
वाशिंगटन. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत दौरे से पहले चार प्रभावशाली अमेरिकी सांसदों ने कश्मीर में मानवाधिकार हालात और देश में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति का आकलन करने की मांग उठाई और कहा कि सैकड़ों कश्मीरी अभी भी ‘एहतियातन हिरासत’ में हैं। जिन सांसदों ने यह मांग की है वे खुद को ‘भारत का दीर्घकालिक मित्र’ बताते हैं।
कश्मीर में इंटरनेट पाबंदी पर अमेरिकी सांसदों ने माइक पोम्पियो को लिखा पत्र
सांसदों के द्विदलीय समूह ने विदेश मंत्री माइक पोम्पियो को भेजे पत्र में कहा है कि किसी भी लोकतंत्र में सर्वाधिक अवधि तक इंटरनेट ठप रहने की घटना भारत में हुई है, इससे 70 लाख लोगों तक चिकित्सा, कारोबार तथा शिक्षा की उपलब्धता बाधित हुई है। हालांकि अधिकारियों का कहना है कि सुरक्षा हालात का जायजा लेने के बाद घाटी में इंटरनेट चरणबद्ध तरीके से बहाल किया जा रहा है।
सांसदों ने पत्र में लिखा कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर की स्वायत्ता एकतरफा तरीके से खत्म करने के छह महीने बाद भी सरकार ने क्षेत्र में इंटरनेट पर पाबंदी लगा रखी है। इसमें कहा गया कि महत्वपूर्ण राजनीतिक हस्तियों समेत सैकड़ों कश्मीरी एहतियाती हिरासत में हैं। पत्र में क्रिस वान हॉलेन, टोड यंग, रिचर्ड जे डर्बिन और लिंडसे ओ ग्राहम के हस्ताक्षर हैं।
सरकार ने जो फैसले लिए हैं उससे धर्मनिरपेक्ष तानेबाने को खतरा है- सांसद
पत्र में लिखा है , ‘‘भारत सरकार ने कुछ ऐसे कदम उठाए हैं जो कुछ धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए नुकसानदायक हैं और देश के धर्मनिरपेक्ष तानेबाने के लिए खतरा पैदा करते हैं। इसमें विवादित संशोधित नागरिकता कानून शामिल है जिसे भारत के उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई है।’’
सांसदों ने पत्र में पोम्पियो से अनुरोध किया कि विदेश मंत्रालय भारत में कई मुद्दों का आकलन करे। इसमें राजनीतिक उद्देश्य से सरकार द्वारा लोगों को हिरासत में लेना, उनके साथ बर्ताव, जम्मू-कश्मीर में संचार पर पाबंदी, जम्मू-कश्मीर में प्रवेश और धार्मिक स्वतंत्रताओं पर पाबंदी जैसे मुद्दे शामिल हैं।
(यह खबर समाचार एजेंसी भाषा की है, एशियानेट हिंदी टीम ने सिर्फ हेडलाइन में बदलाव किया है।)
(फाइल फोटो)
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