राजकुमार ने कहा मेरा यही उद्देश्य है मेरी यही दिली इच्छा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी एक बार पुनः 2024 में जीत कर बनारस का विकास की गति को और तेजी से बढ़ाएं।
बनारस अपने विभिन्न नामों से जाना जाता है। इस जनपद के हर एक मोहल्ले गली में कलाओं का पौधा बनता है और वह पौधा एक वटवृक्ष की तरह काशी में अपने माध्यम से संस्कृति कला और प्रतिभाओं के फल को उत्पन्न करता है। ऐसे ही आज हम एक ऐसे व्यक्ति से आपका परिचय कराएंगे जो काशी के भदैनी क्षेत्र में निवास करते हैं और यह अपनी कलाओं से काशी के संस्कृति को विकसित करना चाहते हैं। बनारस के बकानी क्षेत्र में रहने वाले दिव्यांग राजकुमार पतली गलियों के बीच में एक छोटे से कमरे में रहते हैं उस कमरे में ना लाइट की सुविधा है और हवा के लिए तो पंखा एक सपने जैसा है राजकुमार घरों में बेकार पर एक कार्ड पेपरों में छपने वाले तमाम उन खूबसूरत तस्वीरों से घरों को सजाने के लिए एक नायाब सीनरी तैयार करते हैं। इतना ही नहीं राजकुमार उन बच्चों को भी प्रशिक्षित करते हैं जो बच्चे शिक्षा नहीं पा सकते उन बच्चों के अंदर संस्कृति नाटक और कला का ऐसा जुनून भरते हैं कि वह बच्चे बनारस के घाटों पर कहानियों के माध्यम से लोगों को जागरूक करते नजर आते हैं।
राजकुमार का सपना है कि काशी में एक ऐसा विद्यालय बने जहां वह काशी के कोने-कोने से एक कलाकार बना सके और काशी की संस्कृति को विश्व पटल पर रख सकें उन्होंने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री से मिलने की एक मनसा भी जताई और कहा कि हम प्रधानमंत्री से आवाहन करते हैं कि मुझे एक छोटी सी जगह दे दे। जहां में काशी के उन कलाकारों को काशी की संस्कृति सिखा सकूं। वह एक पोस्टर भी तैयार कर रहे हैं। राजकुमार कहते हैं कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काशी पहली बार आए थे तो उन्होंने संकल्प लिया था ना मुझे यहां कोई बुलाया है और ना मैं यहां आया हूं मुझे तो मां गंगा ने बुलाया है। उन्होंने एक पोस्टर के माध्यम से बनारस की सुंदरता बनारस के विकास बनारस के नाभिक बनारस में बने काशी विश्वनाथ धाम के साथ-साथ सांस्कृतिक कार्यक्रमों को उस पोस्टर में दर्शाया है और राजकुमार का कहना है कि मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को या पोस्टर देख कर बताना चाहता हूं कि कला हमेशा जिंदा रहती है मरता है तो आदमी और जब आदमी करने की इच्छा रखे तो वह कुछ भी कर सकता है।
राजकुमार बताते हैं कि जब वह 14 वर्ष के थे उनका पढ़ने में मन नहीं लगता था तब से वह गंगा मां की मिट्टी से और इधर उधर पड़े कांटों से कुछ न कुछ कलाकृतियां बनाया करते थे और आज 60 साल की उम्र में राजकुमार काशी को एक अलग पहचान दे रहे हैं। दिव्यांग रंगकर्मी राजकुमार ने बताया कि मैं एक छोटा-मोटा कलाकार हूं कूड़ा में फेंके हुए चीजों को प्रयोग करके मैं अपनी कल्पना को एक सुंदर कलाकृति में बनाता हूं। मेरा यही उद्देश्य है कि हमारी यह कला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक यह संदेश पहुंच जाता तो मेरा जीवन सफल हो जाता।
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