70 साल से 'लोहे के फेफड़े' संग जी रहा यह शख्‍स, आधे शरीर में मार गया लकवा, पढ़-लिख कर बना वकील

अमेरिका के पॉल अलेक्जेंडर के शरीर में जिन्‍हें आयरन लंग के साथ जीना पड़ रहा है। 76 वर्षीय पॉल को पोलियो की वजह से लकवा मार गया था और 1928 में उन्‍हें यह डिवाइस लगाई गई थी।

Danish Musheer | Published : May 19, 2023 11:56 AM IST

वॉशिंगटन: अमेरिका के पॉल अलेक्जेंडर सालों से आयरन लंग मशीन (लोहे का फेफड़ा) के साथ जी रहे हैं। पॉल दुनिया के पहले शख्‍स हैं, जिन्‍हें आयरन लंग के साथ जीना पड़ रहा है। जानकारी के मुताबिक पॉल को पोलियो की वजह से लकवा मार गया था। उनकी बॉडी में 1928 में आयरन लंग लगाया गया था। तब से वह इसी के साथ जी रहे हैं। खास बात या है पॉल ने इस मुश्किल प्रस्थिति में भी हार नहीं मानी। फिलहाल वह लकवे की बीमारी से ग्रसित हैं और अब उनकी उम्र 76 साल से ज्यादा है। इसके बावजूद उन्‍होंने जीने की उम्‍मीद नहीं छोड़ी।

गार्जियन की रिपोर्ट के मुताबिक 1952 में पॉल जब अपने दोस्तों के साथ खेल रहे थे, तो उनकी गर्दन में चोट लग गई थी। उन्‍हें डॉक्‍टर के पास ले जाया गया। डॉक्‍टरों ने देखा तो पाया कि उनके फेफड़े खराब हो रहे हैं, जिसकी वजह से वे सांस नहीं ले पा रहे थे। इतना ही नही उनका शरीर में लकवा भी मार चुका था। उस समय उनकी उम्र मगज 6 साल थी।

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डॉक्टर ने ट्रेकियोटॉमी की

उनकी हालत देख कर सबको लग रहा था कि शायद वह जिंदा नहीं रह पाएंगे। तभी एक डॉक्‍टर ने सूझबूझ दिखाते हुए जल्दी से उनकी ट्रेकियोटॉमी की। इस दौरान उनकी गर्दन में एक छेद किया गया ताकि एक ट्यूब को उनकी श्वासनली के अंदर रखा जा सके। पॉल को तीन दिन के बाद होश आया। जब आंख खुली तो उन्‍होंने देखा कि वे एक लोहे की मशीन के अंदर हैं।

क्या होती है आयरन लंग्‍स मशीन?

इस मशीन को मेडिकल की भाषा में आयरन लंग्‍स मशीन कहते हैं। यह मशीन लकवाग्रस्‍त मरीजों के लिए वरदान है। यह मरीज के फेफड़ों में ऑक्सीजन भरने का काम करती है। हालांकि, हमेशा इस मशीन में कैद रहना आसान काम नहीं है मगर पॉल अलेक्‍जेंडर 70 साल से इसी मशीन के सहारे जिंदा हैं। वह आज भी इसी मशीन के अंदर कैद रहते हैं। इतना ही नहीं उनके अंदर गजब का जुनून है।

पढ़-लिख कर बना वकील

एक बार उन्‍होंने हायर स्‍टडीज करने के लिए सोचा, लेकिन यून‍िवर्सिटी ने उनकी हालत देखकर दाख‍िला देने से मना कर दिया। हालांकि, वह एडमिशन पाने के लिए कोशिशों में लगे रहे और आखिरकार डलास की एक यूनिवर्सिटी में उन्‍हें एडमिशन मिल गया। यहां से उन्होंने लॉ की पढ़ाई की और अब वह वकील हैं और कोर्ट के काम भी करते हैं।

यह भी पढ़ें- अमेरिका में भारतीय साइंटिस्ट की नई खोज, ब्रेन कैंसर के मरीजों के इलाज में आएगी काम

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