टीपू सुल्तान ने शंति की पेशकश करते हुए समझौते के लिए कोडवासों को आमंत्रित किया। उसकी बातों पर यकीन करते हुए कूर्ग के कोडवास सैनिक बिना किसी हथियार के वार्ता के लिए चले गए। लेकिन यह टीपू सुल्तान द्वारा बिछाया गया एक जाल था। वहां घात लगाए टीपू के सैनिकों ने सैकड़ों कूर्ग सैनिकों को मार डाला।
इस साल जुलाई में कर्नाटक में सत्ता में आने के कुछ ही दिनों के बाद भाजपा सरकार ने राज्य में टीपू सुल्तान की जयंती के मौके पर होने वाले समारोहों को रद्द कर दिया था। इसके लिए सरकार ने कोडागु जिले में होने वाले इसके विरोध का हवाला दिया था। साल 2016 में टीपू सुल्तान की जयंती मनाने के विरोध में कोडागू में हुए प्रदर्शन में दो लोगों की मौत हो गई थी, जिसके बाद हिंसा शुरू हो गई थी।
कूर्ग के कोडवास क्यों करते है टीपू सुल्तान को नापसंद
कहा जाता है कि युद्ध के दौरान टीपू सुल्तान ने शंति की पेशकश करते हुए समझौते के लिए कोडवासों को आमंत्रित किया। उसकी बातों पर यकीन करते हुए कूर्ग के कोडवास सैनिक बिना किसी हथियार के वार्ता के लिए चले गए। लेकिन यह टीपू सुल्तान द्वारा बिछाया गया एक जाल था। वहां घात लगाए टीपू के सैनिकों ने सैकड़ों कूर्ग सैनिकों को मार डाला। टीपू को फ्रांसीसियों का भी समर्थन हासिल था। बहुत से कूर्ग सैनिकों को बंदी बना कर श्रीरंगपट्टनम ले जाया गया।
इसका प्रमाण टीपू सुल्तान के जीवनी लेखक और दरबारी किरमानी के लेखन में मिलता है। द हिस्ट्री ऑफ टीपू सुल्तान नाम की किताब में उन्होंने लिखा है, "कूर्गों पर जीत हासिल करने के बाद सुल्तान ने अपने अमीरों और खानों को कूर्गों पर और भी हमला करने और दंड देने के लिए भेजा। उन्होंने कई शहरों को बर्बाद कर दिया। उन हमलावरों ने 8 हजार पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को कैद कर लिया और उन्हें भेड़ों और बैलों के झुंड की तरह रखा।"
कुरनूल के नवाब को टीपू सुल्तान ने एक पत्र लिखा था, जिससे भी इसकी पुष्टि होती है। टीपू सुल्तान ने लिखा था कि 40,000 कोडवास लोगों को इस्लाम धर्म में शामिल कर लिया गया। इन लोगों को अहमदी सेना में भर्ती कर लिया गया। टीपू सुल्तान द्वारा इस्लाम धर्म में शामिल किए गए इन लोगों के वंशजों में बहुतों ने अभी भी अपने मूल नामों को बरकरार रखा है। ये कोडावा मापिला के तौर पर जाने जाते हैं।