
India Russian Oil Imports: अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में एक बड़ा दावा किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें आश्वासन दिया था कि भारत रूसी तेल खरीदना बंद कर देगा। ट्रंप के अनुसार, यह प्रक्रिया तुरंत नहीं होगी, लेकिन जल्द ही पूरी हो जाएगी। ट्रंप ने भारत की तुलना हंगरी से करते हुए कहा कि भारत के पास समुद्री विकल्प हैं, जबकि हंगरी पाइपलाइन पर निर्भर है और इसलिए "फंसा" हुआ है।
हालांकि, भारत ने इस दावे को तुरंत खारिज किया। विदेश मंत्रालय (MEA) ने स्पष्ट किया कि प्रधानमंत्री और ट्रंप के बीच ऐसी कोई बातचीत नहीं हुई। भारत ने अपनी ऊर्जा नीति को बाजार और राष्ट्रीय हितों के आधार पर तय करने की पुष्टि की।
ट्रंप ने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, "भारत अब रूसी तेल नहीं खरीदेगा।" इस बयान ने न केवल अमेरिका-भारत संबंधों में हलचल पैदा की, बल्कि यह सवाल भी खड़ा किया कि भारत और हंगरी के रुख में इतना अंतर क्यों है।
ट्रंप ने हंगरी की तुलना भारत से करते हुए कहा कि हंगरी द्रुज़्बा पाइपलाइन पर निर्भर है और अंतर्देशीय देश होने के कारण कोई वैकल्पिक मार्ग नहीं है। भारत एक मुख्य समुद्री तेल आयातक है और इसलिए उसे अलग-अलग देशों से तेल खरीदने की लचीलापन हासिल है। यही कारण है कि अमेरिका भारत को ज्यादा लचीला मानता है।
रूस इस समय भारत का सबसे बड़ा कच्चा तेल आपूर्तिकर्ता है। भारत के कुल आयात का लगभग एक-तिहाई हिस्सा रूस से आता है। रियायती दामों पर मिलने वाला रूसी तेल भारत के लिए सस्ता और फायदेमंद सौदा है, जिससे देश की ऊर्जा सुरक्षा और अर्थव्यवस्था दोनों मजबूत रहती हैं।
MEA प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, "भारत की ऊर्जा नीति दो लक्ष्यों पर केंद्रित है-स्थिर कीमतें और सुरक्षित आपूर्ति।" भारत ने कहा कि वह अपनी ऊर्जा जरूरतों को बाजार की स्थिति और राष्ट्रीय हितों के अनुसार तय करता है। भारत रूस का सबसे बड़ा कच्चा तेल ग्राहक है और कुल आयात का लगभग एक-तिहाई हिस्सा रूस से आता है। रियायती कीमतें और भरोसेमंद आपूर्ति भारत के लिए फायदेमंद हैं।
भारत अपनी 1.4 अरब की आबादी और तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए किसी भी समय भरोसेमंद और किफायती विकल्प चाहता है। रूस से आने वाला सस्ता तेल भारत की ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता के लिए अहम है।
विश्लेषकों के अनुसार, ट्रंप का बयान वैश्विक ऊर्जा बाजार में अमेरिकी दबाव बढ़ाने की रणनीति का हिस्सा है। यूक्रेन युद्ध के बाद अमेरिका अपने सहयोगियों पर रूस से तेल की निर्भरता कम करने के लिए लगातार दबाव बना रहा है। भारत और ट्रंप के बीच तेल पर विवाद अभी राजनीति और मीडिया के केंद्र में है। जबकि ट्रंप का दावा जोरदार रहा, भारत ने अपनी ऊर्जा नीति पर स्पष्टता बनाए रखी है। यह कहानी दिखाती है कि भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा और बाजार आधारित निर्णयों में पूरी तरह स्वतंत्र है।
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