Explainer: क्या है फिलिस्तीन-इजराइल विवाद की अनंत कथा? एक साजिश जिसे आज भी भुगत रहे लोग

फिलिस्तीनी ग्रुप हमास की इस हरकत के बाद इजराइल ने भी युद्ध में होने का ऐलान करते हुए जवाबी कार्रवाई में गाजापट्टी पर जोरदार हमला बोला। 

 

Dheerendra Gopal | Published : Oct 7, 2023 10:53 AM IST / Updated: Oct 09 2023, 07:13 PM IST

Palestine and Israel conflict: इजरायल और फिलिस्तीन के बीच संघर्ष एक बार फिर तेज हो चुका है। वर्षों से चल रहे खूनी संघर्ष में हजारों लोग अबतक मारे जा चुके हैं। फिलिस्तीन ने इजराइल पर करीब पांच हजार रॉकेट दागने का दावा किया। फिलिस्तीनी ग्रुप हमास की इस हरकत के बाद इजराइल ने भी युद्ध में होने का ऐलान करते हुए जवाबी कार्रवाई में गाजापट्टी पर जोरदार हमला बोला। इजराइल ने युद्ध की स्थिति घोषित करते हुए लोगों को बम से बचाने के लिए बनाए गए एरिया में सुरक्षित पनाह लेने की सलाह दी है।

इजराइल-फिलिस्तीनी संघर्ष में सबसे अधिक मौतें वेस्ट बैंक में अबतक हुई है। अरब-इजराइली संघर्ष के बाद यह क्षेत्र 1967 से वेस्टबैंक के कब्जे में रहा है। हमास ने अल-अक्सा फ्लड ऑपरेशन का ऐलान करते हुए इजराइल पर कम से कम 5000 रॉकेट छोड़े हैं। हमास मिलिट्री ब्रांच एज्ज़ेदीन अल-क़सम ब्रिगेड ने एक बयान में कहा कि वह इजराइल द्वारा किए गए सभी कब्जों को खत्म करके ही अब दम लेगा। इसलिए हमने ऑपरेशन अल-अक्सा फ्लड का ऐलान किया है। पहले हमले में हमने 20 मिनट में 5000 रॉकेट छोड़े हैं।

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ब्रिटेन ने ओटोमन साम्राज्य की हार के बाद किया था कब्जा

दरअसल, फिलिस्तीन पर पहले ओटोमन साम्राज्य का राज था। लेकिन प्रथम विश्व युद्ध में ओटोमन साम्राज्य की हार के बाद ब्रिटेन ने फिलिस्तीन पर पूरा कब्जा कर लिया। फिलिस्तीन में यहूदी अल्पसंख्यक और अरब बहुसंख्यक थे।

इंटरनेशनल कम्युनिटी ने ब्रिटेन को फिलिस्तीन में यहूदी बहुल बनाने की चाल चली। इसके बाद अरब और यहूदी लोगों के बीच तनाव बढ़ा। प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद और द्वितीय युद्ध तक फिलिस्तीन अस्थिर होने लगा। 1920 से 1940 के दशक में फिलिस्तीन में यहूदी आप्रवासियों की संख्या में काफी वृद्धि हुई। इसकी मुख्य वजह यूरोपीय देशों में यहूदियों का उत्पीड़न। यूरोप के देशों में बसे यहूदी, अब हर ओर हो रहे उत्पीड़न से भागने लगे और अपने लिए एक मातृभूमि की तलाश में जुट गए। फिलिस्तीन में इनकी तलाश पूरी हुई।

फिलस्तीन में यहूदियों और अरबों के बीच संघर्ष तो तेज हुआ ही साथ ही ब्रिटिश शासन का प्रतिरोध भी तेज हो गया। संयुक्त राष्ट्र संघ भी अस्तित्व में आ चुका था। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1947 में फिलिस्तीन को विभाजित करने का फैसला किया। इंटरनेशनल कम्युनिटी की चाल सफल हो चुकी थी। संयुक्त राष्ट्र ने अरब और यहूदी राज्यों में विभाजन के लिए वोटिंग कराई। लेकिन येरूशलम को इंटरनेशनल एडमिनिस्ट्रेशन के अधीन रखा। यहूदियों ने येरूशलम के मुद्दे पर यूएन का आदेश तो मान लिया लेकिन अरबों ने इसे नहीं माना न ही लागू किया गया।

यहूदियों ने इजराइल की स्थापना का किया ऐलान

1948 आते-आते, ब्रिटेन और इंटरनेशनल कम्युनिटी के हाथ से भी सारे मोहरे निकल गए। अरब और यहूदियों के बीच संघर्ष तेज हो गई। संघर्ष को खत्म कराने में असमर्थ ब्रिटेन ने खुद को पीछे हटने का फैसला किया। इसके बाद यहूदी नेताओं ने इजराइल की घोषणा कर दी।

इजराइल की स्थापना का फिलिस्तीनियों ने विरोध किया तो युद्ध छिड़ गया। अरबों का साथ देने के लिए पड़ोसी अरब देशों ने अपनी सैन्य शक्ति लगा दी। सैन्य बल के साथ हस्तक्षेप की वजह से फिलिस्तीनियों को पीछे हटना पड़ा। सैकड़ों-हजारों फिलिस्तीनी भाग गए या उन्हें अपने घरों से निकाल दिया गया जिसे वे अल नकबा, या "द कैटास्ट्रोफ" कहते हैं।

 

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