Iran Israel War: कभी अच्छे दोस्त थे अमेरिका-ईरान, क्यों हुई खतरनाक दुश्मनी, क्या है इजरायल को फायदा?

Published : Jun 14, 2025, 12:33 PM IST
Ayatollah Ali Khamenei and Donald Trump

सार

Iran US Enmity: कभी दोस्त रहे अमेरिका और ईरान आज कट्टर दुश्मन हैं। 1953 के तख्तापलट से लेकर ईरान परमाणु समझौते तक, जानें कैसे बदले रिश्ते और क्या है इसकी पूरी कहानी।

Iran Israel War: ईरान और इजरायल के बीच इस समय लड़ाई चल रही है। इजरायल ने ईरान ने परमाणु ठिकानों और सैन्य नेताओं को निशाना बनाया। जवाब में ईरान ने बैलिस्टिक मिसाइलों से अटैक किया है। इस लड़ाई में तीसरा और सबसे बड़ा पक्ष अमेरिका है। अमेरिका किसी ढाल की तरह इजरायल की रक्षा कर रहा है। ईरान से साथ उसकी गहरी दुश्मनी है। हालांकि एक वक्त था जब अमेरिका और ईरान अच्छे दोस्त थे। आइए जानते हैं उनकी दोस्ती कैसे दुश्मनी में बदल गई।

1953 में ईरान में तख्तापलट और उसके नतीजे

पहली बड़ी घटना जिसने अमेरिका और ईरान के बीच दुश्मनी के बीज बोए वह 1953 में सीआईए समर्थित तख्तापलट था। इससे ईरान के लोकतांत्रिक रूप से चुने गए प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसादेग को सत्ता से हटा दिया गया था।

मोसादेग ने ईरानी तेल उद्योग का राष्ट्रीयकरण कर दिया था। पहले यह एंग्लो-ईरानी तेल कंपनी के तहत अंग्रेजों के कंट्रोल में था। कोल्ड वार के समय ईरान में सोवियत प्रभाव की चिंताओं और इसके तेल तक पहुंच तय करने के लिए अमेरिका ने तख्तापलट की योजना बनाने में UK का साथ दिया।

ईरान के शाह मोहम्मद रजा पहलवी को फिर से पर्याप्त शक्ति के साथ स्थापित किया गया। पहलवी का इस्तेमाल ईरान को आधुनिक बनाने के लिए किया गया। पहलवी ने निरंकुश तरीके से ईरान पर शासन किया। इस घटना ने ईरान के लोगों में अमेरिका के प्रति गहरे संदेह और आक्रोश को बढ़ावा दिया।

शाह मोहम्मद रजा पहलवी का शासन और बढ़ता असंतोष

1960 और 1970 के दशक में शाह मोहम्मद रजा पहलवी ने श्वेत क्रांति के नाम से आधुनिकीकरण और पश्चिमीकरण कार्यक्रमों को लागू किया। इसमें भूमि सुधार, महिलाओं के अधिकारों का विस्तार और अर्थव्यवस्था का तेजी से औद्योगिकीकरण शामिल था। इन सुधारों के बाद भी शाह के शासन में निरंकुशता, गुप्त पुलिस (SAVAK) पर भारी निर्भरता और राजनीतिक असंतोष का दमन था। इसने धार्मिक समूहों, राष्ट्रवादियों और वामपंथियों सहित ईरानी समाज के बड़े हिस्से को शाह के शासन के खिलाफ कर दिया।

अमेरिका ने खुलकर शाह के शासन का समर्थन किया। सैन्य और आर्थिक सहायता दी। इससे ईरान के लोगों के बीच यह धारणा मजबूत हुई कि अमेरिका शाह के शासन की दमनकारी नीतियों में भागीदार है। वहीं, अमेरिका ईरान को सैन्य और आर्थिक समर्थन दे रहा था ताकि वह रूस के खिलाफ उसका साथी बना रहे। ईरानी तेल अमेरिका को मिलती रही।

1979 की इस्लामी क्रांति ने बदली स्थिति

अयातुल्ला रूहोल्लाह खुमैनी के नेतृत्व में ईरान में 1979 में इस्लामी क्रांति हुई। शाह के शासन के खिलाफ बढ़ते असंतोष के चलते ईरान के आम लोग इसमें शामिल हुए। नतीजा रहा कि शाह की सत्ता चली गई। इस्लामी गणतंत्र ईरान की स्थापना हुई।

