तेल के कुओं से कैसे निकलता है आपकी गाड़ी में डाला जाने वाला पेट्रोल, इंजीनियर ने बताया पूरा प्रोसेस

वीडियो डेस्क। देश में पेट्रोलिम एंड गैस फील्ड से तेल और गैस निकालने का काम अब विदेशी नहीं, बल्कि मेक इन इंडिया (Make in India) मशीनों से होगा। कुछ जगह यह शुरू भी हो चुका है। हैदराबाद की इंजीनियरिंग कंपनी मेघा इंजीनियरिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (MEIL) ने तेल एवं गैस फील्ड में ड्रिलिंग में उपयोग की जाने वाली आधुनिक तकनीक वाली रिग का निर्माण किया है। 


वीडियो डेस्क। देश में पेट्रोलिम एंड गैस फील्ड से तेल और गैस निकालने का काम अब विदेशी नहीं, बल्कि मेक इन इंडिया (Make in India) मशीनों से होगा। कुछ जगह यह शुरू भी हो चुका है। हैदराबाद की इंजीनियरिंग कंपनी मेघा इंजीनियरिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (MEIL) ने तेल एवं गैस फील्ड में ड्रिलिंग में उपयोग की जाने वाली आधुनिक तकनीक वाली रिग का निर्माण किया है। यह रिग 200 डिग्री के अधिकतम तापमान पर भी काम करते हुए तेल एवं गैस निकालती है।  जानें कैसे काम करती है यह मशीन। आपकी गाड़ियों में जो पेट्रोल--डीजल डाला जाता है, वह किस प्रक्रिया से तैयार किया जाता है। देखिए राजमुंदरी से विकास शुक्ला की रिपोर्ट...

यह जानने के लिए हमने आंध्र प्रदेश के राजमुंदरी स्थित ONGC के प्लांट का दौरा किया। यहां ड्रिलिंग के काम में लगी कंपनी एमईआईएल के टेक्निकल हेड (रिग्स प्रोजेक्ट) सत्यनारायण कोटिपल्ली बताते हैं कि तेल या गैस किस जमीन से निकालना है, यह ओएनजीसी तय करती है। इसके बाद हम अपनी मशीनें उन्हें प्रोवाइड कराते हैं। अब तक देश में इटली से मशीनें मंगाई जाती थीं, लेकिन इनमें मैन पावर और खर्च अधिक आता था। भारत में पहली बार यह तकनीक इस्तेमाल की जा रही है।

MEIL ने अपनी नई तकनीक वाली रिग बनाई है, जो खर्च कम करने के साथ ही तेजी से काम करती है और 6000 मीटर (6 किमी) तक खुदाई कर सकती है। तेल के कुओं की खुदाई में लगी रिग रोबोटिक आर्म के माध्यम से चलती है। 2000 एचपी की एक रिग कितनी नीचे जाएगी इसे लेकर कोई तय मापदंड नहीं हैं। कोटिपल्ली बताते हैं कि यह रिग स्पेशली हाई टेम्परेचर पर काम करने के लिए बनी है। हमने इसमें ड्रिल कॉलर और ड्रिल पाइप के लिए नई तकनीक का इस्तेमाल किया है। इसे स्टिंगर कहते हैं। यह एक रोबोटिक उपकरण है, जिसे भारत में पहली बार लाया गया है। 

पायलट की तरह पूरी विंग की निगरानी एक पॉइंट पर 
यह मशीन एक कॉकपिट की तरह काम करती है। इसके जरिये क्या काम हो रहा है, इसकी मॉनीटरिंग ठीक उसी तरह से होती है जैसे विमान में पायलट को पूरे विमान की जानकारी एक जगह मिलती है, वैसे ही इस मशीन के जरिये आंध्र प्रदेश में लगी मशीन का डेटा दिल्ली में भी देखा जा सकता है। यह 163 फीट ऊंची रिग रोबोटिक आर्म्स से लैस है,  जो 600 फीट से लेकर कितनी भी अंदर ड्रिलिंग कर सकती है।

एक मशीन पर 10 लोगों की वर्किंग 
जहां पर तेल या गैस निकालने के लिए रिग ऑपरेट हो रही है, वहां मैनपावर भी काफी लगती है। इस मशीन के जरिये महज 10 लोग वर्किंग में लगते हैं, जबकि 10 लोगों की टीम अन्य ऑपरेटिंग सिस्टम देखती है। भारत में जमीन पर काम करने वाली यह अपनी तरह की पहली मशीन है। 

गैस निकली तो डिगैसर से होती है अलग 
यह रिग अत्यधिक तापमान पर काम करने के लिए विशेष तौर पर बना है। रिग जब ड्रिल करती है तो कीचड़ और तमाम तरह के कमिकल्स निकलते हैं। मशीनों के जरिये इन्हें अलग किया जाता है और यदि तेल और गैस कुछ भी निकलता है तो उसे अलग करने के लिए अलग यूनिट होती है। गैस के लिए डिगैसर होता है। इसमें गैस को सप्रेट कर लिया जाता है और कीचड़, पानी और अन्य चीजों को अलग कर दिया जाता है। 

तेल निकालने के लिए केमिकलयुक्त कीचड़ का इस्तेमाल
कोटिपल्ली के मुताबिक जब हम कहीं भी ड्रिल करते हैं तो जो भी बाहर आता है, यह एक फ्लूड के साथ बाहर आता है। ऑयल-गैस के क्षेत्र में इसे मड सिस्टम कहा जाता है। हमें खुदाई के लिए मड तैयार करना पड़ता है और ड्रिलिंग सिस्टम के इस मड को सर्कुलेट करना पड़ता है। यह बार--बार रीसाइकिल होता है। यह मड बनाने के लिए हमें बैराइट्स, वेंट्रोनाइट्स, फ्लाराइड्स जैसे तमाम केमिकल की जरूरत पड़ती है, वह हमारे पास मौजूद होते हैं। 

मड की जरूरत क्यों 
जब आप बहुत नीचे जाकर ड्रिलिंग करते हैं तो प्रेशर बढ़ता है। मिट्‌टी का वेट बढ़ता जाता है। आप एक हाई प्रेशर एरिया में ड्रिल करते हैं। आपको पता नहीं होता है कि अचानक से क्या बाहर आएगा। यह अनियंत्रित भी हो सकता है। इसलिए उसके प्रेशर को मेनटेन करने के लिए मड का इस्तेमाल होता है। इस यूनिट में तीन मड पंप लगे हैं। इनकी क्षमता 20 से 100 एचपी तक की है। 

आखिरी चरण में रिफाइनरी भेजा जाता है तेल
ड्रिलिंग के बाद बहुत सारे केमिकल्स, मड और अन्य चीजों के साथ ऑयल या गैस निकलती है। ऑयल निकलने की स्थिति में इसे अलग कर स्टोर किया जाता है और फिर रिफाइनरी भेजा जाता है। वहां से रिफाइन होने के बाद यह गाड़ियों में इस्तेमाल के लायक बनता है।

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