गलवान: अमेरिका ने दिया भारत का साथ, पोम्पियो बोले- एलएसी में घुसकर चीन दुनिया का रुख देखना चाहता था

Published : Jul 31, 2020, 04:29 PM IST
गलवान: अमेरिका ने दिया भारत का साथ, पोम्पियो बोले- एलएसी में घुसकर चीन दुनिया का रुख देखना चाहता था

सार

पूर्वी लद्दाख में सीमा को लेकर चल रहे चीन से विवाद के बीच एक बार फिर अमेरिका ने भारत का समर्थन दिया है। अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने कहा, चीन भारत की सीमा में घुस कर यह देखना चाह रहा था कि दुनिया का उसके खिलाफ क्या रुख रहता है, लेकिन ज्वार उसी की तरफ मुड़ गया। 

वॉशिंगटन. पूर्वी लद्दाख में सीमा को लेकर चल रहे चीन से विवाद के बीच एक बार फिर अमेरिका ने भारत का समर्थन दिया है। अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने कहा, चीन भारत की सीमा में घुस कर यह देखना चाह रहा था कि दुनिया का उसके खिलाफ क्या रुख रहता है, लेकिन ज्वार उसी की तरफ मुड़ गया। 

अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने यह बात सीनेट में कही। उन्होंने कहा, चीन यह देखना चाहता था कि क्या अमेरिका उसके खिलाफ खड़ा होगा। हम चीन के खिलाफ अब एक लोकतांत्रिक देशों का गठबंधन बनाने पर विचार कर रहे हैं। हम इस पर मित्र देशों के साथ विचार करेंगे। 

हम नए रिश्ते बना रहे- पोम्पियो
पोम्पियो ने कहा, हम राजनयिक रिश्ते बना रहे हैं। हालांकि, अभी इस पर काम करने की जरूरत है। उन्होंने कहा, हम देशों से अमेरिका और चीन में किसी एक को चुन्ने के लिए कह रहे हैं। हम देशों को स्वतंत्रता और अत्याचार के बीच चुनने के लिए कह रहे हैं। हालांकि, पोम्पियो ने इस दौरान अमेरिका के पिछले नेताओं को भी निशाने पर लिया। 

उन्होंने कहा, पिछली सरकारों को चीन का खतरा नहीं दिखा। उनकी आंखों में बस व्यापार नजर आ रहा था।

पोम्पियो पहले भी चीन पर लगा चुके हैं गंभीर आरोप
इससे पहले पोम्पियो ने कहा था, चीन से मुकाबले के लिए समान विचारधारा वाले देशों और संयुक्त राष्ट्र, नाटो जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को एक साथ आना चाहिए। उन्होंने कहा था, अगर आज हमने चीन के सामने घुटने टेक दिए तो हमारी आने वाली पीढ़ियां उसकी दया पर निर्भर रहेंगी।

पोम्पियो ने चीन को चेतावनी दी थी कि वह समय की रणनीतिक वास्तविकताओं को ध्यान में रखकर अपनी परमाणु क्षमताओं को इसके अनुरूप रखे। यदि हम वक्त पर सावधान नहीं होते तो चीनी कम्युनिस्ट पार्टी हमारी स्वतंत्रता को नष्ट कर देगी। उस लोकतंत्र को नष्ट कर देगी, जिसे बनाने में हमारे समाजों को इतनी मेहनत करनी पड़ी।

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