शाकाहारी, जानवरों से प्रेम करती हैं लिटरेचर का नोबल पाने वाली ये राइटर

तुकार्चुक एक ऐसी लेखिका हैं जो एक राजनीतिक कार्यकर्ता भी हैं और कई बार अपने बयानों के लिए विवादों में रही हैं। 2015 में उन्होंने सरकारी मीडिया पर यह बयान दिया था कि मुक्त और सहिष्णु पोलैंड एक कल्पना है। इसको लेकर भी उन्हें जान से मारने की धमकी मिली थी।

Asianet News Hindi | Published : Oct 10, 2019 1:56 PM IST

वारसा. वर्षों से नोबेल पुरस्कारों को लेकर दुनियाभर में यह बात कही जा रही थी कि ये पुरस्कार ‘पुरुष केंद्रित’ हैं। 2018 के साहित्य पुरस्कार की घोषणा के साथ स्वीडिश अकेडमी इस शिकायत को दूर करती हुई नजर आई है। साहित्य में 2018 का नोबेल पुरस्कार पौलैंड की लेखिका ओल्गा तुकार्चुक को दिए जाने की घोषणा की गई है।

2015 में मिली थी जान से मारने की धमकी 
तुकार्चुक एक ऐसी लेखिका हैं जो एक राजनीतिक कार्यकर्ता भी हैं और कई बार अपने बयानों के लिए विवादों में रही हैं। 2015 में उन्होंने सरकारी मीडिया पर यह बयान दिया था कि मुक्त और सहिष्णु पोलैंड एक कल्पना है। इसको लेकर भी उन्हें जान से मारने की धमकी मिली थी। उनके प्रकाशक उनकी सुरक्षा के लिए कई तरह के कदम उठाते रहे हैं। तुकार्चुक को पोलैंड में इस पीढ़ी की सबसे प्रतिभा संपन्न उपान्यसकारों में से एक माना जाता है। उनके हिस्से में सबसे ज्याद बिकने वाली किताबों के नाम भी हैं। उनकी लेखनी की बात करें तो उनमें एक ही साथ यथार्थ और कल्पना का गठजोड़ मौजूद है।

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जानवरों से प्रेम करती हैं लेखिका 
तुकार्चुक शाकाहारी, जानवरों से प्रेम करने वाली और पर्यावरणविद हैं। 57 वर्षीय लेखिका पोलैंड की दक्षिणी पंथी सरकार की आलोचना करने से भी पीछे नहीं हटती हैं। तुकार्चुक की किताबें एक ऐसी रंग-बिरंगी दुनिया गढ़ती है जो निरंतर गति में है, जिसके पात्र और किरदार आपस में एक-दूसरे से जुड़े हैं। इन सभी चीजों को गढ़ने के दौरान तुकार्चुक एक ऐसी भाषा का इस्तेमाल करती हैं जिसमें संक्षेप में बड़ी बातें कही जाती है। यही नहीं उनकी भाषा में एक लय है, एक काव्यात्मकता है।

मेरे पास बहुरंगी आत्मकथा है "तुकार्चुक"
एक साक्षात्कार में तुकार्चुक ने कहा, ‘‘ मेरे पास कोई ऐसी मेरी आत्मकथा नहीं है जिसे मैं दिलचस्प तरीके से याद कर सकती हूं। मैं उन किरदारों से बनी हुई हूं जो मेरे दिलो-दिमाग से उपजे हैं, जिन्हें मैंने गढ़ा है। मैं उन सभी चीजों से बनी हुई हूं। मेरे पास बहुरंगी आत्मकथा है।’’

पहले भी मिल चुके हैं कई सम्मान 
तुकार्चुक ने एक दर्जन से अधिक किताबें लिखी हैं और ब्रिटेन के प्रतिष्ठित मैन बुकर पुरस्कार से उन्हें पिछले साल ही सम्मानित किया गया है। उन्हें पोलैंड के प्रतिष्ठित पुरस्कार नाइक लिटरेरी पुरस्कार से भी दो बार सम्मानित किया जा चुका है। लेखिका की किताबों का नाट्य रूपांतरण भी हुआ है और हिंदी सहित 25 अन्य भाषाओं में उनकी किताबों का अनुवाद हुआ है। तुकार्चुक का जन्म 29 जनवरी, 1962 में सुलेस्चोव में हुआ और उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ वारसा से मनोविज्ञान की पढ़ाई की है।

कविताओं और स्क्रिप्ट का भी किया है लेखन 
गद्य की दुनिया में आने से पहले तुकार्चुक ने कविताएं भी लिखी हैं। तुकार्चुक का पहला उपन्यास ‘ द जर्नी ऑफ द पीपल ऑफ द बुक्र 1993 में आया था। 2017 में अंग्रेजी में आई उनकी किताब ‘फ्लाइट्स’ मूल भाषा में 2007 में आई थी। उनकी 900 पन्नों की किताब ‘ द बुक्स ऑफ जैकब’ का विस्तार सात देशों, तीन धर्मों और पांच भाषाओं में है। यह किताब 2014 में आई है। इबरानी (हिब्रू) किताबों की तरह इसके पन्नों का क्रमांक किया गया है। भले ही इस किताब की बिक्री खूब हुई हो लेकिन इसे पोलैंड के राष्ट्रवादी सर्किल में आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है। किताबों के अलावा तुकार्चुक ने पोलैंड की क्राइम फिल्म ‘स्पूर’ के लिए सह पटकथा लेखन भी किया है।
 

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