डाक से बच्चे भेजने का अनोखा सफर, इंट्रेस्टिंग था पार्सल का तरीका

क्या आप जानते हैं कभी बच्चों को भी डाक से भेजा जाता था? अमेरिका में 1913 से 1915 तक यह अनोखी सेवा चली, जानिए पूरा किस्सा।

पुराने ज़माने में डाक के ज़रिये कुरियर, चिट्ठियाँ, नियुक्ति पत्र, इंटरव्यू लेटर, टेलीग्राम आते थे, ये तो आपने देखा या सुना होगा? लेकिन क्या आपको पता है कि डाक के ज़रिये बच्चों को भी भेजा जाता था। 20वीं सदी में अमेरिका की डाक सेवा ने 1 जनवरी 1913 को 11 पाउंड यानी लगभग 4 किलो वज़न के पैकेट को डाक से भेजने की सुविधा अमेरिकियों को दी थी। इस सुविधा का कुछ अनपेक्षित तरीक़े से इस्तेमाल भी हुआ। कुछ माता-पिता ने अपने बच्चों को डाक के ज़रिये दूर के शहरों में, रिश्तेदारों के घर, दादी-नानी के घर भेजने का फ़ैसला किया।

1913 में पहली बार दादी के घर डाक से भेजा गया था एक बच्चा

1913 में ओहियो के एक दंपत्ति, जेसी और मथिल्डा बीगल ने अपने 8 महीने के बेटे जेम्स को उसकी दादी के घर डाक सेवा के ज़रिये भेजा। यह बच्चों को डाक से भेजने का पहला मामला था। इसका खर्च 15 सेंट (15 cents) और माता-पिता ने बच्चे के लिए 50 डॉलर निर्धारित किए थे। इसके बाद कई सालों तक माता-पिता बच्चों को डाक से पार्सल करते रहे। ख़ासकर ग्रामीण इलाकों में डाक पार्सल का खर्च रेल टिकट से भी कम था। फरवरी 1914 में, 4 साल की बच्ची चार्लोट मे पियरस्टार्फ को इडाहो के ग्रेंजविले से उसकी दादी के घर, जो 73 मील दूर था, भेजा गया। यह दूरी के कारण सबसे मशहूर डाक पार्सल मामला बन गया।

Latest Videos

डाक से कैसे भेजते थे बच्चे, क्या होता था पार्सल का तरीका

चार्लोट को पार्सल करते समय उसे मुर्गी की दर के तहत वर्गीकृत किया गया और उसे 54 पाउंड वज़न की बच्ची मुर्गी का टैग लगाया गया। उसके कोट पर डाक टिकट चिपकाया गया था। रेलवे डाक सेवा में काम करने वाली उसकी माँ की बहन उसके साथ इस डाक यात्रा में गईं। यह घटना इतिहास का हिस्सा बन गई और 'मेलिंग मे' (Mailing May) नामक बच्चों की किताब लिखने की प्रेरणा भी बनी। बच्चों को डाक की थैली में नहीं, बल्कि उनके कपड़ों पर डाक टिकट लगाकर रेल के ज़रिये भेजा जाता था। आमतौर पर माता-पिता अपने जान-पहचान के डाक कर्मचारियों के साथ बच्चों को भेजते थे।

1915 में बंद हो गई सेवा

बच्चों को डाक से भेजने का यह चलन कई लोगों के लिए आर्थिक रूप से फ़ायदेमंद साबित हुआ। 1915 में डाक विभाग ने आधिकारिक तौर पर इस सेवा पर प्रतिबंध लगा दिया। लेकिन यह प्रक्रिया तुरंत बंद नहीं हुई। उसी साल अगस्त में, तीन साल की बच्ची मौड स्मिथ को केंटकी में 40 मील दूर भेजा गया। यह डाक कुरियर से यात्रा करने वाली आख़िरी बच्ची थी। इस डाक यात्रा के दौरान बच्चों को नुकसान या देरी के बारे में कोई रिकॉर्ड नहीं है। अमेरिकियों का अपने डाक कर्मचारियों पर भरोसा और डाक खर्च की कम दर ने इस सेवा को बहुत लोकप्रिय बना दिया था। 1915 में डाक विभाग ने इस सुविधा पर रोक लगा दी।

 

Share this article
click me!

Latest Videos

Kazakhstan Plane Crash: प्लेन क्रैश होने पर कितना मिलता है मुआवजा, क्या हैं International Rules
Kazakhstan Plane Crash: कैसे क्रैश हुआ था अजरबैजान एयरलाइंस का यात्री विमान? हैरान करने वाली है वजह
'फिर कह रहा रामायण पढ़ाओ' कुमार विश्वास की बात और राजनाथ-योगी ने जमकर लगाए ठहाके #Shorts
भारत के पहले केबल रेल पुल पर हुआ ट्रायल रन, देखें सबसे पहला वीडियो #Shorts
क्या बांग्लादेश के साथ है पाकिस्तान? भारत के खिलाफ कौन रह रहा साजिश । World News