वर्ल्ड डेस्क। पाकिस्तान इन दिनों अपने सबसे बड़े सूबे बलूचिस्तान में हुए भीषण आतंकी हमलों से खौफ में है। उसे लंबे समय से अशांत रहे इस प्रांत को खोने का डर सता रहा है। बलूचिस्तान की समस्या गहरी है। पाकिस्तान ने 1947 में बलूचिस्तान नाम के आजाद देश पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद से यहां आजादी के लिए संघर्ष चल रहा है।
15 अगस्त 1947 को भारत को ब्रिटिश शासन से आजादी मिलने से चार दिन पहले 11 अगस्त 1947 को बलूचिस्तान को एक स्वतंत्र देश घोषित किया गया था। 1947 में पाकिस्तान को एक अलग देश बनाया गया था। मुहम्मद अली जिन्ना ने बलूचिस्तान के शासक खान मीर अहमद यार खान के लिए ब्रिटिशों के सामने केस लड़ा था। बलूचिस्तान सिर्फ 227 दिनों तक आजाद देश बना रह सका।
बलूचिस्तान लंबे समय से उथल-पुथल का सामना कर रहा है। सोमवार को बलूच आतंकवादियों ने पाकिस्तानी पंजाबियों को निशाना बनाकर अलग-अलग आतंकी हमलों में 70 से ज्यादा लोगों की हत्या कर दी। पाकिस्तानी सुरक्षा बलों ने कम से कम 21 बलूच आतंकवादियों को मार दिया।
एक महीने से सुलग रहा बलूचिस्तान, नहीं हुआ अचानक विस्फोट
बलूचिस्तान में आतंकी हमले करीब एक महीने तक चली राजनीतिक अशांति की नई लहर के बाद हुए हैं। 27 जुलाई से बलूचिस्तान में बलूच यकजेहती समिति (बीवाईसी) और पाकिस्तान सरकार के नेतृत्व वाले प्रदर्शनकारियों के बीच जारी गतिरोध के कारण तनाव बना हुआ है। सरकार विरोध प्रदर्शन कुचलने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। इसके बाद भी विरोध मार्च, रैलियां, प्रदर्शन और धरने जारी हैं।
बीवाईसी खुद को बलुचिस्तान के लोगों के अधिकारों की वकालत करने वाला समूह बताता है। वहीं, पाकिस्तानी सेना इसे “आतंकवादी संगठनों और आपराधिक माफियाओं का प्रतिनिधि” बताती है, जिसका उद्देश्य बलूचिस्तान में (चीन की) विकास परियोजनाओं को रोकना है।
पाकिस्तान 44% हिस्सा है बलूचिस्तान
बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है। यह पाक के भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 44% हिस्सा है। इसके साथ ही तेल, सोना, तांबा और अन्य खदानों से समृद्ध है। चीन की इसपर खास है। प्राकृतिक संसाधन से धनवान होने के बाद भी यह पाकिस्तान का सबसे गरीब और पिछड़ा क्षेत्र है। इस वजह से यहां के लोगों में असंतोष है।
बलूचिस्तान बलूच जनजाति का घर है। बलूच सदियों से इस क्षेत्र में रहते आ रहे हैं। इनकी अलग संस्कृति है जो इन्हें ईरान के सिस्तान प्रांत में सीमा पार रहने वाले लोगों के करीब बनाती है। भारत पर ब्रिटिश शासन के दौरान यह क्षेत्र ईरान और अभी के पाकिस्तान के बीच बंट गया था।
पाकिस्तान ने कैसे किया बलूचिस्तान पर कब्जा
बलूचिस्तान की आधुनिक कहानी 1876 में कलात रियासत और ब्रिटिश भारत सरकार के बीच हुई संधि से शुरू होती है। इससे कलात को आंतरिक स्वायत्तता मिली थी। 1947 में बलूचिस्तान में चार रियासतें शामिल थीं- कलात, खारन, लास बेला और मकरन। इनमें से तीन को भारत या पाकिस्तान में शामिल होने या अपनी आजादी की घोषणा करने का विकल्प दिया गया था। 1876 की संधि के अनुसार कलात को दोनों देशों में से किसी एक में शामिल होने की जरूरत नहीं थी।
1946 में कलात के खान ने अंग्रेजों के सामने अपना मामला रखने के लिए जिन्ना को वकील बनाया। 1947 में दिल्ली में एक बैठक में जिन्ना ने कलात की स्वतंत्रता दिए जाने की वकालत की। बैठक में अंतिम ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन, कलात के खान, कलात के मुख्यमंत्री, जिन्ना और जवाहरलाल नेहरू शामिल थे।
इस बात पर सहमति बनी कि कलात स्वतंत्र रहेगा। जिन्ना ने जोर दिया कि खरान, लास बेला और मकरान को कलात में मिलाकर एक पूर्ण बलूचिस्तान बनाया जाए। 11 अगस्त 1947 को कलात और मुस्लिम लीग के बीच एक समझौते पर साइन किए गए। बलूचिस्तान को भारत और पाकिस्तान के साथ स्वतंत्र होना था। पाकिस्तान को उसकी सुरक्षा करनी थी। कलात के खान ने 12 अगस्त को बलूचिस्तान को स्वतंत्र घोषित कर दिया।
मार्च 1948 में जिन्ना ने बलूचिस्तान भेज दी सेना
खान ने अपने क्षेत्रों के एकीकरण का इंतजार किया, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सितंबर 1947 में अंग्रेजों ने एक अधिसूचना जारी की, जिसमें कहा गया कि कलात एक स्वतंत्र देश के रूप में काम करने की स्थिति में नहीं है। कलात जिन्ना की मदद मांगने अक्टूबर 1947 में पाकिस्तान गए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। मार्च 1948 में जिन्ना ने कलात से खारन, लास बेला और मेकरान को अलग करके पाकिस्तान में विलय की घोषणा की।
मार्च के अंत तक जिन्ना ने बलूचिस्तान में सेना भेज दी। खान के पास अपने राज्य को पाकिस्तान में शामिल करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा। बलूचिस्तान के लोगों ने इसे जिन्ना द्वारा किया गया धोखा माना। खान के भाई प्रिंस करीम खान ने बलूच राष्ट्रवादियों का नेतृत्व किया। वे 1948 में अपनी स्वायत्तता और संस्कृति बचाने के लिए पहली विद्रोही क्रांति में उभरे थे।
1948 के विद्रोह को कुचल दिया गया। करीम खान सहित सभी शीर्ष नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद विद्रोह को नए नेता मिलते रहे। 1950, 1960 और 1970 के दशक में पाकिस्तान की सरकारों को चुनौती मिलती रही। हर बार पाकिस्तानी सेना ने और अधिक क्रूरता से विद्रोह को दबाया।
लंबे समय से पाकिस्तान को बलूचिस्तान को संभालना मुश्किल लगता रहा है। उसने विद्रोह के लिए ईरान समेत बाहरी ताकतों को जिम्मेदार ठहराया है। इस साल जनवरी में ईरान और पाकिस्तान ने एक-दूसरे के विरोधी बलूच समूहों को कथित समर्थन देने के आरोप में एक-दूसरे पर हवाई हमले किए। अब स्थिति इतनी खराब हो रही है कि पाकिस्तान को यह सूबा गंवाने का डर सता रहा है।
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