रमजान में मुस्लिमों को जगाते हैं सहरी खान, आज भी जिंदा है सदियों से चली आ रही परंपरा

रमजान के महीने में कई सालों से चली आ रही परंपराओं को लोग आज भी निभा रहे हैं। यही वजह है कि पिछले कई सालों से रमजान के महीने में रोजेदारों को सेहरी के लिए जगाने की परंपरा चली आ रही है। दुनिया के कई देशों में आज भी इसका पालन किया जा रहा है। 

Contributor Asianet | Published : Mar 27, 2023 12:49 PM IST / Updated: Mar 27 2023, 06:22 PM IST

Sehri Khans waking up Muslims during Ramazan: रमजान के महीने में कई सालों से चली आ रही परंपराओं को लोग आज भी निभा रहे हैं। यही वजह है कि पिछले कई सालों से रमजान के महीने में रोजेदारों को सेहरी के लिए जगाने की परंपरा चली आ रही है। इसकी एक वजह यह भी है कि पहले घड़ियां नहीं होती थीं, ऐसे में लोगों को सेहरी के समय का पता नहीं चल पाता था। जब तक उठो, तब तक सेहरी का वक्त निकल जाता था। इसी को देखते हुए लोगों को जगाने के लिए ढोल-ताशे बजाने और आवाज लगाने की परंपरा शुरू हुई। ये परंपरा भारत ही नहीं बल्कि मिस्र, तुर्की और कई इस्लामिक देशों में चल रही है।

रमजान में रोजेदारों को जगाने की परंपरा :

रोजेदारों को सेहरी के लिए जगाने वालों को इस्लामिक देशों में मसाहरतीस भी कहा जाता है। मसाहरती का शाब्दिक अर्थ वो दरवेश है, जो रमजान के महीने में रोजेदारों को जगाते हैं। भारत और दक्षिण एशियाई देशों में इन्हें सहरी खान भी कहते हैं। अलार्म के इस युग में आवाज लगाकर सुबह लोगों को उठाने की ये परंपरा आज भी कायम है।

रोजेदारों को 3 घंटे ढोल-ताशे बजाकर जगाते हैं :

रमज़ान के दौरान सहरी खान रात के तीन घंटे अपने ढोल की थाप पर लोकल गीत गाते हैं ताकि रोज़ा रखने वाले समय रहते अपना बिस्तर छोड़कर सहरी के लिए तैयार रहें। इस परंपरा को मध्य पूर्व और तुर्की के अलावा मिस्र जैसे देशों में बहुत महत्व दिया जाता है। रमजान के दौरान मॉर्निंग वेक अप कॉल के लिए खास तरह के इंतजाम किए जाते हैं।

बिलाल हबाशी थे पहले मुअज्जिन :

इस्लामिक दुनिया में रोजेदारों को भोर में जगाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। 2 हिजरी में उपवास अनिवार्य होने के बाद, मदीना में लोगों को यह जानने की जरूरत महसूस हुई कि भोर से पहले लोगों को कैसे जगाया जाए? कहा जाता है कि पहले जादूगर हज़रत बिलाल हबाशी थे। बिलाल, जो इस्लाम के पहला मुअज्जिन भी थे, उन्हें सुबह की नमाज के लिए मुसलमानों को जगाने का काम सौंपा गया था।

मक्का में इन्हें कहा जाता है जमजमी :

सहरी के लिए लोगों को जगाने के लिए वे शहर में घूमते समय जलती लकड़ियां (मशाल) ले जाते थे। यह तरीका मदीना में पॉपुलर हो गया और समय के साथ कई अन्य लोगों ने भी इसे अपना लिया। मदीना के बाद यह जत्था अरब के अन्य शहरों में भी लोगों को जगाता था। लोगों ने इस परंपरा का पालन करना शुरू कर दिया और यह पूरे इस्लामिक जगत में फैल गया। मक्का में मशहरती को जमजमी कहा जाता है। वो एक लालटेन उठाता है और शहर के चारों ओर घूमता है ताकि अगर कोई व्यक्ति आवाज से न उठे, तो रोशनी से जाग जाए।

सूडान की सड़कों पर भी घूमते हैं मासाहरती :

मासाहरती सूडान की सड़कों पर भी घूमते हैं। इस दौरान उनके पास उन सभी लोगों की लिस्ट होती है, जिन्हें वो सेहरी के लिए बुलाना चाहते हैं। ये लोग हर एक घर के सामने जाकर उनके नाम पुकारते हैं। इसके बाद गली के कोने में खड़े होकर ढोल की थाप पर अल्लाह का नाम लेते हैं। हालांकि, इन लोगों को कोई सैलरी नहीं मिलती, लेकिन रमजान के महीने के आखिर में लोग उन्हें कुछ गिफ्ट वगैरह देते हैं।

तुर्की में भी है रोजेदारों को जगाने की परंपरा :

तुर्की में रोजेदार मुसलमानों को भोर में ढोल बजाकर जगाने की परंपरा अब भी चली आ रही है। जैसे ही रमजान का चांद दिखाई देता है, ढोल बजाकर दूसरों को जगाने वाले लोग पारंपरिक पोशाक में मस्जिदों के पास इकट्ठा होते हैं और रमजान के आगमन का जश्न मनाने के लिए ढोल बजाते हैं। सेहरी में ढोल बजाने की यह परंपरा खलीफा युग में तुर्की में आई थी। रमजान में दूसरों को जगाने वाले तुर्की कलाकारों को वेतन या मजदूरी नहीं मिलती है, लेकिन लोगों से इनाम के तौर पर पैसे या कोई कीमती चीज पाकर ये खुश होते हैं।

मिस्र का राजा अपनी प्रजा को सुबह जगाता था :

कहा जाता है कि मिस्र का एक राजा था, जो रात में अपनी प्रजा को सुबह जगाने निकल जाता था। इस राजा को इतिहास में उत्बाह इब्न इशाक के नाम से जाना जाता है। वो 19वीं शताब्दी के दौरान काहिरा की सड़कों पर जाने वाले पहले व्यक्ति थे। इशाक लोगों को जगाते हुए कहते थे- तुम में से जो सो रहे हैं, उठो और अल्लाह की इबादत करो।

कंटेंट : Awaz The Voice

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