इस राजा ने शुरू कराया था कुम्भ मेला, तब तक करते थे दान जब तक खाली न हो जाए खजाना

वह पहले भगवान सूर्य, शिव और बुध की पूजा करते थे। उसके बाद ब्राह्मण, आचार्य, दीन, बौद्ध भिक्षु को दान देते थे। इस दान के क्रम में वह लाए हुए अपने खजाने की सारी चीजें दान कर देते थे। वह अपने राजसी वस्त्र भी दान कर देते थे, फिर वह अपनी बहन राजश्री से कपड़े मांग कर पहनते थे। 

Ankur Shukla | Published : Jan 18, 2020 9:18 AM IST / Updated: Jan 18 2020, 04:25 PM IST

प्रयागराज (Uttar Pradesh )। संगम क्षेत्र में लगे माघ मेले में देश भर के साधु-संत पहुंच रहे हैं। लोग कल्पवास भी कर रहे हैं। भोर से ही स्नान करते हैं और दान पुण्य कमाते हैं। ऐसे में हर कोई यह जानना चाहता है कि आस्था के इस सबसे बड़े मेले को किसने शुरू कराया। जी हां यहां कुंभ की शुरूआत राजा हर्षवर्धन ने कराई थी। ऐसा भी कहा जाता है कि 16 साल की उम्र में भाई की हत्या के बाद  राजा बने हर्षवर्धन (हर्ष) यहां आते थे और तब तक दान करते थे, जब तक कि उनके पास से सब कुछ खत्म न हो जाए। बता दें कि इस बात का उल्लेख इतिहासकार केसी श्रीवास्तव ने अपनी पुस्तक प्राचीन भारत का इतिहास में किया है।

इस तरीके से करते थे दान
प्रयागराज में महाराज हर्षवर्धन ने अनेक दान किए थे। वह पहले भगवान सूर्य, शिव और बुध की पूजा करते थे। उसके बाद ब्राह्मण, आचार्य, दीन, बौद्ध भिक्षु को दान देते थे। इस दान के क्रम में वह लाए हुए अपने खजाने की सारी चीजें दान कर देते थे। वह अपने राजसी वस्त्र भी दान कर देते थे, फिर वह अपनी बहन राजश्री से कपड़े मांग कर पहनते थे।

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राजा हर्षवर्धन से जुड़ी सटीक जानकारियां
-हर्षवर्धन भारत के आखिरी महान राजाओं में एक थे।
-कन्नौज को अपनी राजधानी बनाकर पूरे उत्तर भारत को एक सूत्र में बांधने में सफलता हासिल की थी।
-बड़े भाई राज्यवर्धन की हत्या के बाद 16 साल की उम्र में हर्षवर्धन को राजपाट सौंप दिया गया था।
-खेलने-कूदने की उम्र में हर्षवर्धन को राजा शशांक के खिलाफ युद्ध के मैदान में उतरना पड़ा था।
-हर्षवर्धन ने उत्तर भारत के विशाल हिस्से पर राज किया था। 
-हर्षवर्धन ने करीब 6 साल में वल्लभी, मगध, कश्मीर, गुजरात और सिंध को जीत कर पूरे उत्तर भारत पर अपना दबदबा कायम कर लिया। 
-कहा जाता है कि सम्राट हर्षवर्धन की सेना में 1 लाख से अधिक सैनिक थे। 60 हजार से अधिक हाथियों को रखा गया था।
-हर्ष परोपकारी सम्राट थे। सम्राट हर्षवर्धन ने भले ही अलग-अलग राज्यों को जीत लिया था।
- चीन के साथ बेहतर संबंध थे। इतिहास के मुताबिक, चीन के मशहूर चीनी यात्री ह्वेन त्सांग हर्षवर्धन के राज-दरबार में 8 साल तक उनके दोस्त की तरह रहे थे।
-राजा ने ‘सती’ प्रथा पर प्रतिबंध लगाया था।
- वे बौद्ध धर्म हो या जैन धर्म, हर्ष किसी भी धर्म में भेद-भाव नहीं करते थे। 
-चीनी दूत ह्वेन त्सांग ने अपनी किताबों में भी हर्षवर्धन को महायान यानी कि बौद्ध धर्म के प्रचारक की तरह दिखाया है।
- सम्राट हर्षवर्धन ने शिक्षा को देश भर में फैलाया। 
-वो एक बहुत अच्छे लेखक ही नहीं, बल्कि एक कुशल कवि और नाटककार भी थे। 
- उनके शासनकाल में भारत ने आर्थिक रूप से बहुत प्रगति की थी।
-राजा के पुत्र वाग्यवर्धन और कल्याणवर्धन थे, लेकिन दोनों बेटों की अरुणाश्वा नामक मंत्री ने हत्या कर दी। इस वजह से हर्ष का कोई वारिस नहीं बचा।
- उनके मरने के बाद उनका साम्राज्य भी पूरी तरह से समाप्त हो गया था। 

राजसी वस्त्र तक कर देते थे दान
जानकार बताते हैं कि छठीं सदी में भारत के दौरे पर आए चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने भी अपने संस्मरणों में प्रयागराज और कुंभ का वर्णन किया। ह्वेनसांग ने भी अपने वर्णन में सम्राट हर्षवर्धन का जिक्र किया और उनके 75 दिन तक के दान के बारे में बताया है। बताया जाता है कि वे राजसी वस्त्र तक दान कर देते थे।
 

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