
Syria Crisis: सीरिया में विद्रोहियों और राष्ट्रपति बशर अल-असद की सेना के बीच लड़ाई तेज हो गई है। इस जंग में अमेरिका, रूस, ईरान और तुर्की जैसे देश भी उलझे हुए हैं। आइए जानते हैं सीरिया में विदेशी सेनाओं की भूमिका क्या है और कौन किसका साथ दे रहा है।
तुर्की ने उत्तर-पश्चिमी सीरिया में सेना तैनात की है। यह क्षेत्र सीरियाई विद्रोही समूहों के कब्जे में है। इन समूहों ने 2011 में राष्ट्रपति बशर अल-असद के खिलाफ विद्रोह किया था। इसके बाद से यहां गृह युद्ध जारी है। तुर्की ने विद्रोह का समर्थन किया है। वह विद्रोही समूहों की मदद कर रहा है।
सीरिया में तुर्की का मुख्य उद्देश्य सीरियाई कुर्द सशस्त्र समूहों के प्रभाव का मुकाबला करना रहा है। कुर्दों ने गृहयुद्ध के दौरान तुर्की से लगी सीमा पर स्वायत्त बस्तियां बना ली थीं। तुर्की इन समूहों को कुर्दिश वर्कर्स पार्टी (पीकेके) का विस्तार मानता है। इसने 1984 से तुर्की में सांस्कृतिक और राजनीतिक अधिकारों के लिए विद्रोह छेड़ रखा है। तुर्की सरकार ने पीकेके को आतंकवादी संगठन घोषित कर रखा है।
तुर्की के लिए एक और चिंता का विषय युद्ध के दौरान तुर्की भागकर आए लगभग तीन मिलियन सीरियाई शरणार्थियों की वापसी है। इनमें से कई मूल रूप से अलेप्पो क्षेत्र से हैं। 2016 से तुर्की ने सीरिया में चार सैन्य अभियान शुरू किए हैं।
तुर्की ने पहले हमले में जिहादी इस्लामिक स्टेट समूह और सीरियाई कुर्द वाईपीजी (सीरियाई डेमोक्रेटिक फोर्सेज (एसडीएफ) का प्रमुख गुट) दोनों को निशाना बनाया।
2017 में तुर्की ने रूस और ईरान के साथ समझौता किया, जिसके बाद तुर्की की सेना विद्रोहियों के कब्जे वाले उत्तर-पश्चिमी इदलिब क्षेत्र में 12 स्थानों पर तैनात हो गई। 2018 में तुर्की ने एसडीएफ के कंट्रोल वाले अफरीन पर हमला किया। तुर्की ने 2019 में रास अल ऐन और तेल अब्याद के सीमावर्ती शहरों के बीच एसडीएफ क्षेत्र में घुसपैठ की। 2020 में तुर्की ने इदलिब में अपनी सेना को और मजबूत किया। सीरियाई सरकार तुर्की को कब्जा करने वाली शक्ति के रूप में देखती है।
रूस राष्ट्रपति बशर अल-असद की सरकार की मदद कर रहा है। 2015 में रूस ने असद की तरफ से सैन्य हस्तक्षेप किया था। यह सोवियत संघ के पतन के बाद से पश्चिम एशिया में उसका सबसे बड़ा अभियान था। रूस सीरिया के पश्चिमी प्रांत लताकिया में एक एयरबेस चला रहा है। रूस को सीरिया में ईरान का साथ मिल रहा है।
रूसी सेना ने सरकार के नियंत्रण वाले क्षेत्रों में जमीन पर भी काम किया है। कुछ क्षेत्रों में झड़पों को कम करने के प्रयासों के दौरान रूसी सैन्य पुलिस को तैनात किया गया है।
ईरान ने असद की मदद के लिए 2012 की शुरुआत में ही सीरिया में रिवोल्यूशनरी गार्ड्स तैनात कर दिए थे। ईरान से मदद पाने वाले लेबनान के हिजबुल्लाह ने भी असद सरकार की मदद की है।
ईरान ने सीरिया में अपनी सेना को लगातार दमिश्क सरकार के निमंत्रण पर सलाहकार सहायता प्रदान करने वाला बताया है। अफगानिस्तान और इराक के लड़ाकों सहित ईरान द्वारा समर्थित अन्य शिया इस्लामी समूहों ने भी लड़ाई में असद का साथ दिया है। इजरायल के साथ लड़ाई शुरू होने के बाद हिजबुल्लाह को सीरिया से अपने लड़ाकों को वापस लेबनान बुलाना पड़ा है।
सीरिया में अमेरिकी सैन्य हस्तक्षेप 2014 में जिहादी समूह इस्लामिक स्टेट (IS) के खिलाफ हवाई हमलों के साथ शुरू हुआ था। IS ने सीरिया और इराक के एक तिहाई हिस्से पर अपना शासन घोषित कर दिया था। अमेरिका ने शुरू में विशेष बलों की छोटी टुकड़ी तैनात की। अमेरिकी सैनिकों ने सीरिया के उत्तरी और पूर्वी क्षेत्रों में आईएस से क्षेत्र वापस लेने के लिए एसडीएफ के साथ सहयोग किया था।
2018 में घोषणा की गई कि IS के खिलाफ लड़ाई लगभग जीत ली गई है। राष्ट्रपति ट्रम्प ने सीरिया से अमेरिकी सैनिकों को वापस बुलाने की योजना की घोषणा की। इस फैसले की काफी आलोचना हुई। कहा गया कि इससे ईरान और रूस को फायदा होगा। नतीजा यह हुआ कि अमेरिकी सेना सीरिया में बनी रही और एसडीएफ का समर्थन करना जारी रखा। इस समय सीरिया में करीब 900 अमेरिकी सैनिक हैं।
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