CNAS के टेबलटॉप अभ्यास से पता चला है कि ताइवान को लेकर चीन और अमेरिका के बीच युद्ध हुआ तो इसके न्यूक्लियर वार में बदलने का डर है।
वर्ल्ड डेस्क। वाशिंगटन स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर ए न्यू अमेरिकन सिक्योरिटी (CNAS) ने एक खास टेबलटॉप अभ्यास किया है। इसमें इस बात का पता लगाया गया है कि 2032 के आसपास चीन और अमेरिका के बीच परमाणु युद्ध हुआ तो क्या होगा। एक्सपर्ट के अनुसार ताइवान को लेकर चल रहे तनाव के चीन-अमेरिका युद्ध में बदलने का खतरा है। डर है कि पहले दोनों देशों के बीच ताइवान को लेकर पारंपरिक युद्ध हो सकता है जो आगे चलकर न्यूक्लियर वॉर में बदल जाए।
सिनारियो में यह माना गया कि ताइवान पर 45 दिनों के लड़ाई के बाद चीन "थिएटर" परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर सकता है। चीन शुरुआत में बड़े शहरों को निशाना बनाने के लिए डिजाइन की गई रणनीतिक परमाणु मिसाइलों की जगह कम दूरी और कम-क्षमता वाले हथियारों का इस्तेमाल कर सकता है। इन्हें गुआम, क्वाजालीन एटोल और अमेरिकी एयरक्राफ्ट कैरियर स्ट्राइक ग्रुप जैसी प्रमुख सैन्य संपत्तियों पर दागा जा सकता है।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार लेखक एंड्रयू मेट्रिक, फिलिप शियर्स और स्टेसी पेटीजॉन ने ताइवान पर 2032 के काल्पनिक लड़ाई में परमाणु हथियारों के इस्तेमाल होने की संभावना का पता लगाने के लिए दो TTX का इस्तेमाल किया। "स्पाइक द बॉल" और "कोल्ड स्टॉप" नाम के अभ्यासों में विभिन्न स्थितियों को टेस्ट किया गया।
जनवरी 2024 तक किस देश के पास हैं कितने परमाणु हथियार
अमेरिका चीन की परमाणु क्षमता
जहां तक परमाणु हथियार और उन्हें लॉन्च करने की क्षमता की बात है अमेरिका चीन से काफी आगे है। अमेरिका के पास चीन से ज्यादा व्यापक और उन्नत परमाणु हथियारों के भंडार हैं। US के पास जमीन से लॉन्च किए जाने वाले ICBM (Intercontinental Ballistic Missiles), पनडुब्बी से दागे जाने वाले SLBM (Submarine-launched Ballistic Missiles) और स्ट्रेटेजिक बॉम्बर हैं। हवा, पानी और जमीन से परमाणु हथियार दागने की यह क्षमता अमेरिका को सेकंड स्ट्राइक कैपेबिलिटी देती है। मतलब परमाणु हमला होने के बाद भी US अपने दुश्मन पर न्यूक्लियर अटैक कर सकता है।
दूसरी तरफ चीन के पास अमेरिका की तुलना में कम परमाणु शक्ति है। हालांकि चीन अपनी क्षमता को बढ़ाने पर लगातार काम कर रहा है। यह अपने परमाणु हथियारों की संख्या तेजी से बढ़ा रहा है। चीन ने परमाणु हथियारों के लिए नई मोबाइल मिसाइल प्रणाली, पनडुब्बी से लॉन्च की जाने वाली बैलिस्टिक मिसाइलों में सुधार और कई मजबूत आईसीबीएम साइलो का निर्माण किया है। 2030 तक चीन के पास लगभग 1,000 ऑपरेशनल परमाणु हथियार हो सकते हैं।
चीन अधिक लचीले और संभावित रूप से अधिक आक्रामक परमाणु रुख की ओर बढ़ रहा है। स्टडी के अनुसार ताइवान को लेकर लंबे समय तक लड़ाई चली तो चीन कम क्षमता और दूरी के परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर सकता है। यदि चीन सीमित परमाणु हमले करता है तो अमेरिका को इसका जवाब देना होगा।
अभ्यास से पता चला कि ताइवान के क्षेत्र में चीन लाभ की स्थिति में है। इस क्षेत्र में अमेरिका के कई सैन्य अड्डे द्वीप देशों में है। यहां चीन के लिए हमला करना आसान है। दूसरी ओर अमेरिकी टीम को जवाबी कार्रवाई में कठिनाई हो सकती है। चीन के प्रमुख लक्ष्य उसकी मुख्य भूमि पर हैं। इससे पूर्ण पैमाने पर परमाणु युद्ध बढ़ने का खतरा बढ़ जाता है। अमेरिका के पास कम जोखिम वाले लक्ष्यों, जैसे युद्धपोतों और दक्षिण चीन सागर में चीनी ठिकानों पर हमला करने के लिए आवश्यक हथियारों की कमी थी।
अभ्यास में पता चला कि चीन के साथ लड़ाई हुई तो 45वें दिन तक अमेरिका की सबसे एडवांस गैर-परमाणु मिसाइलें खत्म हो जाएंगी। अमेरिका के पास अब परमाणु हथियार वाले एंटी-शिप मिसाइलें नहीं हैं। रूस के पास ऐसी मिसाइलें हैं। इसके चलते अमेरिका के विकल्प सीमित हो गए हैं। 2030 के दशक के लिए एक नई पनडुब्बी से लॉन्च की जाने वाली परमाणु क्रूज मिसाइल तैयार करने की योजना है। एक बार मिसाइल दागे जाने के बाद पनडुब्बी कहां है यह पता चल जाएगा। इसके बाद उसे खत्म किए जाने का डर होगा।
अमेरिका-चीन जंग में सहयोगियों की भूमिका और दुनिया पर इसके प्रभाव
अमेरिका-चीन के बीच परमाणु लड़ाई हो तो अमेरिका के सहयोगी की भूमिका बढ़ जाएगी। उनपर खतरा भी अधिक होगा। चीन जापान या ऑस्ट्रेलिया जैसे अमेरिकी सहयोगियों के खिलाफ परमाणु बल का इस्तेमाल कर सकता है, ताकि अमेरिकी गठबंधन नेटवर्क को कमजोर किया जा सके। अमेरिका और चीन के बीच परमाणु जंग का दुनिया पर असर विनाशकारी होगा। इससे पूरी मानव जाति को खतरा होगा।