
इस्लामाबाद। बात आजादी से पहले की है। जब पाकिस्तान में हिंदुओं की संख्या खूब थी। लाहौर और रावलपिंडी जैसे शहर हिंदू और सिख बाहुल्य शहरों में गिने जाते थे। मगर 15 अगस्त 1947 के बाद स्थिति बदल गई। हिंदुओं और सिखों ने पलायन किया और भारत से मुसलमान जाकर इन शहरों में बस गए। नहीं आ पाए तो वहां हिंदुओं के बनाए मंदिर और उसमें बसे भगवान।
हालांकि, पाकिस्तान में मुस्लिमों का प्रभुत्व होने के बाद बहुत से मंदिर तोड़ दिए गए। बहुत कम ही मंदिर ऐसे हैं, जो बेहतर स्थित में हैं। इनमें कुछ भगवान कृष्ण के मंदिर हैं और जन्माष्टमी के दिन यहां चहल-पहल खूब रहती है। इसके अलावा, इस्कॉन संस्था ने भी पिछले कुछ साल में यहां दो भव्य मंदिर बनवाए हैं।
लाहौर में 20 से अधिक मंदिर पर सबकी हालत खराब, पूजा सिर्फ दो में हो रही
रावलपिंडी में भगवान श्रीकृष्ण का करीब सवा सौ साल पुराना मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण 1897 में कांचीमल और उजागरमल राम पांचाल ने कराया था। बंटवारा हुआ तो कुछ साल के लिए मंदिर बंद कर दिया गया। दो साल बाद 1949 में इसे फिर खोला गया। एक संस्था ने यहां पूजा-पाठ की जिम्मेदारी संभाली। इसके अलावा, लाहौर में अब भी 20 से अधिक मंदिर हैं। मगर पूजा सिर्फ दो में होती है। इसमें एक कृष्ण मंदिर है और दूसरा बाल्मिकि मंदिर। जन्माष्टमी पर कृष्ण मंदिर में सजावट होती है। पाकिस्तान में रहने वाले हिंदू परिवार यहां की सजावट देखने आते हैं। हालांकि, इस मंदिर पर बंटवारे के बाद दो-तीन बार हमला हुआ, जिससे मूल स्वरूप से काफी क्षतिग्रस्त हो गया है।
अमरकोट, थारपरकार और क्वेटा के श्रीकृष्ण मंदिर में जन्माष्टमी पर धूम
वह शहर जहां ओसामा बिन लादेन मारा गया यानी एबोटाबाद। जी हां, यहां भी भगवान श्रीकृष्ण का मंदिर है, मगर यह जीणशीर्ण हालात में है। ऐसे में यहां पूजा नहीं होती। हरीपुर में भी श्रीकृष्ण मंदिर है, मगर उसकी हालत भी एबोटाबाद वाले मंदिर जैसी ही है, इसलिए पूजा यहां भी नहीं होती। वैसे, अमरकोट शहर में और थारपरकार शहर में हिंदू आबादी ठीक-ठाक है। ऐसे में यहां एक-एक भगवान श्रीकृष्ण के मंदिर हैं और जन्माष्टमी धूमधाम से मनाई जाती है। सिंध में मंदिर हैं, मगर जीर्णोद्धार नहीं होने से काफी पुराने हो गए हैं। कराची में स्वामी नारायण का मंदिर है। यहां भगवान कृष्ण और राधा-कृष्ण की मूर्तियां हैं। इनमें पूजा-पाठ भी होती है। इसके अलावा, इस्कॉन ने क्वेटा में 2007 में एक मंदिर बनवाया था। यहां जन्माष्टमी भव्य रूप में मनाई जाती है।
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