स्विट्जरलैंड में दो दिन तक हुए यूक्रेन शांति शिखर सम्मेलन में 80 देशों ने संयुक्त बयान जारी किया है। इसमें क्षेत्रीय अखंडता बनाए रखते हुए यूक्रेन में शांति बनाए रखने की बात की गई है। भारत ने बयान पर साइन नहीं किया है।
नई दिल्ली। दो साल से अधिक समय से रूस और यूक्रेन के बीच लड़ाई चल रही है। इसे रोकने के लिए स्विट्जरलैंड में दो दिन तक यूक्रेन शांति शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया। सम्मेलन के समापन पर 80 देशों ने मिलकर बयान जारी किया। भारत इस बयान से पूरी तरह सहमत नहीं था, इस वजह से भारत ने बयान पर साइन नहीं किया।
बयान में यूक्रेन पर रूसी युद्ध को समाप्त करने के लिए किसी भी शांति समझौते का आधार क्षेत्रीय अखंडता को बनाने की बात कही गई। रूस इस सम्मेलन में शामिल नहीं हुआ। चीन भी सम्मेलन से दूर रहा।
बयान में कहा गया कि यूक्रेन में शांति कूटनीति से आएगी। यूक्रेन में स्थायी शांति के लिए संयुक्त राष्ट्र चार्टर (जिसमें सभी देशों की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के सम्मान के सिद्धांत शामिल हैं) आधार के रूप में काम कर सकता है। बयान पर अधिकांश पश्चिमी देशों ने साइन किया। वहीं, भारत, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने साइन नहीं किया।
भारत ने कहा- 'दोनों पक्षों को स्वीकार्य समाधान ही आएगी शांति'
शिखर सम्मेलन में भारत की ओर से विदेश मंत्रालय में सचिव (पश्चिम) पवन कपूर शामिल हुए। स्विटजरलैंड से जारी बयान में उन्होंने कहा कि भारत संयुक्त बयान का हिस्सा नहीं होगा। क्योंकि यह जंग में शामिल दोनों पक्षों की भागीदारी के बिना जारी किया जा रहा है।
पवन कपूर ने कहा, "हमारा मानना है कि केवल दोनों पक्षों को स्वीकार्य समाधान ही स्थायी शांति ला सकते हैं। इसके चलते हमने शिखर सम्मेलन के संयुक्त बयान से संबंध न रखने का फैसला लिया है।"
कपूर ने कहा कि यह शिखर सम्मेलन यूक्रेन युद्ध के लिए बातचीत के जरिए समाधान की दिशा में अहम है। शांति के लिए किसी भी पहल में दोनों पक्षों का उपस्थित होना जरूरी है। शांति के लिए संघर्ष में शामिल दोनों पक्षों के बीच एक ईमानदार और व्यावहारिक जुड़ाव की जरूरत है। हम यूक्रेन में स्थायी शांति के लिए सभी गंभीर प्रयासों में योगदान देंगे।
यूक्रेन शांति शिखर सम्मेलन से क्या मिला?
स्विटजरलैंड में आयोजित यूक्रेन शांति शिखर सम्मेलन पूरी तरह सफल नहीं हुआ है। रूस के शामिल नहीं होने के चलते इसके सफल होने की संभावना भी नहीं थी। सम्मेलन के बाद 80 देश इस बात पर सहमत हुए कि यूक्रेन में शांति क्षेत्रीय अखंडता की कीमत पर नहीं आनी चाहिए। यह सम्मेलन का बड़ा परिणाम है।