
वर्ल्ड डेस्क। 15 अगस्त 2021 को अफगानिस्तान के सत्ता पर तालिबान की वापसी हुई। इससे पहले अमेरिका और पाकिस्तान जैसे देशों ने प्रचार किया कि तालिबान बदल गए हैं। आज के तालिबान 1990 जैसे नहीं हैं। तालिबान बदल गए हैं। नया तालिबान लोगों को अधिक अधिकार देगा और उनकी स्वतंत्रता के मुद्दे पर अधिक खुले विचारों वाला है। तालिबान के भी यह संदेश दिया कि उसने कई सबक सीखे हैं। हालांकि उसने साफ कर दिया था कि अफगानिस्तान में शासन इस्लामी शरिया के अनुसार होगा।
तालिबान ने सत्ता पर कब्जा करने से पहले वादा किया कि वे महिलाओं को स्कूलों और कॉलेजों में जाने देंगे। उन्हें शरिया और अफगान रीति-रिवाजों और परंपराओं का पालन करते हुए काम करने और राजनीतिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेने की इजाजत देंगे। सत्ता में आने के बाद तालिबान के अपना असली रूप दिखा दिया। महिलाओं की शिक्षा से लेकर उन्हें काम करने देने तक, तालिबान ने कोई वादा पूरा नहीं किया। तालिबान अफगानिस्तान को उसी दौर में ले गया जिसमें वह 90 के दशक में था। वह आतंक के पनाहगाह बन गए हैं।
तालिबान ने लड़कियों को स्कूल जाने और काम करने से रोक दिया। उन्होंने पुरुषों को लंबी दाढ़ी बढ़ाने और मस्जिद में दिन में पांच बार नमाज पढ़ने के लिए मजबूर किया। अफगानिस्तान में संघर्ष के दोबारा बढ़ने की संभावना की दूसरी परत अफगानिस्तान के इस्लामी अमीरात और दाएश के बीच है। यह संघर्ष अफगानिस्तान से नाटो की वापसी से पहले ही शुरू हो चुका था। दाएश लगातार मजबूत होता जा रहा है। तालिबान के भीतर अधिक चरमपंथी तत्व लड़ाई छोड़ने के विचार के विरोधी हैं। वे लड़ाई जारी रखना चाहते हैं और इस प्रकार बड़ी संख्या में दाएश में शामिल हो रहे हैं। इसके साथ ही तालिबान से बदला लेने के लिए कई पूर्व ANDSF (Afghan National Defence and Security Forces) लड़ाके भी दाएश में शामिल हो रहे हैं।
तालिबान में शामिल विदेशी लड़ाके जिहाद को दूसरे देशों में निर्यात करना चाहते हैं। तालिबान ने तय किया है कि वे दूसरे देशों में आतंकवादी हमलों की सुविधा अपनी जमीन से नहीं देंगे। इस बात से कई विदेशी लड़ाके नाराज हैं। वे दाएश में शामिल हो रहे हैं। दाएश के लिए एक और अवसर व्यापक गरीबी है। यदि दाएश भूखे युवाओं को भुगतान कर उन्हें खाना खिला सकता है, तो उनमें से हजारों लोग दाएश में शामिल हो जाएंगे। केवल दाएश ही नहीं, अफगानिस्तान में अन्य मौजूदा आतंकवादी समूह भी अपनी ताकत बढ़ा रहे हैं।
अपनी ताकत बढ़ा रहे हैं आतंकी संगठन
अफगानिस्तान क्षेत्र के अधिकांश देशों के दुश्मनों का घर बना हुआ है। अफगानिस्तान में स्थित ऐसे कई समूह आधिकारिक तौर पर क्षेत्रीय आतंकवादी समूह घोषित किए गए हैं। इनमें से कुछ तालिबान के विस्तार के रूप में काम कर रहे हैं। उन्होंने ANDSF को हराने और IRA (Islamic Republic of Afghanistan) को उखाड़ फेंकने में तालिबान की सहायता की।
अब ये अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी समूह जैसे ईटीआईएम (चीन), आईएमयू (उज्बेकिस्तान), टीटीपी (पाकिस्तान) और जमात अंसारुल्लाह (ताजिकिस्तान) अवसर का लाभ उठाना चाहते हैं। वे अपने यहां जिहाद शुरू करना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि तालिबान उनके उग्रवादी अभियानों में सक्रिय रूप से सहायता करे, जिसे वे अपने देशों में जिहाद कहते हैं।
इस स्थिति ने तालिबान के लिए दुविधा पैदा कर दी है। यदि वे इन समूहों की सहायता करते हैं तो इससे उनकी वैश्विक राजनयिक मान्यता की उम्मीदें खत्म हो जाएंगी। यदि तालिबान इन क्षेत्रीय आतंकवादी समूहों की उम्मीदों को पूरा नहीं करता है तो इससे अफगानिस्तान के अंदर हिंसा की एक और दौर शुरू होने की संभावना है।
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