
नई दिल्ली. म्यांमार में तख्तापलट के बाद जारी राजनीतिक संकट को लेकर संयुक्त राष्ट्र महासभा(UNGA) के प्रस्ताव पर भारत ने असहमति जताई है। इसके साथ उसने खुद को इससे अलग कर लिया। भारत का मानना है कि एक पड़ोसी देश होने के नाते रचनात्मक दृष्टिकोण जरूरी है। वैसे भी अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस मसले का हल निकालने की कोशिश में लगा है।
भारत के साथ चीन और रूस ने भी नहीं की वोटिंग
म्यांमार में तख्तापलट के बाद इमरजेंसी जैसे हालात हैं। कई बड़े नेता जेल में बंद हैं। इसे लेकर शुक्रवार को UNGA ने एक प्रस्तावित पारित किया था। इसमें कहा गया कि सेना को आमजनों की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए। बता देंकि 8 नवंबर, 2020 को वहां आम चुनाव हुए थे। लेकिन सेना ने सरकार को हटा दिया।
119 देशों ने किया प्रस्ताव का समर्थन
इस प्रस्ताव पर 119 देशों ने सहमति जताई, जबकि एक देश बेलारूस ने नहीं बोला। भारत के अलावा चीन और रूस ने वोटिंग से खुद को अलग कर लिया। यूएन में भारत के राजदूत टीएम तिरुमूर्ति ने कहा कि म्यांमार में जो कुछ हो रहा है, उससे भारत को चिंता है। भारत हमेशा से हिंसा की निंदा करता रहा है। भारत चाहता है कि संयम बरता जाए।
यह हुआ म्यांमार में
म्यांमार में 1 फरवरी को हुए सैन्य तख्तापलट के बाद मानों पूरा देश खौफ के साये में जी रहा है। सड़कें खून से रंग चुकी हैं। यहां सेना की क्रूरता का सबसे भयानक चेहरा सामने आया है। तख्तापलट के बाद अब तक सेना विरोध प्रदर्शन कर रहे सैकड़ों लोगों को मौत के घाट उतार चुकी है। म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के बाद प्रदर्शनकारियों की संख्या बढ़ती जा रही है। वे देश की शीर्ष नेता आंग सान सू की रिहाई की मांग कर रहे हैं। बता दें कि आंग सान सू बर्मा(अब म्यांमार) के राष्ट्रपिता कहे जाने वाले आंग सान की बेटी हैं। आंग सान की 1947 में हत्या कर दी गई थी।
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फोटो सोर्स-AFP
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