एमनेस्टी के आरोप, सऊदी अरब ने दमन के टूल की तरह एंटी टेररिस्ट कोर्ट का किया इस्तेमाल

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने बृहस्पतिवार को कहा कि सऊदी अरब ने शांतिपूर्ण आलोचकों, कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, मौलवियों और अल्पसंख्यक शिया मुस्लिमों को बंदी बनाने के लिए ‘‘दमन के हथियार’’ के तौर पर स्थापित खुफिया अदालत का इस्तेमाल किया

दुबई: एमनेस्टी इंटरनेशनल ने बृहस्पतिवार को कहा कि सऊदी अरब ने शांतिपूर्ण आलोचकों, कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, मौलवियों और अल्पसंख्यक शिया मुस्लिमों को बंदी बनाने के लिए ‘‘दमन के हथियार’’ के तौर पर स्थापित खुफिया अदालत का इस्तेमाल किया। उसने कहा कि इनमें से कुछ लोगों को मौत की सजा दी गई।

मानवाधिकारों पर नजर रखने वाले लंदन स्थित संगठन ने अपनी 53 पृष्ठों की रिपोर्ट के लिए अदालती दस्तावेजों का अध्ययन किया और कार्यकर्ताओं तथा वकीलों से बात की। इसमें विशेष आपराधिक अदालत की गुप्त कार्यवाइयों पर प्रकाश डाला गया है।

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रिपोर्ट में कहा गया है कि अदालत में मुकदमे ‘‘न्याय का मजाक’’ है और इसके न्यायाधीश सरकार के खिलाफ आवाज उठाने वालों को दबाने में ‘‘सह अपराधी’’ हैं। आतंकवाद संबंधित अपराधों के मुकदमे चलाने के लिए 2008 में स्थापित अदालत ने 2011 में सरकार के आलोचकों पर मुकदमा चलाना शुरू किया।

मुकदमों में कुछ साझा आरोपों में सऊदी अरब 

एमनेस्टी ने कहा कि मुकदमों में कुछ साझा आरोपों में सऊदी अरब के ‘‘शासक की अवमानना’’ करना, अधिकारियों की ‘‘ईमानदारी पर सवाल उठाना’’, ‘‘प्रदर्शनों का आह्वान करके सुरक्षा बाधित करना तथा व्यवस्था में बाधा उत्पन्न करना’’ और ‘‘विदेशी समूहों को गलत सूचना देना’’ शामिल है।

एमनेस्टी ने रिपोर्ट में 2011 तथा 2019 के बीच विशेष अदालत के समक्ष आये 95 लोगों के मुकदमों के दस्तावेज उल्लेखित किये। इनमें से 68 शिया हैं जिनमें से अधिकांश पर सरकार विरोधी प्रदर्शनों में भाग लेने के लिए मुकदमा चलाया गया जबकि 27 लोगों पर उनकी राजनीतिक सक्रियता या अभिव्यक्ति के लिए मुकदमा चलाया गया।

(यह खबर समाचार एजेंसी भाषा की है, एशियानेट हिंदी टीम ने सिर्फ हेडलाइन में बदलाव किया है।)

(फाइल फोटो)
 

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