
H-1B Visa Impact on Indians: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इमिग्रेशन पर नकेल कसने के लिए एच-1बी वीजा आवेदकों पर 1,00,000 डॉलर (88 लाख रुपये) की फीस वसूलने का फैसला किया है। ये कदम टेक्नोलॉजी सेक्टर के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकता है, जो भारत और चीन के कुशल श्रमिकों पर बहुत ज्यादा निर्भर है। ट्रंप के मुताबिक, इस कदम का उद्देश्य ये इंश्योर करना है कि देश में लाए जा रहे लोग ज्यादा स्किल्ड हों और अमेरिकी श्रमिकों की जगह न लें। अमेरिकी H-1B वीजा में हुए बदलाव का भारत पर क्या असर पड़ेगा, आइए जानते हैं।
ट्रंप की टीम का मानना है कि ये वीजा कार्यक्रम विदेशी वर्करों के लिए एक पाइपलाइन में तब्दील हो चुका है, जो अक्सर सालाना केवल $66,000 पर काम करने के लिए तैयार हो जाते हैं। ये अमेरिकी टेक वर्करों को को दी जाने वाली $100,000 से ज्यादा की सैलरी की तुलना में काफी कम है। ट्रंप ने कहा, मुझे लगता है कि टेक इंडस्ट्री हमारे इस कदम का विरोध नहीं करेगी। हालांकि, अब तक अमेजन, एप्पल, गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और मेटा सहित बड़ी तकनीकी कंपनियों ने इस पर कोई रिएक्शन नहीं दिया है।
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एच-1बी वीजा धारकों में अब तक भारतीय प्रोफेशनल्स की हिस्सेदारी करीब 71% है। वहीं, चीन इस मामले में 11.7 प्रतिशत के साथ दूसरे स्थान पर है। 2025 की पहली छमाही में, अमेज़न और उसकी क्लाउड-कंप्यूटिंग यूनिट, AWS को कथित तौर पर 12000 से अधिक एच-1बी वीज़ा के लिए मंज़ूरी मिली थी, जबकि माइक्रोसॉफ्ट और मेटा प्लेटफ़ॉर्म्स को 5000 से ज्यादा एच-1बी वीजा स्वीकृत हुए थे। हालांकि, ट्रम्प के नए बदलावों के बाद अमेरिकी वीजा पाने की कोशिश करने वाले भारतीयों की समस्या बढ़ने वाली है। हालांकि, भारतीय अगर चाहें तो ग्रीन कार्ड के लिए आवेदन कर सकते हैं, लेकिन इसके बनने में आमतौर पर लंबा समय लगता है। इस दौरान, उन्हें समय-समय पर अपने वीजा को रिन्यू कराना पड़ेगा, जिसके लिए हर बार 88 लाख रुपये से ज्यादा की फीस चुकानी होगी। अमेरिकी वाणिज्य सचिव लुटनिक के मुताबिक, एम्प्लायमेंट बेस्ड ग्रीन कार्ड प्रोग्राम के तहत हर साल 2,81,000 लोग आते थे और ये औसतन $66,000 प्रतिवर्ष कमाते थे। हम औसत अमेरिकी से भी कम इनकम वाले लोगों को भर्ती कर रहे थे, जो कि पूरी तरह इलॉजिकल था। दुनिया का एकमात्र देश, जो निम्नतम आय वाले लोगों को भर्ती कर रहा था। हम ऐसा करना बंद करने जा रहे हैं।
ट्रंप ने 'गोल्ड कार्ड' वीजा प्रोग्राम के लिए शुक्रवार को एक एग्जीक्यूटिव ऑर्डर जारी किया, जिसमें व्यक्तियों के लिए 10 लाख डॉलर और बिजनेस के लिए 20 लाख डॉलर फीस निर्धारित की गई है। ट्रंप ने कहा, "हमें लगता है कि यह बहुत सफल होगा। इससे अरबों डॉलर जुटेंगे, जिससे लोगों पर टैक्स कम होंगे, कर्ज चुकाया जा सकेगा और भी कई अच्छे काम किए जा सकेंगे।" अमेरिकी वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक ने कहा कि 'गोल्ड कार्ड' योजना के तहत, अमेरिका केवल "शीर्ष स्तर पर असाधारण लोगों" को ही अमेरिका आने की अनुमति देगा, जो अमेरिकियों के लिए व्यवसाय और रोजगार पैदा कर सकें।
H-1B वीजा एक अस्थायी अमेरिकी वर्क वीजा है, जो कंपनियों को स्पेशलाइज्ड स्किल्स वाले विदेशी प्रोफेशनल्स को नियुक्त करने की परमिशन देता है। यह 1990 में उन लोगों के लिए बनाया गया था, जिनके पास ऐसे क्षेत्रों में ग्रैजुएट या हायर डिग्री है, जहां नौकरियां मिलना मुश्किल माना जाता है। खासकर साइंस, टेक्नोलॉजी और इंजीनियरिंग सेक्टर में। शुरुआत में ये वीजा तीन साल के लिए दिया जाता है, लेकिन इसे अधिकतम छह साल तक बढ़ाया जा सकता है। जिन लोगों को ग्रीन कार्ड (स्थायी निवास) मिल गया है, उनके वीज़ा का रिन्यूएबल अनिश्चित काल के लिए किया जा सकता है।
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