
पूरी दुनिया में कई जाति-संप्रदाय हैं। 2024 में भी आज भी अनेक लोग जंगलों में निवास करते हैं। जंगल में रहने वाले आदिवासी समुदाय के लोग प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर जीवन यापन करते हैं। ये सभी प्राणियों के साथ प्रेम और सद्भाव से रहते हैं। इनकी परंपराएं और रीति-रिवाज भी बहुत अनोखे और रोचक होते हैं। ऐसी ही एक संस्कृति सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। आज हम आपको एक ऐसे समुदाय के बारे में बताएंगे जो अपनी गायों की सुरक्षा एक अलग ही अंदाज में करते हैं। इन्हें गायों से इतना प्रेम है कि उनकी सुरक्षा में कोई कमी ना रह जाए, इसके लिए जेड प्लस सुरक्षा का इंतजाम किया जाता है।
हमारे देश भारत में गायों को 300 करोड़ देवी-देवताओं का वास स्थान माना जाता है। रास्ते में गाय दिख जाए तो उसे प्रणाम करने की समृद्ध संस्कृति भारत में है। अफ्रीका के सूडान में रहने वाला मुंदारी नामक आदिवासी समुदाय गायों की सुरक्षा के लिए एके 47 बंदूकें रखता है। गायों को किसी भी प्रकार की हानि न हो, इसका पूरा ध्यान रखा जाता है। गायें इनके लिए जीवन हैं। गायों को चलता फिरता अस्पताल मानने वाला मुंदारी समुदाय गौमूत्र को औषधि के रूप में ग्रहण करता है।
अपने पशुधन के साथ पूरा दिन बिताने वाले ये लोग रात को भी उनके साथ ही सोते हैं। गायों की चोरी न हो और उन्हें कोई नुकसान पहुंचाए, इसके लिए रात में बारी-बारी से पहरा देते हैं। दक्षिण सूडान की राजधानी जुबा से लगभग 75 किलोमीटर दूर उत्तर में मुंदारी समुदाय का निवास स्थान है।
सामान्य गायों की ऊंचाई 7 से 8 फीट होती है। लेकिन मुंदारी समुदाय की गायें अधिक ऊंचाई की होती हैं। इसलिए इन्हें विशेष नस्ल की गाय माना जाता है। यही कारण है कि गायों की चोरी का डर बना रहता है और उनकी सुरक्षा की जाती है। गौहत्या को महापाप मानने वाला मुंदारी समुदाय शादियों में दहेज के रूप में गायों का आदान-प्रदान करता है। गौमूत्र से ही मुंह धोते हैं। जली या सूखी हुई गाय के गोबर से ही दांत साफ करते हैं।
सूडान एक गर्म देश है, इसलिए यहां के लोग गायों के लिए छाया की व्यवस्था जरूर करते हैं। अगर किसी गाय की मृत्यु हो जाती है तो अपनी परंपरा के अनुसार उसका अंतिम संस्कार कर शोक मनाया जाता है। मुंदारी समुदाय की एक गाय की कीमत 40 से 50 हजार रुपये होती है। पशुपालन ही मुंदारी समुदाय का मुख्य व्यवसाय है।
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