
वर्ल्ड डेस्क। पीएम नरेंद्र मोदी ब्रुनेई की ऐतिहासिक यात्रा (Narendra Modi Brunei visit) पर हैं। यह किसी भारतीय पीएम के लिए ब्रुनेई की पहली यात्रा है। आधिकारिक तौर पर ब्रुनेई दारुस्सलाम के नाम से जाना जाता है। यह दक्षिण-पूर्व एशिया में बोर्नियो द्वीप के उत्तरी तट पर स्थित छोटा लेकिन समृद्ध देश है। इसकी सीमा मलेशिया से लगती है। इसकी तटरेखा दक्षिण चीन सागर से सटी हुई है।
ब्रुनेई करीब 5,765 वर्ग किलोमीटर में फैला है। यहां तेल और गैस के बड़े भंडार हैं। आबादी लगभग 460,000 है। इसके चलते यह क्षेत्र के सबसे कम आबादी वाले देशों में से एक है। छोटे आकार और कम आबादी के बाद भी ब्रुनेई में जीवन स्तर बहुत ऊंचा है। ब्रुनेई और भारत के संबंध सदियों पुराने हैं। यहां बड़ी संख्या में भारतीय डॉक्टर और शिक्षक जाते हैं। आइए इसकी चार खास वजहों को जानते हैं।
ब्रुनेई में मिलती है टैक्स फ्री सैलरी
ब्रुनेई में आयकर नहीं लिया जाता। यहां काम करने वाले भारतीय डॉक्टरों और शिक्षकों को भी वेतन से कोई टैक्स नहीं देना होता है। इसके चलते टेक-होम सैलरी अधिक रहती है। इससे भारतीय प्रवासी अधिक कमाई कर पाते हैं और आरामदायक जीवन जीते हैं।
भारत से अधिक दूर नहीं है ब्रुनेई
ब्रुनेई अमेरिका और यूरोप की तुलना में भारत से करीब है। यहां से विमान से भारत आने-जाने में अधिक समय नहीं लगता। इससे भारतीय पेशेवर अपने परिवारों के साथ जुड़े रहते हैं। जरूरत पड़ने पर वह जल्द और आराम से घर लौट पाते हैं।
भारत और ब्रुनेई की संस्कृति में है समानता
भारत और ब्रुनेई की संस्कृति में बहुत सी समानताएं हैं। कई भारतीय रीति-रिवाज, परंपराएं और यहां तक कि शब्द भी ब्रुनेई की संस्कृति में समाहित हो गए हैं। ब्रुनेई में बोली जाने वाली मलय भाषा में संस्कृत से निकले शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है। स्थानीय समारोहों और परंपराओं में भारतीय सांस्कृतिक प्रथाएं झलकती हैं। इससे भारतीय पेशेवरों को यहां घर जैसा महसूस होता है।
भारत और ब्रुनेई के सिस्टम में है समानता
भारत और ब्रुनेई दोनों ब्रिटिश उपनिवेश रहे हैं। इसके चलते दोनों देशों की प्रशासनिक और शैक्षिक सिस्टम में समानताएं हैं। इससे भारतीय पेशेवरों के लिए ब्रुनेई में काम करना आसान होता है।
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