गंगा की सफाई की योजना पर अब तक सरकार ने अरबों रुपए खर्च कर डाले हैं, पर ज्यादातर जगहों पर भारत की सबसे पवित्र मानी जाने वाली यह नदी बहुत ज्यादा प्रदूषण की शिकार है। रोज ही गंगा में लाखों टन कचरा फेंका जाता है।
हटके डेस्क। गंगा की सफाई की योजना पर अब तक सरकार ने अरबों रुपए खर्च कर डाले हैं, पर ज्यादातर जगहों पर भारत की सबसे पवित्र मानी जाने वाली यह नदी बहुत ज्यादा प्रदूषण की शिकार है। रोज ही गंगा में लाखों टन कचरा फेंका जाता है। सरकार की योजनाएं अब तक कारगर साबित नहीं हो सकीं, वहीं पश्चिम बंगाल में एक ऐसा शख्स है, जिसने अपने इलाके में गंगा को साफ करने का बीड़ा उठाया है। इस शख्स का नाम है कालिपदा दास। 48 साल के दास बहरामपुर के रहने वाले हैं। पहले ये मछली पकड़ने का काम करते थे। लेकिन बाद में उन्होंने मछली पकड़ने का काम छोड़ दिया और गंगा की सफाई के काम से जुड़ गए। खास बात है कि यह काम ये सिर्फ अपने बूते पर करते हैं।
क्यों शुरू किया यह काम
कालिपदा दास कहते हैं कि मछली पकड़ने के दौरान उन्होंने देखा कि गंगा में गंदगी बहुत ज्यादा है। जगह-जगह कचरा मिलता। वे नाव से मछली पकड़ने निकलते थे और दूर-दूर तक जाते थे। उन्होंने बताया कि जहां भी वे नदी में जाते, बहुत ज्यादा गंदगी देखने को मिलती। खासकर, प्लास्टिक कचरा काफी पड़ा मिलता। इसके बाद उन्होंने गंगा को साफ करने का संकल्प लिया।
नाव से जाते हैं कई घाटों पर
कालिपदा दास का कहना है कि अब उन्होंने मछली पकड़ने का काम छोड़ दिया है और नाव से गंगा के कई घाटों पर जाते हैं। वे वहां से प्लास्टिक के कचरे की सफाई करते हैं। वे बताते हैं कि पानी में रहने वाले जीवों को प्लास्टिक से बहुत नुकसान पहुंचता है। जो प्लास्टिक वह गंगा नदी के कई घाटों से इकट्ठा करते हैं, उसे वे बेच देते हैं। लेकिन बिकने लायक प्लास्टिक बहुत कम मिल पाता है। बता दें कि भारत में अभी सबसे ज्यादा सिंगल यूज वाला प्लास्टिक प्रचलन में है।
ज्यादा नहीं होती कमाई
ऐसा प्लास्टिक ज्यादा नहीं मिल पाता जो रिसाइकिल किया जा सके। ऐसा ही प्लास्टिक बिक पाता है। कालिपदा दास ने अपने साथ कुछ और मछुआरों को भी जोड़ लिया है, जो उनके साथ गंगा की सफाई के अभियान में लगे हैं। ये घाटों पर बिखरी और नदी में तैरती पानी की बोतलों और दूसरे प्लास्टिक कचरे को जमा करते हैं। उनका कहना है कि दिन भर में 5-6 घंटे तक वे यह काम करते हैं और करीब दो क्विंटल प्लास्टिक कचरा जमा कर लेते हैं। उनका कहना है कि पढ़े-लिखे लोग प्लास्टिक कचरा फैलाने में सबसे आगे हैं।