इन किलों के बनवाने का मकसद था कुछ खास, पहले कोई नहीं जान सका था इसका रहस्य

कभी कुछ ऐसी इमारतें देखने को मिलती हैं, जिनके बनाने का मकसद समझ में नहीं आता है। लेकिन कोई भी चीज बेमतलब तो नहीं बनाई जाती। 

हटके डेस्क। कई बार कुछ ऐसी चीजें देखने को मिलती हैं, जो रहस्यमय लगती हैं। अक्सर लोगों को इनके बारे में पता नहीं होता। ऐसी ही कुछ किलानुमा इमारतें इंग्लैंड में टेम्स नदी से कुछ मील अंदर जाने पर देखने को मिलती हैं। इन्हें देखने के बाद अक्सर लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि इनके बनाने का मकसद क्या रहा होगा। गहरे पानी में बनाए गए ये किले वास्तुकला और इंजीनियरिंग का खास नमूना हैं। यहां आने वाले पर्यटक इन्हें देखने जाते हैं और करीब 77 साल पुराने बने इन किलों को देख कर हैरान रह जाते हैं।

रेड सैंड्स फोर्ट है इनका नाम
इन किलों को रेड सैंड्स फोर्ट के नाम से जाना जाता है। लंदन की मशहूर टेम्स नदी के मुहाने के पास बने इन किलों तक नाव के जरिए पहुंचा जा सकता है। वैसे, ये देखने में बहुत आकर्षक नहीं हैं, लेकिन इनका ढांचा ऐसा है कि पर्यटक यहां तक इन्हें देखने आ ही जाते हैं। ये गहरे पानी में बने भारी स्ट्रक्चर हैं। आज से कुछ पहले इनकी हालत बहुत खराब हो गई थी और ये जर्जर अवस्था में पहुंच गए थे, लेकिन अब इनके रख-रखाव पर ध्यान दिया जाने लगा है।

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यहां शुरू किया गया था रेडियो स्टेशन
1960 के दशक में जब कुछ युवाओं का ध्यान इन खाली पड़े किलों की तरफ गया तो उन्होंने यहां एक रेडियो स्टेशन शुरू कर दिया। लेकिन 1967 में ब्रिटेन की सरकार ने यहां से चल रहे रेडियो स्टेशन को बंद करवा दिया, क्योंकि यह निजी तौर पर चलाया जा रहा था और सरकार को शक था कि गलत प्रचार के लिए इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। 

इतिहासकारों का गया ध्यान
21वीं सदी की शुरुआत में कुछ इतिहासकारों, मिलिट्री अफसरों और सिविल इंजीनियरों का ध्यान इन किलों की तरफ गया। उनकी पहल पर इन किलों की मरम्मत का काम शुरू किया गया और इसे प्रोजेक्ट रेड सैंड नाम दिया गया। इतिहासकारों ने बताया कि इन किलों को सेकंड वर्ल्ड वॉर के दौरान जर्मनी के हमलों से बचाव के लिए साल 1943 में बनाया गया था और यहां काफी संख्या में ब्रिटिश सैनिक रहते थे। वे लगातार जर्मनी के लड़ाकू विमानों की यहां से निगरानी करते थे, ताकि समय रहते ब्रिटिश सेना को अलर्ट कर सकें और लंदन को जर्मनी की बमबारी से बचा सकें। ये किले अब इतिहास की धरोहर हैं।

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