Explainar: 90 साल पुराना है म्यांमार में हिंसा का इतिहास, भारतीय मजदूरों का भी चुका है कत्लेआम ,आज भी जारी है नरसिंहार

Published : Apr 13, 2023, 11:12 AM ISTUpdated : Apr 13, 2023, 12:14 PM IST
Myanmar Massacre

सार

म्यांमार की सेना ने हाल ही में अपने ही देश के लोगों पर हवाई हमला कर दिया है, जिसके चलते लगभग 100 लोगों की मौत हो गई. बता दें कि म्यांमार में हिंसा का इतिहास काफी पुराना है.

बैंकॉक: म्यांमार की सेना ने हाल ही में अपने ही देश के लोगों पर हवाई हमला कर दिया है, जिसके चलते लगभग 100 लोगों की मौत हो गई। मरने वालों में महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं। म्यांमार की सेना जुंटा के प्रवक्ता जाव मिन तुन ने मंगलवार देर रात हमले की पुष्टि की। उन्होंने कहा कि मंगलवार सुबह करीब 8 बजे पाजी ग्यी गांव में पीपुल्स डिफेंस फोर्स के ऑफिस का उद्घाटन समारोह था। हमने उस जगह पर हमला किया।

हमला म्यांमार के सागैंग प्रांत के कनबालु टाउनशिप के पाजी ग्यी गांव में किया गया। यहां सैन्य शासन के खिलाफ लड़ रहे विद्रोही गुट ने कार्यक्रम आयोजित किया था। तभी म्यांमार की वायु सेना ने हमला कर दिया और लोगों पर फायरिंग की। बता दें कि यह पहला मौका नहीं है, जब म्यामांर में इस तरह की घटना हुई है। इससे पहले भी देश में कई बार मास किलिंग की घटनाएं हुई हैं।

1930 में भारत विरोधी दंगे
म्यांमार (तब रंगून) में सबसे पहले 1930 में मास किलिंग की घटना हुई. उस समय भारतीय और म्यांमार के मजदूरों के बीच डॉकवर्क की नौकरियों को लेकर संघर्ष हुआ था। हिंसा कई दिनों तक चली, देश भर में बड़े पैमाने पर भारत विरोधी दंगों में हुए। इसके परिणामस्वरूप 120 से अधिक लोगों की मौत हुई, जिनमें से अधिकांश भारतीय थे।

1942 में मुस्लिम नरसंहार
इसके बाद 1942 में म्यांमार में एक बार फिर हिंसा हुई। इस बार मुस्लिम (रोहिंग्या) और बौद्ध (रखीन) आमने-सामने थे। मुस्लिम (रोहिंग्या) और बौद्ध (रखीन) सदियों से अराकान में शांतिपूर्वक सह-अस्तित्व में रहे थे, लेकिन औपनिवेशिक शासन के दौरान दोनों समुदायों के संबंध तीसरे पक्ष के उकसावे पर कड़वा होने लगे और दोनों में हिंसा हो गई। 1942 के मुस्लिम विरोधी नरसंहार में लगभग 60,000 लोग मारे गए थे।

1945 में जापानी सेना ने की हिंसा
7 जुलाई 1945 को बर्मा (वर्तमान म्यांमार) के कालागोन में इंपीरियल जापानी सेना ने लोगों का नरसंहार किया गया था। दरअसल, जापानी सेना की 33वीं बैटेलियन सेना के चीफ ऑफ स्टाफ मेजर जनरल सेई यामामोतो ने कथित तौर पर ब्रिटिश पैराट्रूप्स के साथ मिलकर क्षेत्र में गुरिल्ला लड़ाकों की सफाई करने का आदेश दिया था।जापानियों ने गाँव पर कब्जा कर लिया और पूछताछ के लिए सभी निवासियों, कुछ को स्थानीय मस्जिद और अन्य को अलग-अलग इमारतों में ले गए। महिलाओं और बच्चियों के साथ दुराचार और मारपीट की गई। इस दौरान अनुमानित 600 से 1,000 ग्रामीण मारे गए।

