मारियुपोल का लाल वैन वाला मसीहा, भयंकर रास्तों पर चलते हुए बचा चुका है 200 लोगों की जान, सुनिए दर्दभरी दास्तां

अपनी छह छह यात्राओं के दौरान शख्स ने ऐसे-ऐसे मंजर देखे और ऐसी स्थितियों का सामना किया कि किसी का भी कलेजा फट जाए। वह बताता है कि लाशों के दलदल से गुजरते समय आंखें बंद करनी पड़ती थी कि कहीं कोई मासूम न दिख जाए। 

Dheerendra Gopal | / Updated: Apr 27 2022, 07:20 AM IST

कीव। कोई भी युद्ध मानव सभ्यता के लिए हितकारी नहीं हो सकते। लड़ाइयां हमेशा ही अफसोस छोड़कर जाती हैं। लेकिन मानवता विरोधी ऐसे कृत्यों के दौरान कई ऐसी मिसाले भी सामने आ जाती हैं जो पीढ़ियों के लिए यादगार हो जाती हैं। यूक्रेन युद्ध में मारियुपोल का इतिहास सबसे अधिक खोने और बर्बाद होने वालों के रूप में लिखा जाएगा। लेकिन इसी मारियुपोल के मायखइलो पुर्यशेव (Mykhailo Puryshev), पीढ़ियों के लिए मिसाल बन चुके हैं। मिसाइल, मोर्टार और बम के हमलों के बीच पहुंच कर यह शख्स 200 से अधिक लोगों को सुरक्षित निकाल चुका है। अपनी छह यात्राओं के दौरान पुर्यशेव ने जो भयानक तस्वीर युद्ध क्षेत्र की देखी, उसे सुनकर किसी का भी रूह कांप उठे। 

कौन हैं पुर्यशेव?

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यूक्रेन पर रूसी हमले के पहले मारियुपोल (Mariupol) एक जीवंत शहर हुआ करता था। इस शहर के रहने वाले 36 वर्षीय मायखाइलो पुर्यशेव (Mykhailo Puryshev) एक नाइट क्लब चलाकर अपनी आजीविका चलाते थे। एक खुशहाल जीवन वह जी रहे थे। लेकिन युद्ध ने सबकुछ तबाह कर दिया। शहर की तबाही के वह भी पीड़ित हैं। 

तबाह हो चुके शहर में फंसे लोगों को निकालने का उठाया था जिम्मा

दरअसल, मारियुपोल में रूसी हमले के बाद तबाही के सिवाय कुछ बचा नहीं है। लाखों लोग किसी तरह खुद की जान बचाकर जीवन के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। हजारों लोग हमले में मारे जा चुके हैं। इन फंसे लोगों को निकालने के लिए बीते दिनों पुर्यशेव ने बीड़ा उठाया। उन्होंने अपने कर्मचारियों से कहकर नाइट क्लब के बेसमेंट में सैकड़ों लोगों को सुरक्षित किया। इसके बाद वह अपने एक लाल रंग के बैन से कुछ लोगों को निकाला भी। बेहद दुर्गम यात्रा तय कर पुर्यशेव ने छह ट्रिप में करीब 200 लोगों को युद्ध क्षेत्र से बाहर निकाला है। 

पुर्यशेव की निजी तौर पर आयोजित यात्राएं भूखे नागरिकों के लिए एक जीवन रेखा रही हैं क्योंकि मानवीय गलियारों को स्थापित करने के बार-बार प्रयास विफल रहे।
अपनी यात्रा के संदर्भ में पुर्यशेव बताते हैं, "जब मैं पहली बार (8 मार्च को) गया था, तो शहर धुएं के बादल की तरह था, अलाव की तरह.. इमारतें काले कोयले की तरह दिख रहीं थी, हर ओर मलबा था। पुरीशेव ने अपनी यात्राओं के ऑनलाइन वीडियो भी बनाए हैं जो शहर में एक दुर्लभ झलक पेश करते हैं। हालांकि, वहां मोबाइल काम नहीं करते हैं इसलिए कम ही जानकारी साझा किए हैं।

