श्रीलंका में विपक्षी दलों में सहमति, बुधवार को राष्ट्रपति गोटाबया के इस्तीफा के बाद बनेगी नई सरकार

श्रीलंका में स्थितियां नियंत्रित होने का नाम नहीं ले रही हैं। हालांकि, बुधवार को राष्ट्रपति गोटाबया राजपक्षे के इस्तीफा के बाद नई सरकार का भी रास्ता साफ हो गया है। लेकिन देश के हालात सुधारने के लिए सभी दल मिलकर कुछ दिनों तक सरकार चलाएंगे।

Dheerendra Gopal | Published : Jul 10, 2022 3:24 PM IST

कोलंबो। श्रीलंका (Sri Lanka economic crisis)में हालात को सुधारने के लिए राजनीतिक पहल भी शुरू हो चुकी है। देश के प्रमुख विपक्षी दलों ने राजनीतिक संकट के बीच सहमति जताई है कि एक सर्वदलीय अंतरिम सरकार (All Party interim Government) बने। बुधवार को राष्ट्रपति गोटाबया राजपक्षे (Gotabaya Rajapaksha) के इस्तीफे के बाद अंतरिम सरकार का गठन किया जाएगा। पीएम रानिल विक्रमसिंघे भी ऑल पार्टी सरकार बनाने के लिए अपना इस्तीफा देंगे। ऐसे में संविधान के अनुसार संसद अध्यक्ष महिंदा यापा अभयवर्धने को कार्यवाहक राष्ट्रपति का चार्ज मिल जाएगा। 

विपक्ष ने सर्वदलीय सरकार पर बनाई सहमति

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श्रीलंका के मुख्य विपक्षी दलों ने मिलकर सरकार बनाने के लिए एकजुटता दिखाई है। बुधवार के बाद श्रीलंका में ऑल पार्टी गवर्नमेंट का गठन किया जाएगा। वर्तमान प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे भी नई सरकार के लिए अपना इस्तीफा सौंपेंगे। सत्तारूढ़ श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना पार्टी के अलग समूह के विमल वीरावांसा ने कहा कि हम सैद्धांतिक रूप से एक अंतरिम अवधि के लिए सभी दलों की भागीदारी के साथ एकता की सरकार बनाने के लिए सहमत हुए। यह एक ऐसी सरकार होगी जहां सभी दलों का प्रतिनिधित्व होगा। एसएलपीपी से अलग हुए समूह के एक अन्य नेता वासुदेव नानायकारा ने कहा कि उन्हें 13 जुलाई को राजपक्षे के इस्तीफे का इंतजार करने की जरूरत नहीं है। मुख्य विपक्षी समागी जन बालवेगया पार्टी ने कहा कि उन्होंने व्यापक आंतरिक चर्चा की। हमारा लक्ष्य सीमित अवधि के लिए सभी पार्टियों की अंतरिम सरकार बनाना है और फिर संसदीय चुनाव कराना है।

विपक्ष के दबाव से झुके राष्ट्रपति देंगे इस्तीफा

संसद अध्यक्ष अभयवर्धने ने शनिवार को राजपक्षे को बताया कि सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों के उनके कार्यालयों और आधिकारिक आवास पर धावा बोलने के बाद विपक्षी पार्टी के नेता चाहते हैं कि वह इस्तीफा दें। संविधान के तहत, मौजूदा प्रधान मंत्री को संसद के वोट और राष्ट्रपति के उत्तराधिकारी की नियुक्ति तक थोड़े समय के लिए स्वचालित रूप से कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में नियुक्त किया जाएगा। प्रदर्शनकारी प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे के इस्तीफे की भी मांग कर रहे हैं। राष्ट्रपति और प्रधान मंत्री दोनों के इस्तीफे का मतलब होगा कि अध्यक्ष अभयवर्धने कार्यवाहक राष्ट्रपति बनेंगे। दरअसल, नई सरकार बनने पर विक्रमसिंघे ने इस्तीफा देने की इच्छा जताई है।

आईएमएफ के फंडिंग वाले प्रोग्राम्स प्रभावित होंगे

हालांकि, रानिल विक्रमसिंघे ने कहा कि देश में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का सहायता कार्यक्रम चल रहा है। यह कार्यक्रम ईधन व भोजन सहित कई आवश्यक सहायता प्रदान कर रहे हैं। अगर देश में नेतृत्व का संकट होगा तो कई प्रोग्राम्स प्रभावित हो सकते हैं और अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं अपना फंड रोक भी सकती हैं। विक्रमसिंघे ने कहा कि यह देश ईंधन और भोजन की कमी से जूझ रहा है। अगले सप्ताह विश्व खाद्य कार्यक्रम द्वारा निर्धारित एक महत्वपूर्ण यात्रा होगी जबकि आईएमएफ के साथ महत्वपूर्ण वार्ता जारी रखनी होगी। इसलिए यदि वर्तमान सरकार को छोड़ना है तो उसे अगले द्वारा प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए।

सशस्त्र सेनाओं के समर्थन की अपील

जनरल शैवेंद्र सिल्वा ने श्रीलंकाई लोगों से सशस्त्र बलों और पुलिस का समर्थन करने का अनुरोध किया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि देश में शांति बनी रहे क्योंकि प्रदर्शनकारी दो दिनों से कोलंबो में राष्ट्रपति भवन में तोड़फोड़ कर रहे थे। विस्तृत जानकारी के लिए यह पढ़ें...

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गंभीर संकट से जूझ रहा देश, 51 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज

22 मिलियन लोगों का देश एक गंभीर विदेशी मुद्रा की कमी से जूझ रहा है, जिसने ईंधन, भोजन और दवा के आवश्यक आयात को सीमित कर दिया गया है। पिछले सात दशकों में सबसे खराब वित्तीय उथल-पुथल है। कई लोग देश की खराब स्थिति के लिए राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। मार्च के बाद से बड़े पैमाने पर शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों ने उनके इस्तीफे की मांग की है। हाल के हफ्तों में असंतोष और बढ़ गया है क्योंकि नकदी की कमी वाले देश ने ईंधन शिपमेंट प्राप्त करना बंद कर दिया है, स्कूलों को बंद करने और आवश्यक सेवाओं के लिए पेट्रोल और डीजल की राशनिंग के लिए मजबूर किया है। उधर, श्रीलंका अपनी खराब वित्तीय स्थिति की वजह से 2026 तक चुकाए जाने वाले 25 बिलियन अमेरिकी डॉलर कर्ज में से इस साल की किश्त सात बिलियन अमेरिकी डॉलर को चुकाने में असफल रहा। देश का कुल विदेशी कर्ज करीब 51 अरब डॉलर है।  

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