सऊदी अरब को Ballistic Missiles बनाने में मदद कर रहा चीन, अमेरिकी खुफिया एजेंसियों का दावा

सऊदी अरब चीन की मदद से मिसाइल बनाने में सक्रिय है। सऊदी अरब में कम से कम एक जगह पर मिसाइलों का निर्माण चल रहा है। वह चीन से पहले मिसाइल खरीदता रहा है, लेकिन इससे पहले उसने खुद से मिसाइल नहीं बनाया था। 

Asianet News Hindi | Published : Dec 23, 2021 10:56 PM IST / Updated: Dec 24 2021, 04:29 AM IST

वाशिंगटन। अमेरिका की खुफिया एजेंसियों ने दावा किया है कि चीन (China) सऊदी अरब (Saudi Arabia) को बैलिस्टिक मिसाइल (Ballistic Missiles) बनाने में मदद कर रहा है। अमेरिकी एजेंसियों के हवाले से कहा गया है कि सऊदी अरब चीन की मदद से मिसाइल बनाने में सक्रिय है। वह चीन से पहले मिसाइल खरीदता रहा है, लेकिन इससे पहले उसने खुद से मिसाइल नहीं बनाया था। अमेरिका की न्यूज वेबसाइट सीएनएन ने सैटेलाइट से ली गई तस्वीरों के आधार पर कहा है कि सऊदी अरब में कम से कम एक जगह पर मिसाइलों का निर्माण चल रहा है। 

सऊदी अरब द्वारा मिसाइल निर्माण करने से गल्फ के देशों के बीच ताकत का संतुलन बिगड़ने की संभावना जताई जा रही है। सऊदी अरब और ईरान के बीच दुश्मनी है। अमेरिका, यूरोप, इजराइल और खाड़ी के देश ईरान पर अपना मिसाइल कार्यक्रम आगे नहीं बढ़ाने का दवाब डालते रहे हैं। ईरान के साथ इन देशों की न्यूक्लियर डील पर बातचीत भी हो रही है। अगर सऊदी अरब खुद मिसाइलों का निर्माण करता है तो ईरान को मिसाइल बनाने से रोकना कठिन होगा। 

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ईरान के बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम पर है दुनिया का है ध्यान
हथियार विशेषज्ञ और मिडिलबरी इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में प्रोफेसर जेफरी लुईस के अनुसार वर्तमान में दुनिया का ध्यान ईरान के बड़े बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम पर केंद्रित है। इन केंद्रों की जांच भी की जाती है। दूसरी ओर सऊदी अरब ने बैलिस्टिक मिसाइलों के उत्पादन की समान स्तर से जांच की इजाजत नहीं दी है। सऊदी अरब द्वारा बैलिस्टिक मिसाइलों के घरेलू उत्पादन से पता चलता है कि मिसाइल प्रसार को नियंत्रित करने के लिए किसी भी राजनयिक प्रयास में सऊदी अरब जैसे अन्य क्षेत्रीय देशों को शामिल करने की आवश्यकता होगी। 

दूसरी ओर चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है कि सऊदी अरब और चीन व्यापक रणनीतिक साझेदार हैं। दोनों देशों ने सैन्य व्यापार क्षेत्र सहित सभी क्षेत्रों में मैत्रीपूर्ण सहयोग बनाए रखा है। इस तरह का सहयोग किसी भी अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन नहीं करता है। इसमें बड़े पैमाने पर हथियारों का प्रसार शामिल नहीं है।

 

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