पाकिस्तान के पीएम की कुर्सी से बेदखल हुए इमरान खान, जानें भारत के लिए इसका क्या है मतलब?

इमरान खान (Imran Khan) ने नई दिल्ली के लिए पाकिस्तान के साथ बातचीत का चैनल खोलना राजनीतिक रूप से कठिन बना दिया था। उन्हें हटाए जाने से नई दिल्ली और इस्लामाबाद के लिए राजनयिक बातचीत शुरू करना अपेक्षाकृत आसान हो गया है। 

Asianet News Hindi | Published : Apr 10, 2022 8:36 AM IST / Updated: Apr 10 2022, 02:15 PM IST

इस्लामाबाद। इमरान खान (Imran khan) को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के पद से बेदखल कर दिया गया। शनिवार की देर रात वह अविश्वास मत हार गए। 49 साल पहले 10 अप्रैल 1973 को पाकिस्तान की संसद ने इसके संविधान को मंजूरी दी थी। 2022 को उसी दिन देश ने पहली बार देखा कि एक प्रधानमंत्री को अविश्वास मत के बाद बाहर कर दिया गया। 342 सदस्यीय सदन में 174 सदस्यों ने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया। नई दिल्ली के दृष्टिकोण से इसका क्या अर्थ है? क्या यह पाकिस्तान के साथ बातचीत के लिए नए चैनल खोलेगा? सत्ता में यह बदलाव भारत के लिए कैसा होगा? जानें इन सात प्वाइंट्स में...  

पाकिस्तान का लोकतंत्र
पाकिस्तान का लोकतंत्र एक त्रुटिपूर्ण और अभी भी एक "निर्देशित लोकतंत्र" है। अविश्वास प्रस्ताव और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के एक अराजक सप्ताह के बाद पाकिस्तान की संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान हो सका। कई दिनों तक चली राजनीतिक उठापटक के बाद विपक्ष मौजूदा सरकार को बाहर करने में सफल हुई। यह पहली बार है कि पाकिस्तान में एक मौजूदा प्रधानमंत्री को अविश्वास प्रस्ताव से हटाया गया। यह भारत में एक सामान्य घटना रही है। इसका मतलब है कि पाकिस्तान में लोकतंत्र धीरे-धीरे अपने पैर जमा रहा है।

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इमरान खान का पतन
इमरान खान का पतन दर्शनीय है। वह राजनीतिक दृष्टिकोण से अज्ञात वस्तु के रूप में पीएम की कुर्सी तक पहुंचे। वह पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) या पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी जैसी मुख्यधारा की पार्टियों से संबंधित नहीं थे। उन्होंने बहुत सारे वादे किए, लेकिन अपने वादे पूरे नहीं कर पाए। वह जल्द ही एक मृगतृष्णा साबित हुए और हर गुजरते दिन के साथ अलोकप्रिय होते गए। 

अभी भी सेना के हाथ में है शक्ति
इमरान खान को सत्ता में लाने के पीछे सेना का हाथ था। सेना के समर्थन से उन्होंने शासन किया, लेकिन लोगों का आक्रोश बढ़ा तो सेना ने समर्थन बंद कर दिया। इसके चलते इमरान को अपनी कुर्सी से बेदखल होना पड़ा। इमरान खान की कुर्सी चली गई, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि पाकिस्तान में सेना की ताकत में कमी हुई है। वहां अभी भी सेना के हाथ में पूरी ताकत है। इससे यह भी शाबित हुआ है कि पाकिस्तान में सेना के समर्थन के बिना कोई नेता अपनी कुर्सी नहीं बचा सकता। 

रूस-यूक्रेन संकट
रूस-यूक्रेन संकट का सीधा असर पाकिस्तान पर पड़ा। आक्रमण के समय इमरान खान रूस जाकर दुनिया भर में चर्चा का विषय बन गए। इससे रूस विरोधी देशों की भौंहें चढ़ गईं। यह संयुक्त राज्य अमेरिका को अच्छा नहीं लगा। अमेरिका ने इमरान खान को कथित तौर पर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मिलने के लिए मास्को नहीं जाने के लिए कहा था। इमरान को रूस जाने की भारी कीमत चुकानी पड़ी।

इंडिया फैक्टर
भारत हमेशा से पाकिस्तान की राजनीति का फैक्टर रहा है। इस्लामाबाद की राजनीतिक चर्चा में नई दिल्ली की हमेशा बात होती है। इस बार इमरान खान ने अपनी विदेश नीति को सही साबित करने के लिए भारत की प्रशंसा की थी। उन्होंने अपनी अंतरराष्ट्रीय और सुरक्षा नीतियों के अयोग्य संचालन के लिए पाकिस्तान के सैन्य प्रतिष्ठान को निशाना बनाया था। कहा जाता है कि इसने रावलपिंडी (पाकिस्तानी सेना का मुख्यालय) को पहले से कहीं ज्यादा परेशान कर दिया था।

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शरीफों की वापसी
चार साल पहले नवाज शरीफ की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) चुनाव हार गई थी। सत्ता में आए इमरान खान ने नवाज शरीफ और उनके परिवार के लोगों के खिलाफ बदले की कार्रवाई की। इसके चलते नवाज शरीफ को देश से बाहर जाना पड़ा। वह इससे पहले पाकिस्तान के जेल में बंद रहे। उनके भाई शहबाज शरीफ और बेटी मरियम नवाज के खिलाफ भी इमरान सरकार ने कार्रवाई की, उन्हें जेलों में डाला। इमरान खान को सत्ता से बाहर कर नवाज शरीफ के भाई शहबाज शरीफ ने दिखा दिया है कि उनके पास अभी भी खेल में वापस आने के लिए कार्ड हैं।

उन्होंने खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया और पाकिस्तानी सेना का समर्थन हासिल करने के लिए अपने तरीके से काम किया। नवाज शरीफ अभी भी लंदन में हैं। उनके भाई ने अविश्वास प्रस्ताव के बाद अपने भाषण के दौरान उन्हें याद किया। शरीफ हमेशा से भारत के साथ संबंध सुधारने को लेकर काफी सकारात्मक रहे हैं, लेकिन इमरान खान के बयानों के कारण यह मुश्किल हो सकता है।

भारत के साथ संबंध सुधारने का मौका
इमरान खान ने नई दिल्ली के लिए पाकिस्तान के साथ बातचीत का चैनल खोलना राजनीतिक रूप से कठिन बना दिया था। उन्होंने देश का नेतृत्व करने के पिछले ढाई वर्षों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा और आरएसएस पर व्यक्तिगत रूप से हमला किया था। उनके निष्कासन से नई दिल्ली और इस्लामाबाद के लिए राजनयिक बातचीत शुरू करना अपेक्षाकृत आसान हो गया है।

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