
नई दिल्ली: देश के पहले सेटेलाइट 'आर्यभट्ट' को आज ही के दिन अंतरिक्ष में भेजा गया था।'आर्यभट्ट' को 19 अप्रैल 1975 को लॉन्च किया गया था। इसका वजन 360 किलोग्राम था। यह भारत का पहला वैज्ञानिक उपग्रह था। इस सैटेलाइट को इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गनाइजेशन (ISRO) ने सोवियत यूनियन की मदद से बनाया था। वैज्ञानिकों ने इसका इसका इस्तेमाल एक्स-रे, खगोल विज्ञान, अंतरिक्ष विज्ञान और सौर भौतिकी की जानकारी हासिल करने के लिए किया था।
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो इस सैटेलाइट को पीन्या में तैयार किया गया था, लेकिन इसका प्रक्षेपण सोवियत यूनियन की सहायता से कॉस्मॉस-3 एच से किया गया था। इसके एवज में 1972 में इसरो के वैज्ञानिक यूआर राव ने सोवियत संघ रूस के साथ एक एग्रीमेंट साइन किया था, जिसके तहत संघ रूस भारतीय बंदरगाहों का इस्तेमाल जहाजों को ट्रैक करने के लिए कर सकता था।
अमेरीका दे रहा था भाड़े पर रॉकेट
बता दें कि USSR के इस प्रोजेक्ट से जुड़ने से पहले अमेरिका भारत को भाड़े पर रॉकेट देने को तैयार हुआ था। इस उपग्रह को लॉन्च करने के लिए अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने स्काउट रॉकेट देने की बात कही थी। इस बात की जानकारी जब USSR को हुई, तो वह खुद मदद के लिए आगे आया।
1992 को लौटा सैटेलाइट
देश के पहले सैटेलाइट आर्यभट्ट को यह नाम इंदिरा गांधी ने महान खगोलविद और गणितज्ञ आर्यभट्ट के नाम पर रखा था। 11 फरवरी 1992 में सैटेलाइट दोबारा पृथ्वी पर लौटा था। 360 किलोग्राम वजनी आर्यभट्ट को सोवियत संघ के इंटर कॉसमॉस रॉकेट की मदद से अंतरिक्ष में भेजा गया था।
दो रुपये के नोट पर छापा सैटेलाइट
1975 में इस सैटेलाइट के लॉन्च होने के मौके पर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने 1976 में दो रुपये के नोट के पिछले हिस्से पर छापा। 1997 तक दो रुपये के नोट पर आर्यभट्ट उपग्रह की तस्वीर छापी गई. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 21 साल तक दो रुपए के नोट पर आर्यभट्ट सैटेलाइट छाया रहा.
जारी हुआ था डाक टिकट
भारत की इस कामयाबी के जश्न में सोवियत संघ भी शामिल हुआ और दोनों ने मिलकर एक डाक स्मृति टिकट लान्च किया था। इस सैटेलाइट को बनाने से लेकर भेजने तक में तीन करोड़ के खर्च का अनुमान था, लेकिन आखिरी समय में यह बजट बढ़ गया था।
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