ईरान और इज़राइल में तनाव के बीच, यह सवाल उठता है कि अगर युद्ध हुआ तो कौन जीतेगा? दोनों देशों की सैन्य क्षमता, तकनीक और रणनीति में अंतर है। ऐसे में कौन किस पर भारी पड़ेगा, आइए जानते हैं।
Iran vs Israel: मिडिल-ईस्ट में ईरान-इजराइल के बीच युद्ध किसी भी समय भड़क सकता है। हिजबुल्लाह चीफ की हत्या के बाद ईरान ने भी इजराइल पर 200 बैलेस्टिक मिसाइलों से पलटवार किया है। वैसे, अगर इजराइल और ईरान की मिलिट्री पावर की तुलना करें तो दोनों के पास अपनी-अपनी ताकत, कमजोरी और चुनौतियां हैं। ऐसे में अगर जंग हुई तो कौन किस पर भारी पड़ेगा। जानते हैं किसमें कितना है दम?
1- मिलिट्री टेक्नोलॉजी
इज़राइल एडवांस्ड मिलिट्री टेक्नोलॉजी का दावा करता है, जिसमें उसके पास आयरन डोम, डेविड स्लिंग और एरो सिस्टम जैसे मॉर्डर्न एयर डिफेंस सिस्टम मौजूद हैं। ये सभी इजराइल को कई तरह के हवाई हमलों के खिलाफ मजबूत सुरक्षा देते हैं।
2- मिलिट्री बजट
इजराइल का मिलिट्री बजट करीब 24.4 अरब डॉलर है, जो ईरान के 10 अरब डॉलर के मुकाबले दोगुने से भी ज्यादा है। इससे इजराइल सेना को बेहतर ट्रेनिंग और हथियार मिलते हैं।
3- इंटरनेशनल सपोर्ट
इजराइल को अमेरिका से पर्याप्त मिलिट्री सपोर्ट मिलता है। ये सालाना लगभग 3.8 बिलियन डॉलर है। इसके चलते इजराइल की डिफेंस कैपेबिलिटी बढ़ने के साथ ही एडवांस्ड हथियारों तक उसकी पहुंच रहती है।
4- सैनिक संख्या
इज़राइल के 1.70 लाख सैनिकों की तुलना में ईरान के पास लगभग 5.80 लाख सैनिक हैं। मैनपावर के हिसाब से इजराइल की तुलना में ईरान कहीं ज्यादा मजबूत है।
5- मिसाइल कैपेबिलिटी
ईरान के पास इजरायली क्षेत्र तक पहुंचने में सक्षम बैलिस्टिक और क्रूज मिसाइलों का एक बड़ा भंडार है, जो इजरायल के बेहतर एयर डिफेंस सिस्टम के बावजूद एक बड़ा खतरा पैदा करता है।
6- नौसेना की ताकत
नौसेना के मामले में ईरान भारी है। ईरान के पास एक बड़ी नौसेना है। हालांकि, अमेरिकी टेक्नोलॉजी की मदद से इजरायल की नेवल कैपेबिलिटी में भी इजाफा हुआ है।
7- एयरफोर्स पावर
इज़राइल की वायु सेना में F-35 और F-15 जैसे एडवांस्ड एयरक्रॉफ्ट शामिल हैं, जो कि ईरान के पुराने फ्लीट-13 की तुलना में कहीं ज्यादा भारी पड़ते हैं।
8- ट्रेनिंग
इजरायल की फोर्सेस हाई लेवल ट्रेनिंग के साथ ही किसी भी ऑपरेशन को अंजाम देने के लिए हमेशा तैयार रहती हैं। इसके अलावा इजराइल की सेनाएं अपने सहयोगियों के साथ ज्वाइंट मिलिट्री एक्सरसाइज भी करती हैं, जो उनकी इफेक्टिवनेस को बढ़ाता है।
9- जियोपॉलिटीकल अलायंस
पश्चिमी देशों के साथ इज़राइल का स्ट्रैटेजिक अलायंस दुश्मनों के खिलाफ उसकी सैन्य ताकत को और मजबूती देता है।
10- इंटेलिजेंस पावर
इजराइल की खुफिया एजेंसी मसलन मोसाद, शिनबेट का लोहा पूरी दुनिया मानती है। ये समय-समय पर दुश्मनों से जुड़ी खुफिया जानकारी देती हैं, जिनसे रणनीति बनाने और उसे एग्जीक्यूट करने में इजराइल को काफी मदद मिलती है।
11- असमान युद्ध रणनीति
ईरान असमान वॉरफेयर स्ट्रैटेजी से चलता है। इसमें उसकी प्रॉक्सी फोर्सेस (हमास, हिजबुल्लाह पीआईजे) और साइबर कैपेबिलिटी शामिल हैं। इससे ईरान को दुश्मन से सीधे लड़ने की जरूरत नहीं पड़ती।
12- जनसंख्या
ईरान की बड़ी आबादी (लगभग 9 करोड़) उसे लंबी लड़ाइयों के दौरान रिसोर्सेज को जुटाने में काफी हद तक मदद करती है।
13- इकोनॉमिक फैक्टर्स
कम सैन्य खर्च के बावजूद, ईरान की अर्थव्यवस्था प्रतिबंधों के कारण काफी प्रेशर में है। इससे उसकी लॉन्गटर्म मिलिट्री सस्टेनेबिलिटी पर सीधा असर पड़ता है।
14- क्षेत्रीय प्रभाव
ईरान का पूरे क्षेत्र में प्रॉक्सी ग्रुप्स के जरिये काफी दबदबा रहता है। इसके चलते इजराइल से होने वाली जंग में बैलेंस ऑफ पावर पर असर पड़ता है।
15- डिफेंस इनोवेशन
दोनों देश लगातार इनोवेशन कर रहे हैं। हालांकि, सैन्य तकनीक आधारित इनोवेशंस में इज़राइल की टेक्नीक कई बार ईरान से ज्यादा एडवांस्ड होती है।
कुल मिलाकर दोनों देशों की सैन्य ताकत की बात करें तो ईरान के पास जहां ज्यादा सैनिकों के साथ ही बड़ा और एडवांस्ड मिसाइल का स्टॉक है, तो वहीं इजराइल के पास ज्यादा बेहतर टेक्नोलॉजी, इंटरनेशनल सपोर्ट और इफेक्टिव डिफेंस स्ट्रैटेजी मौजूद है, जिसकी वजह से वो ईरान पर थोड़ा हावी हो सकता है।
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