1988 की हड़ताल
8 अगस्त, 1988 को, हजारों छात्रों, बौद्ध भिक्षुओं, सिविल सेवकों और आम नागरिकों ने एक राष्ट्रव्यापी हड़ताल की और सरकार के विरोध प्रदर्शन किया, जिसमें लोकतंत्र अपनाने और सैन्य शासन को समाप्त करने का आह्वान किया गया। इन विरोधों देख सरकार ने इसे दबाने के लिए सैनिकों को बल यूज करने का आदेश दिया। इसके बाद सैनिकों ने शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी की, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए और घायल हुए।

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डिपायिन नरसंहार
डिपायिन नरसंहार एक सुसंगठित जघन्य अपराध था, जो लगभग 5000 अपराधियों द्वारा अंजाम दिया गया था. इस अपराध में देश के कई अधिकारी के सीधे शामिल थे। डिपायिन नरसंहार में लगभग 70 लोग मारे गए थे। इस जघन्य अपराध को करने में उद्देश्य 1990 के मई के चुनाव परिणाम को जनता को डराकर नकारना था।

भिक्षुओं का नरसिंहार
सितंबर 2007 में बर्मा में 1988 के विद्रोह के बाद सबसे बड़ा प्रदर्शन हुआ। बर्मा के कस्बों और शहरों में दसियों हज़ार भिक्षुओं ने बड़े पैमाने पर प्रदर्शन किया। सैन्य शासन को समाप्त करने का आह्वान करने के लिए हजारों बर्मी नागरिक जीवन के सभी क्षेत्रों से विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए। विरोध बढ़ता देख सरकार ने प्रदर्शनकारियों पर क्रूर कार्रवाई शुरू कर दी। इस दौरान कई लोगों की मौत हो गई।

रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ अभियान
म्यांमार की सैन्य सरकार, जिसे तातमॉडा के नाम से भी जाना जाता है ने फरवरी 2021 में नोबेल पुरस्कार विजेता आंग सान सू की के नेतृत्व में म्यांमार में चल रही लोकतांत्रिक सरकार को सत्ता से हटा दिया था. इस दौरान म्यांमार की सेना ने साल 2017 में पश्चिमी रखाइन प्रांत में रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ अभियान चलाया था. करीब 10 लाख रोहिंग्या मुस्लिमों को वहां से भगाना शुरू कर दिया था. उन्हें भगाने के लिए उनकी हत्या, उनकी महिलाओं से रेप, लोगों को जिंदा जलाने और अन्य तरह से अत्याचार किया गया था. आज भी लाखों रोहिंग्या दूसरे देशों में शरणार्थी बने हुए हैं.

हलिंगथाया नरसंहार
14 मार्च 2021 म्यांमार के हलिंगथाया में सेना ने दर्जनों लोगों की हत्या कर दी हुआ। जानकारी के मुताबिक सेना की कार्रवाई में कम से कम 65 लोग मारे गए थे। नरसंहार 2021 म्यांमार सैन्य तख्तापलट के बाद होने वाली सबसे घातक घटनाओं में से एक बन गया और तख्तापलट का विरोध करने वाले नागरिकों के खिलाफ सेना की हिंसा में गंभीर वृद्धि हुई।

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हपाकांत हिंसा
23 अक्टूबर, 2022 को ए नांग पा हपाकांत में सेना ने एक हवाई हमले ने काचिन इंडिपेंडेंस ऑर्गनाइजेशन (KIO) की स्थापना के उपलक्ष्य में एक सार्वजनिक सांस्कृतिक कार्यक्रम को निशाना बनाया, और काचिन कलाकारों, व्यापारियों और स्थानीय बुजुर्गों और स्थानीय केआईओ नेताओं सहित कई नागरिकों को मार डाला, और कई अन्य को घायल कर दिया. हमले में लगऊग 80 लोगों की मौत हो गई थी.

नमनेंग गांव में हत्या
पिछले महीने कि राज्य के नमनेंग गांव में बर्मी सैन्य बलों द्वारा नागरिकों की सामूहिक हत्या की। नरसंहार के दौरान म्यांमार के सैनिकों ने 3 बौद्ध भिक्षुओं सहित कम से कम 30 नागरिकों को मार डाला था।

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