बलूचिस्तान का अधूरा विद्रोह: पाकिस्तान की नीतियां और संकटग्रस्त प्रांत

Published : Aug 25, 2025, 11:56 PM IST
 Balochistan Liberation Army

सार

बलूचिस्तान के लोग पाकिस्तान से अलग होने के लिए विद्रोह कर रहे हैं। पाकिस्तान की सरकार ने विद्रोह कुचलने के लिए जितने सख्त प्रयास किए, उससे अलगाववाद और अधिक बढ़ गया है।

Balochistan Rebellion: पिछले साल 26 अगस्त को नवाब अकबर बुगती की हत्या की बरसी पर बलूचिस्तान के राजमार्गों पर सिलसिलेवार हमलों में 70 से ज्यादा लोगों की जान गई थी। बलूचिस्तान के बहुत से लोगों के लिए इस तारीख का गहरा राजनीतिक महत्व है। 2006 में तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के आदेश पर हुए एक सैन्य अभियान में बुगती की मौत हुई थी। इसके बाद बुगती बलूच प्रतिरोध के एक शक्तिशाली प्रतीक के रूप में स्थापित हुए थे।

बलूचिस्तान की कहानी पाकिस्तानी राज्य द्वारा नियंत्रण स्थापित करने के बार-बार किए गए प्रयासों और सत्ता से अलग-थलग महसूस करने वाले स्थानीय समूहों द्वारा बार-बार किए गए प्रतिरोध की है। 1948 में कलात के विलय से लेकर 1950 के दशक की वन-यूनिट नीति और 1970 के दशक के बड़े पैमाने पर अभियान तक, यह प्रांत लगातार विद्रोहों और दमनात्मक कार्रवाइयों से गुजरा है। प्रत्येक चरण ने गहरे निशान छोड़े हैं। इससे बलूच समुदायों और इस्लामाबाद सरकार के बीच दूरी की भावना को मजबूती मिली है।

हाल के आंकड़े बताते हैं कि यह चक्र कैसे जारी है। बलूचिस्तान मानवाधिकार परिषद की रिपोर्ट के अनुसार 2024 में 830 लोगों को जबरन गायब किया गया। 480 लोगों की हत्या की गई। लापता लोगों में सबसे बड़ी संख्या छात्रों की थी। विद्रोहियों द्वारा हमला किए जाने के बाद गायब होने की घटनाओं में वृद्धि होती है। इससे संकेत मिलता है कि पाकिस्तान के कानून के अनुसार कार्रवाई की जगह बलूचिस्तान के लोगों को सामूहिक दंड दिया जा रहा है। पाकिस्तान के आधिकारिक जबरन गुमशुदगी जांच आयोग ने 2011 से 10,000 से अधिक मामले दर्ज किए हैं। वहीं, मानवाधिकार समूहों का कहना है कि ये संख्याएं मामले के पैमाने को कम करके बताती हैं।

पाकिस्तान के लिए चुनौती सिर्फ सुरक्षा नहीं

बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी जैसे विद्रोही समूहों ने सरकारी बुनियादी ढांचे और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के तहत चीन समर्थित परियोजनाओं पर हमला किया है। इसके जवाब में सुरक्षा अभियान और भी कठोर हो गए हैं। हालांकि, मानवाधिकार विशेषज्ञों का तर्क है कि इस सख्त रवैये ने अलगाववाद को कम करने के बजाय और गहरा कर दिया है।

अंतरराष्ट्रीय जांच सीमित बनी

पाकिस्तान ने 2010 में नागरिक एवं राजनीतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय नियमों का समर्थन करने की बात की। हालांकि, उसने जबरन गुमशुदगी पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन पर साइन नहीं किए हैं। जबरन गुमशुदगी पर संयुक्त राष्ट्र कार्य समूह अभी भी अपनी रिपोर्टों में पाकिस्तान का हवाला देता है। एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्यूमन राइट्स वॉच ने इस प्रथा को समाप्त करने में विफल रहने के लिए इस्लामाबाद की आलोचना की है।

विद्रोह का जारी रहना एक गहरे मुद्दे की ओर इशारा करता है। दशकों के राजनीतिक हाशिए पर धकेले जाने और आर्थिक शोषण ने ऐसी शिकायतें पैदा की हैं। इससे गायब करने और बल प्रयोग से नहीं मिटाया जा सकता। हर विरोध प्रदर्शन, लापता छात्र और बुगती की बरसी यह दर्शाती है कि बलूचिस्तान का संकट नीति का नतीजा है, संयोग का नहीं।

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