क्लाइमेट का नरसंहार: पाकिस्तान में आई विनाशकारी बाढ़ का पानी उतरने में लगेंगे 6 महीने, एक चौंकाने वाली स्टडी

वैज्ञानिकों ने कन्फर्म किया है कि जलवायु परिवर्तन(climate change) ने बारिश बढ़ाकर पाकिस्तान की बाढ़ में बड़ी भूमिका निभाई है। वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन की एक रिसर्च से पता चलता है कि क्षेत्र में बारिश को 50-75 प्रतिशत बढ़ाकर जलवायु संकट ने बाढ़ ला दी।

Amitabh Budholiya | Published : Sep 16, 2022 3:28 AM IST / Updated: Sep 16 2022, 08:59 AM IST

वर्ल्ड न्यूज. पाकिस्तान में आई विनाशकारी बाढ़(devastating floods) को लेकर की गई एक रिसर्च में बड़ा खुलासा हुआ है। वैज्ञानिकों ने कन्फर्म किया है कि जलवायु परिवर्तन(climate change) ने बारिश बढ़ाकर पाकिस्तान की बाढ़ में बड़ी भूमिका निभाई है। वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन(World Weather Attribution) की एक रिसर्च से पता चलता है कि क्षेत्र में 50-75 प्रतिशत बारिश बढ़ाकर जलवायु संकट ने बाढ़ ला दी। सिंध और बलूचिस्तान क्षेत्र में भारी वर्षा में नाटकीय रूप से वृद्धि हुई है, क्योंकि मनुष्यों ने वायुमंडल में बड़ी मात्रा में ग्रीनहाउस गैसों(greenhouse gases) को उत्सर्जित करना शुरू कर दिया है। विनाशकारी बाढ़ के बाद पाकिस्तान के कुछ हिस्सों में मलेरिया, डेंगू और मच्छर जनित बीमारियों के 4,000+ मामले दर्ज किए गए। मौतें लगभग 1,500 तक पहुंच गई हैं। सिंध में मानसून की बारिश सामान्य से 460% अधिक थी और बाढ़ के पानी को कम होने में 6 महीने लग सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र ने इसे जलवायु नरसंहार(limate carnage) कहा है। पढ़िए पूरी कहानी...

जानिए क्या रिसर्च निकली
एक वैज्ञानिक स्टडी में पाया गया है कि इस साल पाकिस्तान की ऐतिहासिक बाढ़ में जलवायु संकट की भूमिका थी, जिसने देश में अभूतपूर्व तबाही मचाई। इसमें 1,500 से अधिक लोग मारे गए और 33 मिलियन से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंटोनियो गुटेरेस( UN chief Antonio Guterres) ने इस तबाही को जलवायु नरसंहार(climate carnage) के रूप में बयां किया है। जबकि पाकिस्तान की सरकार ने अमीर देशों को तबाही के लिए जिम्मेदार ठहराया है।

इन बाढ़ों की घटना और तीव्रता में वार्मिंग ग्रह(warming planet) की भूमिका यानी बढ़ते टेम्परेचर का आकलन करने के लिए यह पहली बार एक वैज्ञानिक अध्ययन किया गया है। विश्व मौसम एट्रिब्यूशन (WWA) द्वारा जारी रिसर्च में मौसम की इस तरह की चरम घटनाओं के रीयल-टाइम एट्रिब्यूशन एनालिसिस करने की पहल से पता चलता है कि जलवायु संकट ने वास्तव में इस क्षेत्र में 50-75 प्रतिशत वर्षा को तेज करके पाकिस्तान की बाढ़ में एक भूमिका निभाई है। 

10 देशों के रिसर्चर्स ने की स्टडी
10 देशों के 26 शोधकर्ताओं द्वारा किए गए रैपिड एट्रिब्यूशन स्टडी ने यह पता करने के लिए वैज्ञानिक मॉडल और ऐतिहासिक डेटा का उपयोग किया कि अगर 1800 के दशक के उत्तरार्ध से दुनिया पहले से ही लगभग 1.2C तक गर्म नहीं हुई होती, और अब तक न जानें कितनी बार इस तरह की घटनाएं हो चुकी होतीं।  स्टडी में दो डेटासेट का उपयोग किया गया था-पहला, जून और सितंबर में पाकिस्तान की सबसे बड़ी नदी सिंधु नदी के आसपास के क्षेत्रों में सबसे भारी वर्षा की 60 दिनों की अवधि थी। दूसरा सिंध और बलूचिस्तान के दक्षिणी प्रांतों में सबसे भारी वर्षा की पांच दिनों की अवधि थी, जिसमें भारी बाढ़ आई थी। रिसर्च में पाया गया कि जलवायु परिवर्तन ने सिंध और बलूचिस्तान में पांच दिनों की अवधि में वर्षा की तीव्रता को 75 प्रतिशत तक बढ़ा दिया। जबकि 60 दिनों का यह मानसून सीजन गर्म होने के कारण लगभग 50 प्रतिशत अधिक तीव्र था।

सिंध और बलूचिस्तान के दक्षिणी प्रांत पिछले कुछ हफ्तों में बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। यहां अब तक का सबसे गर्म महीना अगस्त दर्ज किया गया था। इस क्षेत्र में हुई असामान्य वर्षा का वर्णन करने के लिए अधिकारियों द्वारा मॉन्स्टर मानसून(monster monsoon) यानी राक्षस मानसून और स्टेरॉयड पर मानसून(monsoon on steroids) यानी मानसून के हॉर्मोन(व्यवहार) में बदलाव जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया है। इन दोनों राज्यों में इस सीजन में अपनी नॉर्मल मंथली कुल बारिश का क्रमश: सात और आठ गुना बारिश हुई। अगस्त में ओवरऑल रूप से पाकिस्तान में सामान्य से तीन गुना अधिक बारिश हुई है। स्टडी में पाया गया कि इस तरह की घटनाएं हर 100 साल में एक बार हो सकती हैं या दूसरे शब्दों में वार्मिंग के मौजूदा स्तरों के कारण हर साल होने की 1 प्रतिशत आशंक है।

जानिए वैज्ञानिक ने क्या कहा
WWA के सह-प्रमुख और ग्रंथम इंस्टीट्यूट में जलवायु विज्ञान में सीनियर लेक्चरर डॉ फ्रेडरिक ओटो( Dr Friederike Otto, co-lead of WWA and senior lecturer in climate science at the Grantham Institute) ने कहा, "हमारे सबूत बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन ने बाढ़ की घटना में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हालांकि हमारा विश्लेषण हमें यह निर्धारित करने की अनुमति नहीं देता है कि यह भूमिका कितनी बड़ी थी।" उन्होंने यह अवश्य कहा कि यह रिजल्ट वर्षों से जलवायु अनुमानों की भविष्यवाणी के अनुरूप हैं। यानी सटीक बैठता है।

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