बेहद मुश्किल होता था सफर, हर ओर लाश से मन होता था विचलित

मारियुपोल से तो पुर्यशेव का तो जन्म का रिश्ता है लेकिन वह बताते हैं कि रूसी हमले के दौरान शहर में घुसना या उसके आसपास से निकलना किसी त्रासदी से कम नहीं थी। रूसी कब्जे वाले क्षेत्र से होकर वह मारियुपोल के लिए जाते थे। करीब आठ घंटे की उनकी यात्रा में लाशों के ढेर से होकर गुजरना पड़ा था। हर ओर लाश और आसमान से गिरते बम, मिसाइल्स हमेशा ही दहशत पैदा करते थे। लगातार बारूदी सुरंगों का डर था।
उन्होंने कहा कि शहर के अंदर, वह जमीन पर या वाहनों के जले हुए अवशेषों के अंदर बिखरी हुई लाशों को नहीं देखते थे। वह बताते हैं कि डर लगता था कि किसी बच्चे की लाश पर नजर न पड़ जाए और वह इससे पूरी तरह टूट न जाएं। कहीं कोई ऐसी जगह नहीं जहां लाशें न हो। उन्होंने कहा कि शॉपिंग सेंटरों, नाइट क्लबों और यहां तक ​​कि एक किंडरगार्टन के मैदान, गली में लोगों की लाशें पड़ी थीं। कुछ शवों को कालीनों में लपेट कर बेंचों पर छोड़ दिया गया था।

कई अजीब चीजें भी देखने को मिली

अपनी रेस्क्यू यात्रा के दौरान पुर्यशेव याद करते हुए कहते हैं कि एक अजीब व्यक्ति मुझे दिखा, जो भोजन की तलाश में शिकारी की तरह इधर उधर लाशों के बीच में ही भटकता। अनाथ बच्चों के लिए इसी तरह भोजन की व्यवस्था करता। उन बच्चों के मैले भी साफ करता जो अपना अंडरवियर तक नहीं बदल पाते थे। उसे बच्चे अंकल मिशा कहकर पुकारते थे। वह बताते हैं कि एक विधवा महिला उनको मिली। उन्होंने अपने मृत पति की लाश से शादी की अंगूठी लेने के लिए उनसे कही। लेकिन उन्होंने कहा कि वह ऐसा करने में खुद को असमर्थ पाते हैं।

सैनिकों की धमकी के बाद 28 मार्च के बाद नहीं गया...

पुर्यशेव ने बताया कि अंततः उन्हें 28 मार्च को अपनी यात्राएं छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। बार बार उनको लोगों को लाने जाते देख एक अलगाववादी सैनिक ने कहा कि वह वापस न आएं अन्यथा उसे बद्तर अंजाम भुगतना पड़ेगा। 

भगवान ने की मदद...

पुरीशेव ने कहा कि भगवान ने उसकी देखभाल और मदद की थी। वह कहते हैं कि उनको केवल एक ही चोट लगी थी। उनकी तरफ एक कांच का टुकड़ा था लेकिन कोट ने बचा लिया और केवल एक खरोंच ही लग सका।

लाल वैन जीवन की कहानी बयां करेगी...

पुर्यशेव ने कहा कि लाल वैन उन्होंने अपने दोस्तों के लिए स्पेशली खरीदा था। लोगों को बचाने में उसकी विंडशील्ड, तीन साइड की खिड़कियां और एक साइड का दरवाजा एक स्ट्राइक में नष्ट हो गया। संयोग अच्छा था कि उस समय गाड़ी में कोई अंदर नहीं था। उन्होंने यात्राओं के बीच वैन की मरम्मत की। वह बताते हैं कि वैन पर गोलाबारी हुई, एक स्ट्राइक, मोर्टार, राइफल फायर, सब निशान हैं। वैन पर युद्ध के बहुत सारे निशान हैं। वह कहते हैं कि जब हम मारियुपोल लौटेंगे तो हम इसे एक स्मारक में बदल देंगे।

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