
श्रीनगर. चीन भारत के विरोध के बावजूद पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) के गिलगित बाल्टिस्तान में दिआमेर-ब्हाशा बांध बना रहा है। इस बांध के बनने से इस क्षेत्र में पर्वतों पर उकेरी गईं बौद्ध धर्म की धरोहरें भी डूब जाएंगी। भारत के विरोध के अलावा इस क्षेत्र में रहने वाले लोग भी इस बांध का विरोध कर रहे हैं। स्थानीय लोग इन कलाकृतियों का संरक्षण करने की मांग कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि यहां पर्यटन क्षेत्र की काफी संभावनाएं हैं।
13 मई को पाकिस्तान सरकार ने चीन की एक कंपनी के साथ बांध के निर्माण के लिए 442 बिलियन रुपए की डील साइन की। इसके बाद से इस मुद्दे को लेकर विवाद छाया हुआ है। बताया जा रहा है कि इस बांध के निर्माण से यहां के 50 गांव डूब जाएंगे।
मुस्लिम कर रहे योजना का विरोध
कई स्थानीय मुस्लिम भी सोशल मीडिया पर बांध निर्माण का विरोध कर रहे हैं। ये लोग बांध से समृद्ध विरासत के नष्ट होने की संभावनाओं से दुखी हैं। इनमें से एक ने लिखा, जल्द ही बांध बनने के साथ ही इंडिक इतिहास की संपत्ति भी पानी में डूब जाएगी।
इसी क्षेत्र में रहने वाले अरब अली बैग लिखते हैं कि पर्वतों पर उकेरी गईं आकृतियां गिलगित बाल्टिस्तान के लगभग सभी क्षेत्रों में मौजूद हैं। खासकर दिआमेर, हुंजा और नागर में। इनके जरिए सिंधु और श्योक संभताओं को महसूस किया जा सकता है।
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