
कीव। रूस और यूक्रेन की बीच जारी जंग (Russia Ukraine War) का आज 13वां दिन है। यूक्रेन के सूमी में रूस की सेना भारी बमबारी कर रही थी। इसके साथ ही सड़कों पर यूक्रेन और रूस के सैनिकों के बीच घमासान लड़ाई चल रही थी। इसके चलते वहां फंसे भारतीय नागरिकों को निकालने में परेशानी हो रही थी। रूस और यूक्रेन ने युद्धग्रस्त क्षेत्र में फंसे आम लोगों को निकालने के लिए मानवीय गलियारा बनाने और युद्ध विराम करने का फैसला किया था। मंगलवार को इसका असर देखने को मिला और सूमी में फंसे सभी भारतीय नागरिकों को निकालने में सफलता मिल गई।
भारतीय नागरिकों को लेकर 12 बसों का काफिला सूमी से रवाना हुआ है। भारतीय दूतावास और रेड क्रॉस के अधिकारी काफिले को एस्कॉर्ट कर रहे हैं। बांग्लादेशियों और नेपालियों को भी सूमी से निकलने की सुविधा दी गई है। भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि यह बताते हुए खुशी हो रही है कि हम सभी भारतीय छात्रों को सूमी से बाहर निकालने में सफल रहे हैं। वे वर्तमान में पोल्टावा के रास्ते में हैं। जहां से वे पश्चिमी यूक्रेन के लिए ट्रेनों में सवार होंगे। ऑपरेशन गंगा (Operation Ganga) के तहत उड़ानें उन्हें घर लाने के लिए तैयार की जा रही है।
रूस से तेल और गैस आयात पर अमेरिका ने लगाया बैन
दूसरी ओर यूक्रेन पर हमला करने के चलते अमेरिका और उसके सहयोगी देश रूस के खिलाफ कड़े प्रतिबंध लगा रहे हैं। रूस की अर्थव्यवस्था काफी हद तक तेल और गैस के निर्यात पर टिकी है। अमेरिका ने अब रूसी तेल और गैस के आयात पर पाबंदी लगा दी है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इसकी घोषणा की। गैस की बढ़ती कीमतों के बावजूद, इस कदम को अमेरिका में व्यापक राजनीतिक समर्थन मिला है। अमेरिका ने अपने यूरोपीय सहयोगियों के बिना यह फैसला एकतरफा किया है।
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बता दें कि यूरोपीय देश ऊर्जा जरूरतों के लिए रूसी गैस और तेल पर अधिक निर्भर हैं। रूस ने पहले चेतावनी दी थी कि अगर पश्चिम रूस के तेल पर प्रतिबंध लगाता है तो वह जर्मनी के लिए अपनी मुख्य गैस पाइपलाइन बंद कर सकता है। यूरोपीय संघ को अपनी गैस का लगभग 40% और अपने तेल का 30% रूस से प्राप्त होता है और आपूर्ति बाधित होने पर कोई आसान विकल्प नहीं है। इसकी तुलना में 8% अमेरिकी तेल और परिष्कृत उत्पाद रूस से आते हैं।
रूस दुनिया का तीसरे सबसे बड़ा तेल निर्यातक देश है। कच्चे तेल पर प्रतिबंध लगने से रूस की अर्थव्यवस्था को बहुत अधिक नुकसान होगा। हालांकि इससे तेल की कीमत भी बढ़ सकती है। कच्चे तेल की कीमत पहले ही 139 डॉलर प्रति बैरल के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है। यह लगभग 14 वर्षों के लिए उच्चतम स्तर है।
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