Press Freedom Day 2022: 29 साल पहले पत्रकारों ने मनाया था पहला विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस, ये देश है नंबर वन

दुनियाभर में 3 मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस (Press Freedom Day) मनाया जाता है। यह दिन लोकतंत्र के चौथे स्तंभ यानी मीडिया को ज्यादा से ज्यादा सच्चाई को सामने लाने के लिए प्रेरित करता है। 

Asianet News Hindi | Published : May 3, 2022 2:45 PM IST

नई दिल्ली। प्रेस यानी मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है। हालांकि, कई बार मीडिया को लोगों तक सही जानकारी पहुंचाने से रोका जाता है। विश्व में ऐसे कई देश हैं जहां प्रेस चाहकर भी लोगों के बीच सच्चाई को नहीं ला पाते। ऐसे में 3 मई को दुनियाभर में विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस (Press Freedom Day) के तौर पर मनाया जाता है।

आखिर किस देश से हुई थी शुरुआत : 
1991 में दक्षिण अफ्रीका के पत्रकारों ने सबसे पहले प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाने की मांग की थी। इन पत्रकारों ने 3 मई को प्रेस की आजादी के सिद्धांतों को लेकर एक बयान जारी किया था, जिसे डिक्लेरेशन ऑफ विंडहोक के नाम से जानते हैं। इसके 2 साल बाद यानी 3 मई 1993 को संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने पहली बार विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाने का फैसला किया था।

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पत्रकारों के साथ हो रही हिंसा रोकना है उद्देश्य : 
माना जाता है कि प्रेस का काम लोगों तक सच पहुंचा कर उन्हें जागरूक करना है, लेकिन बदलते समय के साथ पत्रकारों से यह हक छीन लिया गया है। आज दुनिया भर से पत्रकारों के खिलाफ आए दिन हिंसा की खबरें सामने आती रहती हैं। विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाने का मकसद पत्रकारों के साथ होने वाली हिंसा को रोकना और उन्हें लिखने-बोलने की आजादी देना है।

यूनेस्को हर साल देता है अवॉर्ड : 
1997 से यूनेस्को हर साल 3 मई को विश्व स्वतंत्रता दिवस के मौके पर 'गिलेरमो कानो वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम' पुरस्कार देता है। यह पुरस्कार उस संस्थान या व्यक्ति को दिया जाता है, जिसने प्रेस के आजादी के लिए बेहतरीन काम किया हो। भारत के किसी भी पत्रकार या संस्थान को अभी तक यह पुरस्कार नहीं दिया गया है।

प्रेस की आजादी के मामले में नंबर वन है नॉर्वे : 
दुनिया भर में प्रेस की आजादी के मामले में नॉर्वे पहले नंबर पर है। विश्व में जब भी बात लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आाजदी की आती है तो नॉर्वे कई सालों से ऊंची पायदानों पर काबिज रहा है। प्रेस की आजादी के लिए हाल ही में नॉर्वे की सरकार ने एक आयोग गठित किया है। इसका उद्देश्य देश में अभिव्यक्ति की आजादी (Freedom of Speech) के हालातों की समीक्षा करना है। यह आयोग बाद में अपने सुझाव और रिपोर्ट सरकार को सौंपता है। 

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