अमेरिका ने शाह को अपना समर्थन बनाए रखा। उन्हें पद से हटाए जाने के बाद भी इलाज के लिए अमेरिका आने की अनुमति दी। इससे ईरान के लोगों को शक हुआ कि अमेरिका 1953 के तख्तापलट की तरह शाह को फिर से सत्ता में लाने की साजिश रच रहा है।

अमेरिकी राजनयिकों और नागरिकों को बनाया बंधक

नवंबर 1979 में ईरानी छात्रों ने राजधानी तेहरान में अमेरिकी दूतावास पर कब्जा कर लिया था। 52 अमेरिकी राजनयिकों और नागरिकों को 444 दिनों तक बंधक बनाकर रखा गया। इस बंधक संकट से अमेरिका और ईरान के बीच राजनयिक संबंध टूट गए। वे दोनों दोस्त की जगह दुश्मन बन गए।

ईरान-इराक जंग और अमेरिकी भागीदारी

ईरान-इराक जंग (1980-1988) ने अमेरिका-ईरान संबंधों को और जटिल बना दिया। शुरू में अमेरिका ने तटस्थता रखी, लेकिन जैसे-जैसे लड़ाई बढ़ी उसने सद्दाम हुसैन के नेतृत्व वाले इराक को खुफिया जानकारी, हथियार और पैसे देना शुरू कर दिया। यह समर्थन ईरान की क्रांतिकारी विचारधारा के प्रसार को रोकने और ईरान को फारस की खाड़ी क्षेत्र पर हावी होने से रोकने की रणनीति का हिस्सा था। यह ग्लोबल तेल सप्लाई के लिए महत्वपूर्ण था। अमेरिका ने फारस की खाड़ी में ईरान के साथ सीधी सैन्य झड़पों में भी भाग लिया। इससे तनाव और बढ़ गया।

युद्ध के बाद के संबंध और बढ़ते तनाव

ईरान-इराक युद्ध के बाद के दशकों में कई मुद्दों ने ईरान और अमेरिका के बीच दुश्मनी बढ़ी दी। अमेरिका ने ईरान पर आतंकवाद को प्रायोजित करने, परमाणु हथियार बनाने और मध्य पूर्व में शांति और स्थिरता को कम करने का आरोप लगाया है। ईरान ने लेबनान में हिजबुल्लाह जैसे समूहों को समर्थन दिया। यह अमेरिकी हितों के खिलाफ था। जवाब में अमेरिका ने ईरान पर कई आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए। इनका उद्देश्य उसके परमाणु कार्यक्रम पर अंकुश लगाना तथा उसके क्षेत्रीय प्रभाव को सीमित करना है।

ईरान परमाणु समझौता

ईरान का परमाणु कार्यक्रम इजरायल के लिए अस्तित्व का खतरा है। अमेरिका भी परमाणु बम से लैस ईरान नहीं देखना चाहता। 2015 की संयुक्त व्यापक कार्य योजना (JCPOA), जिसे आमतौर पर ईरान परमाणु समझौते के रूप में जाना जाता है, ईरान और P5+1 (संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, रूस, चीन और जर्मनी) के बीच एक ऐतिहासिक समझौता था। इसने ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर सख्त सीमाओं के बदले में उस पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों को हटा दिया था।

हालांकि, 2018 में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के तहत JCPOA से अमेरिका के हटने और कठोर प्रतिबंधों को फिर से लागू करने से तनाव काफी बढ़ गया और फारस की खाड़ी में टकराव की एक श्रृंखला शुरू हो गई।

ईरान-अमेरिका दुश्मनी से इजरायल को हुआ क्या फायदा

ईरान आकार में छोटा, लेकिन बेहद शक्तिशाली देश है। वह ईरान को अपने अस्तित्व के लिए खतरा मानता है। अमेरिका और इजरायल के संबंध बेहद मजबूत हैं। ईरान-अमेरिका दुश्मनी से इजरायल को ईरानी हमले के खिलाफ अमेरिका का पूरा साथ मिलता है। अमेरिका ने ईरान के आसपास अपने सैन्य ठिकाने बना रखे हैं। समुद्र में भी युद्धपोत तैनात कर रखे हैं। ईरान जब इजरायल पर हमला करने के लिए मिसाइल और ड्रोन भेजता है तो अमेरिका उसे रास्ते में खत्म कर देता है। उसे रोकने में इजरायल की मदद करता है।

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