G-20 ग्रुप की मीटिंग में होगी अफगानिस्तान को लेकर चर्चा; मोदी भी रखेंगे अपनी बात

अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद तमाम देशों के सामने आतंकवाद एक बड़ी समस्या बनकर उभरा है। साथ ही मानवाधिकार(Human Rights) भी एक मुद्दा है। अफगानिस्तान के मुद्दे पर आज G-20 समूह के देश मीटिंग करेंगे। इसमें PM मोदी भी शामिल होंगे।

नई दिल्ली. अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार बनने के बाद कई देशों के सामने आतंकवाद और दूसरी अन्य चुनौतियां पैदा हुई हैं। अफगानिस्तान के ऐसे ही तमाम मुद्दों पर चर्चा करने आज G-20 समूह के देश वर्चुअल मीटिंग करेंगे। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी(Prime Minister Narendra Modi) भी शामिल होंगे। अफगानिस्तान में तालिबान का आना भारत के लिए एक बड़ी चिंता का विषय है। 

अफगानिस्तान में मानवीय संकट गहराया
तालिबान ने हिंसा के बूते अफगानिस्तान पर कब्जा जमाया है। ऐसे में मानवीय संकट एक बड़ी समस्या है। बता दें कि तालिबान 15 अगस्त को अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद उसने अपनी सरकार बना ली। हालांकि पाकिस्तान और चीन के रुख को छोड़कर अभी उसे किसी देश ने मान्यता नहीं दी है।

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क्या है G-20 समूह
20 वित्त मंत्रियों और सेंट्रल बैंक के गवर्नर्स का समूह जी-20 के नाम से जाना जाता है। इसमें विश्व की 20 प्रमुख अर्थव्यवस्था वाले देश शामिल हैं। इसमें 19 देश और यूरोपीय संघ शामिल हैं। इसका प्रतिनिधित्व यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष और यूरोपीय केंद्रीय बैंक द्वारा किया है। इस समूह में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, यूरोपीय संघ, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका। स्पेन एक स्थायी अतिथि है जो, हर वर्ष आमंत्रित होता है।

दुनिया की 80 प्रतिशत अर्थव्यवस्था को नियंत्रण करते हैं G-20 समूह देश
जी-20 समूह के देश दुनिया की 80 प्रतिशत अर्थव्यवस्था को नियंत्रण करते हैं। यह बैठक भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण है। वजह, अफगानिस्तान के जरिये पाकिस्तान और चीन भारत के लिए संकट खड़े कर रहा है। अफगानिस्तान आतंकवादियों का एक बड़ा गढ़ बन गया है।

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भारत के लिए अफगानिस्तान-चीन और पाकिस्तान का 'तिकड़मी गठबंधन' एक बड़ा चैलेंज
अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार बनने के बाद भारत के पड़ोसी मुल्कों; पाकिस्तान और चीन के मिजाज बदले-बदले से नजर आ रहें। दोनों मुल्क तालिबान को समर्थन देकर अपने हित साधने में लगे हैं, लेकिन भारत के लिए ये एक चुनौती है। कांग्रेस के  सीनियर लीडर शशि थरूर ने हाल में इसी मुद्दे पर एक लेख लिखा था। इसके अनुसार अफगानिस्तान में अमेरिका की लीडरशिप में पिछले 20 सालों के 'राष्ट्र निर्माण' के असफल प्रयासों के बाद तालिबान की जीत न सिर्फ उसके साथी जिहादियों को उत्साहित करेगी, बल्कि इस क्षेत्र की भौगोलिक राजनीति(geopolitics) को भी हिलाकर रख देगी। काबुल के पतन के बाद अमेरिका के नेतृत्व वाले 'राष्ट्र-निर्माण' प्रयासों के 20 वर्षों के असफल प्रयासों के बाद तालिबान की जीत न केवल उनके साथी जिहादियों को उत्साहित करेगी, बल्कि क्षेत्र की भू-राजनीति को भी हिला देगी।

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भारत के लिए चिंता का विषय है चीन-तालिबान की दोस्ती
अफगानिस्तान की ये क्षेत्रीय गतिशीलता( regional dynamics) और चीन-पाकिस्तान से निकटता भारतीय पॉलिसीमेकर्स के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। पाकिस्तान एक दीर्घकालिक विरोधी है, जिसने भारत के खिलाफ सक्रिय रूप से वित्त पोषित और सशस्त्र उग्रवाद(funded and fomented armed militancy) को बढ़ावा दिया है। 2008 के मुंबई आतंकवादी हमलों के आयोजकों(पाकिस्तान) की मेजबानी करने वाला चीन भारत का एक रणनीतिक प्रतिद्वंद्वी है। यह आर्थिक, सैन्य और रणनीतिक खतरे पैदा करता है। कोई भी अफगानिस्तान-पाकिस्तान-चीन धुरी( axis); जिसमें नीति समन्वय( policy coordination) शामिल है, भारत के लिए एक बड़ा जोखिम है। क्लिक करके पढ़ें पूरी खबर

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