजबूत पकड़ है। साथ ही सवर्ष और पिछड़े मतदाताओं का भी आसरा है। वहीं सपा नेता सुनील कुमार सुभासपा के टिकट पर मैदान में हैं। यहां सीधे मुकाबले के आसार हैं।

रोहनिया विधानसभा सीट
परिसीमन के पूर्व गंगापुर नाम से जानी जाने वाली रोहनिया सीट पर परिसीमन के बाद अपना दल की अनुप्रिया पटेल ने पहली बार 2012 में विजय हासिल की। इसके बाद वह 2014 में सांसद चुनी गईं। उपचुनाव में सपा ने जीत हासिल की, लेकिन 2017 में यहां से भाजपा के सुरेंद्र नारायण सिंह विजयी हुए। अबकी यहां से अपना दल एस-भाजपा गठबंधन के डा. सुनील कुमार प्रत्याशी हैं। अपना दल (के) व सपा ने यहां से अभय पटेल को मौका दिया है। कांग्रेस के राजेश्वर पटेल भी कड़ी टक्कर देते दिख रहे हैं। यहां मुकाबला त्रिकोणीय होने के आसार हैं।

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