मालामाल हुआ मछुआरा, दो मछलियों ने बदल दी किस्मत

कहते हैं कि किस्मत जब साथ देती है तो खाकपति को भी लखपति बनते देर नहीं लगती। ऐसा ही कुछ हुआ पाकिस्तान के कराची के एक मछुआरे के साथ। 

हटके डेस्क। कहते हैं कि किस्मत जब साथ देती है तो खाकपति को भी लखपति बनते देर नहीं लगती। ऐसा ही कुछ हुआ पाकिस्तान के कराची के एक मछुआरे के साथ। कराची का रहने वाला यह मछुआरा अरब सागर में मछलियां पकड़ कर जीवन-यापन करता था। महंगाई के इस जमाने में किसी तरह मछली पकड़ने के इस धंधे से उसका काम चल रहा था। उसने कभी सोचा भी नहीं था कि अचानक वह लाखों रुपए का मालिक बन जाएगा। लेकिन ऊपर वाला जब देता है तो छप्पर फाड़ कर देता है, इस मछुआरे पर यह कहावत पूरी तरह चरितार्थ हुई। दरअसल, एक दिन उसके जाल में दो बेशकीमती मछलियां फंस गईं। जब वह बाजर में उन मछलियों को बेचने गया तो उनकी बोली 10-10 लाख रुपए लगाई गई। इस तरह, एक बार में ही गरीब मछुआरा 20 लाख रुपए का मालिक बन गया।

वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड ने क्या कहा
पर्यावरण और जीव-जंतुओं के संरक्षण के लिए काम करने वाली संस्था वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड (डब्ल्यू डब्ल्यू एल एफ) ने इस मछली के बारे में बताते हुए कहा कि यह एक खास ही मछली है, जिसकी मांग कई देशों में बहुत ज्यादा है। ऐसा इसमें पाए जाने वाले खात करह के एयर ब्लैडर को लेकर है। ग्रीनपीस संस्था के मुताबिक, हांगकांग में इस मछली का एयर ब्लैडर करीब 2 लाख डॉलर में बिकता है, वहीं चीन में इस मछली को शुभ माना जाता है। वहां इसका इस्तेमाल बतौर करंसी किया जाता है। जैसे संकट की स्थिति में भारत में लोग सोना बेच कर अपना काम चलाते हैं, चीन में इस मछली को बेचते हैं। 

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दवा कंपनियों को भी होती है जरूरत
इस मछली की जरूरत दवा निर्माता कंपनियों को भी होती है। इससे कई तरह की दवाइयां बनती हैं। दवा निर्माता कंपनियां इस मछली के लिए मुंहमांगा दाम देने के लिए हमेशा तैयार रहती हैं। यह मछली बहुत कम पाई जाती है। इसके महंगे होने की एक वजह यह भी है। 

दुर्लभ प्रजाति की है यह मछली
यह मछली सव्वा प्रजाति की है और इसे दुर्लभ बताया जाता है। अलग-अलग जगहों पर इसे अलग नामों से जाना जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम ‘अरगाइरोसोम्स जापोनिकस’ है। इस नस्ल की मछलियां ज्यादातर ब्लूचिस्तान और सिंध के समुद्र में पाई जाती है। पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाली संस्थाओं का कहना है कि मछली की इस प्रजाति का अस्तित्व बढ़ते प्रदूषण की वजह से संकट में है और इनके संरक्षण की जरूरत है।  

 

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