Russia Ukraine conflict: यूक्रेन पर रूस के हमले से खौफ में दुनिया; सोशल मीडिया पर आए दिल दहलाने वाले वीडियोज

रूस ने यूक्रेन पर हमला करके दुनिया के सामने भयंकर संकट खड़ा कर दिया है। रूस-यूक्रेन (Russia Ukraine conflict) के बीच यह तनाव सिर्फ दो देशों के बीच नहीं है, इसका असर सारी दुनिया पर पड़ सकता है। ऑस्ट्रेलियाई पीएम स्कॉट मॉरिसन(Australian PM Scott Morrison) ने एक दिन पहले ही आशंका जताई थी कि रूस किसी भी क्षण यूक्रेन पर हमला कर सकता है। 

वर्ल्ड न्यूज डेस्क. रूस-यूक्रेन (Russia Ukraine conflict) के बीच छिड़ी लड़ाई ने दुनियाभर को चिंता में डाल दिया है। रूसी सैनिक क्रीमिया के रास्ते यूक्रेन में घुसकर हमला कर रहे हैं। अगर इस युद्ध पर विराम नहीं लगा, तो दुनिया तीसरे विश्व युद्ध(third world war) में धकेल दी जाएगी। बता दें कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन(Vladimir Putin) ने यूक्रेन पर आक्रमण का आदेश देकर दुनिया के सामने भयंकर संकट खड़ा कर दिया है। पुतिन ने 'यूक्रेन के विसैन्यीकरण और विमुद्रीकरण( demilitarisation and denazification of Ukraine) के उद्देश्य से विशेष सैन्य अभियान' की घोषणा की। ऑस्ट्रेलियाई पीएम स्कॉट मॉरिसन(Australian PM Scott Morrison) ने एक दिन पहले ही आशंका जताई थी कि रूस किसी भी क्षण यूक्रेन पर हमला कर सकता है। 

देखें लड़ाई के बाद सोशल मीडिया पर सामने आए कुछ वीडियोज...

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यह है विवाद की वजह
रूस यूक्रेन की नाटो की सदस्यता का विरोध कर रहा है। लेकिन यूक्रेन की समस्या है कि उसे या तो अमेरिका के साथ होना पड़ेगा या फिर सोवियत संघ जैसे पुराने दौर में लौटना होगा। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन पहले ही रूस को चेता चुके थे कि अगर उसने यूक्रेन पर हमला किया, तो नतीजे गंभीर होंगे। दूसरी तरफ यूक्रेन भी झुकने को तैयार नहीं था। उसके सैनिकों को नाटो की सेनाएं ट्रेनिंग दे रही हैं। अमेरिका को डर है कि अगर रूस से यूक्रेन पर कब्जा कर लिया, तो वो उत्तरी यूरोप की महाशक्ति बनकर उभर आएगा। इससे चीन को शह मिलेगी। यानी वो ताइवान पर कब्जा कर लेगा।

नाटो क्या है
नॉर्थ अटलांटिक ट्रिटी ऑर्गेनाइजेशन(नाटो) की स्थापना 4 अप्रैल 1949 को 12 संस्थापक सदस्यों द्वारा अमेरिका के वॉशिंगटन में किया गया था। यह एक अंतर- सरकारी सैन्य संगठन है। इसका मुख्यालय बेल्जियम की राजधानी ब्रुसेल्स में अवस्थित है। वर्तमान में इसके सदस्य देशों की संख्या 30 है। इसकी स्थापना का मुख्य   उद्देश्य पश्चिम यूरोप में सोवियत संघ की साम्यवादी विचारधारा को रोकना था। इसमें फ्रांस, बेल्जियम,लक्जमर्ग, ब्रिटेन, नीदरलैंड, कनाडा, डेनमार्क, आइसलैण्ड, इटली,नार्वे, पुर्तगाल, अमेरिका, पूर्व यूनान, टर्की, पश्चिम जर्मनी और स्पेन शामिल हैं।

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