संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने महासभा में म्यांमार, अफगानिस्तान और इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष पर एक विशेष बैठक बुलाई थी। अध्यक्ष मिशेल बाचेलेट ने सभी सदस्य देशों के सामने वार्षिक रिपोर्ट पेश की। इस रिपोर्ट से इजरायल खफा है।
जेनेवा। इजराल (Israel) संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (United Nations Human rights Council)के वार्षिक रिपोर्ट (Annual Report) से नाराज है। संयुक्त राष्ट्र महासभा (UN General Assembly) के मंच पर इजरायल के राजदूत गिलाद एर्दन (Gilad Erdan) ने यूएनएचआरसी (UNHRC) की एनुअल रिपोर्ट को फाड़ दिया। उन्होंने कहा कि इस रिपोर्ट की सही जगह कूड़ेदान है और इसका कोई यूज नहीं है। उन्होंने इसके पीछे दलील दी कि यह रिपोर्ट इजरायल के खिलाफ है और पक्षपाती है।
कहां फाड़ी गई रिपोर्ट?
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने महासभा में म्यांमार, अफगानिस्तान और इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष पर एक विशेष बैठक बुलाई थी। अध्यक्ष मिशेल बाचेलेट ने सभी सदस्य देशों के सामने वार्षिक रिपोर्ट पेश की। इस रिपोर्ट से इजरायल खफा है।
गाजा हमले में मारे गए थे 260 से अधिक फिलिस्तीनी
यूएनएचआरसी की रिपोर्ट के अनुसार इजरायल की गाजा पर हमले में 67 बच्चों, 40 महिलाओं और 16 बुजुर्गों सहित 260 फिलिस्तीनियों की मौत हो गई थी। हमले में मार गए परिवारों में वरिष्ठ डॉक्टर अयमान अबू अल-औफ और उनका परिवार शामिल था। इस यूएनएचआरसी की रिपोर्ट में गाजा पर क्रूर हमलों के लिए इजरायल की निंदा और आलोचना की गई थी।
95 बाद मानवाधिकार परिषद कर चुका है इजरायल की निंदा
अंबेसडर एर्दन ने संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करते हुए कहा कि 15 साल पहले अपनी स्थापना के बाद से ही मानवाधिकार परिषद ने दुनिया के अन्य सभी देशों के खिलाफ 142 की तुलना में 95 बार इजरायल की निंदा की है। उन्होंने आगे कहा कि मानवाधिकार परिषद पूर्वाग्रहों से भरा हुआ है और उसने एक बार फिर से इस रिपोर्ट से साबित किया है।
दुनियाभर के उत्पीड़ितों की आवाजें नहीं सुनी जा रही
जानकारी देते हुए अंबेसडर एर्दन ने कहा कि मैंने आज संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित किया और मानवाधिकार परिषद की वार्षिक रिपोर्ट के निराधार, एकतरफा और एकमुश्त झूठे आरोपों के खिलाफ आवाज उठाई। एक बार फिर इस साल मानवाधिकार परिषद ने हम सभी को नीचा दिखाया है। इसने दुनिया भर में ऐसे लोगों को निराश किया है जो मानवाधिकारों के हनन को हर दिन, हर घंटे, हर मिनट सहते हैं लेकिन उनकी आवाज नहीं सुनी जाती है। दुख की बात है कि दुनियाभर के उत्पीड़ितों की आवाजें नहीं सुनी जा रही हैं, क्योंकि मानवाधिकार परिषद अपना समय, अपने बजट और अपने संसाधनों को बर्बाद करने पर जोर दे रही है।
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